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लॉकडाउन : गरीबों-प्रवासियों की आवासीय किल्लत और सरकार के कदम - प्रवासी मजदूर

देशभर में कोरोना महामारी फैली हुई है. इस संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने देश में 21 दिनों को लॉकडाउन किया है, जिससे देशभर के कारखाने बंद हो गए हैं. इन कारखानों में काम करने वाले कई राज्यों के लोग बेरोजगार हो गए हैं. इसके चलते इन कामगारों के सामने रहने-खाने की समस्या खड़ी हो गई है. इन मजदूरों के मकान मालिक उन्हें किराया देने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जबकि उनके पास खाने तक के लिए नहीं है, हालांकि सरकार ने प्रवासी मजदूरों के रहने-खाने के लिए कई विशेष कदम उठाए हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

प्रवासी
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Published : Apr 10, 2020, 8:30 PM IST

हैदराबाद : देश में कोरोना वायरस महामारी फैली हुई है. इस महामारी को रोकने के लिए देश में अचानक लॉकडाउन लागू कर दिया गया. लोग बेरोजगार हो गए. देश के विभिन्न शहरों में प्रवासी रहते हैं, जिनके पास न तो खाने के लिए राशन हैं और न ही उनके पास किराया देने के लिए पैसे हैं. ऐसी स्थिति में भी कुछ मकान मालिक किराएदारों से किराया मांग रहे हैं और किराया न देने पर घर खाली करने के लिए कह रहे हैं. इससे कुछ प्रवासी मजदूर हजारों मील दूर अपने घरों की तरफ भी पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

बता दें कि देश में कई ऐसे मामले सामने आए, जहां पर मकान मालिकों ने किराएदारों को यह कहते हुए घर खाली करने के लिए मजबूर कर दिया कि वह किराया नहीं दे सकते. अंत में मजबूर होकर कुछ किराएदारों को प्रशासन से मदद मांगने के लिए जाना पड़ा.

मुख्य रूप से यह समस्या उन गरीबों के लिए बनी हुई है, जिनके पास किराए का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं क्योंकि उन्हें उचित समय पर लॉकडाउन की सूचना नहीं मिल पाई.

दुनियाभर के अध्ययनों से पता चला है कि प्रवासियों के लिए किराए के आवास का विशेष महत्व होता है.

प्रवासी के लिए किराए के मकान को किसी भी शहर में पहले प्रवेश बिंदु के रूप में वर्गीकृत किया गया है. यह तब तक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होता है, जब तक कि वह अपनी नौकरी या पेशे से रुपये बचाकर अपना निजी मकान न बना लें.

वहीं मौसमी प्रवासियों को स्थाई निवास की तलाश नहीं होती है, बल्कि कम लागत वाले किराए के मकान या उनके क्षणिक स्वभाव के अनुरूप वाले स्थान ही उनके लिए आवास बन जाते हैं.

आवास की अनुपस्थिति में, मौसमी प्रवासी मानव-विहीन परिस्थितियों में भी रहने के लिए मजबूर रहते हैं, चाहे वह झुग्गियां हों, खुली जगह हों या छोटे और साझे किराए के घर हों.

बता दें कि अचानक लॉकडाउन होने से इन प्रावसियों की आमदनी और कार्यस्थल दोनों बंद हो गए हैं. शहरी इलाकों में रहने वाले गरीबों को लॉकडाउन ने विशेष तौर पर प्रभावित किया है. जो किराए के अपार्टमेंट, घरों और झुग्गियों पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं क्योंकि उनके पास उतने पैसे नहीं हैं कि वह इतने महंगे घर खरीद सकें.

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दूसरी ओर, प्रवासी मौसम के आधार पर शहरों में आते हैं और मौसम खत्म होने के बाद पुन: वह घर वापस आ जाते हैं. इसलिए वह सस्ते या साझा किराए के मकान पर भी निर्भर होते हैं.

भारत के छह प्रमुख महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु में श्रमिकों की बड़ी संख्या गरीब पृष्ठभूमि से आती है. यह शहर प्रवासियों के लिए श्रम का बहुत बड़ा स्रोत हैं. इसलिए किराए के आवास इनके लिए सबसे सुरक्षित विकल्प हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार, देश के 27% से अधिक शहरी निवासी किराए पर रह रहे हैं. आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, भारत के 28% शहरवासी किराए के घर में रहते हैं.

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की 2008-09 की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी भारत के सभी आवासों में से 30.4 फीसद किराए पर दिए गए घर हैं. वहीं, 1993 में एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक उस समय शहरों में 28.1 फीसद घर किराए पर दिए गए थे और 2002 में 29.0% फीसद शहरी आवासों में किराए के मकान थे.

बता दें कि देश में कई वरिष्ठ नागरिक और परिवार अपने किराएदारों की आय पर निर्भर हैं और यदि वह किराए में छूट देते हैं या नहीं लेते हैं तो उनकी आय पर प्रभाव पड़ेगा.

सरकार ने उठाया गरीबों के लिए कदम
केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत एक महीने के लिए मकान मालिकों से किराया संग्रह को स्थगित करने के लिए कहा था. सरकार का यह आदेश मकान मालिकों को गरीब श्रमिकों और प्रवासी मजदूरों से एक महीने के लिए किराए की मांग करने से रोकता है. इसमें उन मकान मालिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का भी प्रावधान किया गया है, जो अपने किराएदारों को किराया देने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.

