भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और रुझानों पर पांच महीने पहले दो तरह के दृष्टिकोण सामने आए थे. एक आर्थिक सर्वेक्षण ने यह कहा है कि, आर्थिक विकास दर 7% के नीचे नहीं आएगी, वहीं कैग ने अपनी रिपोर्ट में देश में आर्थिक मंदी से खतरे की घंटी बजाई है. पिछले कुछ समय से जिस तरह के हालात अर्थव्यवस्था में दिख रहे हैं, उन्होंने कैग के अनुमान को सही ठहराया है.
जहां एक तरफ कई अर्थशास्त्रियों और जानकारों ने अर्थव्यवस्था के खराब हालात की बात कही है, सरकार का इस तरफ नजरिया अलग है. ताजा सरकारी रिपोर्ट और आंकड़े इस तरफ इशारा करते हैं कि सरकार के पास मंदी से निबटने को लेकर और समय नही बचा है. निर्माण, खदान और ऊर्जा के क्षेत्रों में लगातार तीसरे महीने रही मंदी ने घरेलू उत्पाद क्षेत्र में आ चुकी कमी को सही साबित कर रही है. इसके अलावा, सबसे ज्यादा परेशानी का सबब यह है कि कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक, वाहन निर्माण के क्षेत्र में करीब 30% की गिरावट देखने को मिली है.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले सितंबर मे कहा था कि 2014 से महंगाई दर में कोई बढ़ोत्तरी नही हुई है. वहीं पिछले नवंबर में ही रिटेल मंहगाई दर तीन सालों के अधिकतम स्तर 5.5% पर जा पहुंची थी. इसमे, खाद्य पदार्थों की मंहगाई दर दस फीसदी तक चली गई थी. करीब छह साल पहले, जब मंहगाई दर दो अंको में थी, तब से आर्थिक मंदी ने अपने पैर फैलाने शुरू कर दिये थे.
कुछ ऐसे ही हालात देश में लोगों के बीच बढ़ती बेरोजगारी के कारण घर करते जा रहे हैं. दो हफ्ते पहले ही निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में कहा था कि आर्थिक रुझानों के अनुसार मंदी न आई है और न ही आयेगी. वित्त मंत्री ने मंदी और उसके बढ़ते खतरों को सिरे से खारिज कर कई लोगों को चौंका दिया था. सबसे पहले समस्या को मानना और चिन्हित करना ज्यादा आवश्यक है क्योंकि इसी के बाद हम समस्या के निस्तारण के लिये सही उपाय तलाश कर सकेंगे.
पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के द्वारा दिए गए सुझाव इसी तरफ इशारा करते हैं. उन्होने काफी विश्लेषण के बाद कहा था कि लंबे समय से चली आ रही पांच समस्याएं यूपीए से एनडीए सरकार में भी आ गई हैं. इन्ही के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ रहा है. बुनियादी ढांचों के निर्माण से जुड़े कामों में लालफीताशाही के कारण होने वाली देरी, ऊर्जा उत्पाद में घीमी रफ्तार, आसानी से लोन का न मिलना, कृषि क्षेत्र में विकास न होना और किसानों को उनके उत्पाद का सही दाम न मिलना, इन सभी कारणों ने मिलकर देश की अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लगा दिये हैं.
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इसके साथ साथ आर्थिक मंदी के पीछे नीतिगत स्तर पर सही फैसलों ना लेना, निवेश और निर्यात में गिरावट, लोगों में खरीद की क्षमता की कमी भी आर्थिक मंदी के लिए जिम्मेदार हैं. केंद्र सरकार द्वारा रेवेन्यू री-असेसमेंट के कारण राज्यों के बजट पर भी विपरीत असर पड़ा है.
जानकारों का कहना है कि बाहरी निवेश और नीतियों में दूरगामी बदलावों से इस समस्या से निबटने की कोशिश की जा सकती है. इसके लिये ऊर्जा और बैंकिंग क्षेत्र की समस्याओं पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. जब दो कैबिनेट समितियां निवेश लाने और रोजगार के अवसर पैदा करने में कामयाब नही हो सकी हैं, तो सरकार देश के सामने खड़ी चुनौतियों से निबटने के लिए और समय नहीं मांग सकती है.
हांगकांग स्थित बड़ी आर्थिक कम्पनी एचएसबीसी ने दो साल पहले ये कहा था कि बेहतर विकास दर, और मजबूत आर्थिक ढांचे के कारण 2028 तक भारत, जापान और जर्मनी से आगे निकल जाएगा. हालांकि मौजूदा हालातों को देखते हुए ये बात अब तार्किक नहीं रह गई है. जानकारों का ये भी कहना है कि अगर एनडीए सरकार को भारतीय अर्थव्यवस्था को अगले पांच सालों में पांच ट्रिलियन का बनाने का अपना सपना साकार करना है तो देश को 8% सालाना की विकास दर को पाना होगा. जापान की आर्थिक सलाहाकार कम्पनी होंचो नोमूरा ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चौथी तिमाही में 4.3% तक सीमित रहेगी.
ये अब एक टूटे सपने जैसा है, देश में इस समय, ऊर्जा, रियल एस्टेट, दूरसंचार, कोयला, नागरिक उड्डयन और बाकी क्षेत्रों में हालात ठीक नही हैं. पिछले सितंबर में सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स को घटाया था, लेकिन इससे कोई खास फायदा नही हुआ है. कई भागों में मंदी से निबटने के लिए जो कदम उठाये गये हैं, वो भी नाकाफी साबित हुए हैं. सीआईआई का कहना है कि एक नीति के तहत घरेलू निवेश, रोजगार के मौके पैदा करने और औद्योगिक उत्पाद को बढ़ाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है. इन हालात में ये तर्क काफी हद तक सही लगता है.
ग्रामीण उद्योगो, शिक्षा, आईटी क्षेत्र और कृषि पर ध्यान देकर रोजगार के नये मौके पैदा किये जा सकते हैं. ये मंदी से निबटने के लिए सबसे कारगर उपाय होगा. जानकारों का कहना है कि विश्लेषण से ये बात साफ है कि अगर आरबीआई रेपो रेट की घोषणा करते समय इन पहलुओं पर भी ध्यान देता तो हालात इतने खराब नही होते.
हालांकि अब सरकार को आने वाले समय की दिक्कतों और उनसे देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान पर ध्यान देना चाहिए.