गृह मंत्रालय के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है, 'जहां पर प्रवासी, श्रमिक किराए के आवास में रह रहे हैं, उन संपत्तियों के मकान मालिक एक महीने की अवधि के लिए किराए के भुगतान की मांग नहीं करेंगे.'

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उत्तर प्रदेश सरकार ने नोएडा क्षेत्र में एक मजिस्ट्रेटी आदेश जारी किया था, जिसमें मकान मालिकों को एक महीने के लिए किराए के संग्रह को स्थगित करने के लिए कहा गया था. इसमें एक दंड का भी प्रावधान किया गया है, जिसके तहत आदेश का उल्लंघन करने वाले मकान मालिकों को एक वर्ष की जेल, जुर्माना या दोनों सजा सुनाई जा सकती है.

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने मकान मालिकों से दयालुता दिखाने के लिए कहा था और अपील की थी कि तीन महीने तक के लिए गरीबों का किराया माफ कर दें.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 29 मार्च को दिल्ली में मकान मालिकों से कहा कि वह अपने किराएदारों को दो से तीन महीने के किराए का भुगतान करने के लिए मजबूर न करें. उन्होंने यहां तक कहा कि यदि किराएदार किराया देने में असमर्थ हैं, तो उनकी सरकार किराए का भुगतान करेगी, लेकिन उन्हें घरों से निकाला न जाए.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने मकान मालिकों से आग्रह किया कि वह प्रवासी लोगों से दो माह तक का किराया न लें.

एक छात्रावास उन छात्रों की मदद कर रही है, जो अपने घर नहीं जा पाए हैं और खुले में रहने के लिए मजबूर हो रहे हैं. इस छात्रावास के पदाधिकारी अन्य लोगों से भी किराए में छूट देने की बात कर रहे हैं और मकान मालिकों से कुछ दिनों के लिए किराया न मांगने की भी अपील कर रहे हैं.

हैदराबाद : देश में कोरोना वायरस महामारी फैली हुई है. इस महामारी को रोकने के लिए देश में अचानक लॉकडाउन लागू कर दिया गया. लोग बेरोजगार हो गए. देश के विभिन्न शहरों में प्रवासी रहते हैं, जिनके पास न तो खाने के लिए राशन हैं और न ही उनके पास किराया देने के लिए पैसे हैं. ऐसी स्थिति में भी कुछ मकान मालिक किराएदारों से किराया मांग रहे हैं और किराया न देने पर घर खाली करने के लिए कह रहे हैं. इससे कुछ प्रवासी मजदूर हजारों मील दूर अपने घरों की तरफ भी पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

बता दें कि देश में कई ऐसे मामले सामने आए, जहां पर मकान मालिकों ने किराएदारों को यह कहते हुए घर खाली करने के लिए मजबूर कर दिया कि वह किराया नहीं दे सकते. अंत में मजबूर होकर कुछ किराएदारों को प्रशासन से मदद मांगने के लिए जाना पड़ा.

मुख्य रूप से यह समस्या उन गरीबों के लिए बनी हुई है, जिनके पास किराए का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं क्योंकि उन्हें उचित समय पर लॉकडाउन की सूचना नहीं मिल पाई.

दुनियाभर के अध्ययनों से पता चला है कि प्रवासियों के लिए किराए के आवास का विशेष महत्व होता है.

प्रवासी के लिए किराए के मकान को किसी भी शहर में पहले प्रवेश बिंदु के रूप में वर्गीकृत किया गया है. यह तब तक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होता है, जब तक कि वह अपनी नौकरी या पेशे से रुपये बचाकर अपना निजी मकान न बना लें.

वहीं मौसमी प्रवासियों को स्थाई निवास की तलाश नहीं होती है, बल्कि कम लागत वाले किराए के मकान या उनके क्षणिक स्वभाव के अनुरूप वाले स्थान ही उनके लिए आवास बन जाते हैं.

आवास की अनुपस्थिति में, मौसमी प्रवासी मानव-विहीन परिस्थितियों में भी रहने के लिए मजबूर रहते हैं, चाहे वह झुग्गियां हों, खुली जगह हों या छोटे और साझे किराए के घर हों.

बता दें कि अचानक लॉकडाउन होने से इन प्रावसियों की आमदनी और कार्यस्थल दोनों बंद हो गए हैं. शहरी इलाकों में रहने वाले गरीबों को लॉकडाउन ने विशेष तौर पर प्रभावित किया है. जो किराए के अपार्टमेंट, घरों और झुग्गियों पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं क्योंकि उनके पास उतने पैसे नहीं हैं कि वह इतने महंगे घर खरीद सकें.

जानिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के बारे में सबकुछ...

दूसरी ओर, प्रवासी मौसम के आधार पर शहरों में आते हैं और मौसम खत्म होने के बाद पुन: वह घर वापस आ जाते हैं. इसलिए वह सस्ते या साझा किराए के मकान पर भी निर्भर होते हैं.

भारत के छह प्रमुख महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु में श्रमिकों की बड़ी संख्या गरीब पृष्ठभूमि से आती है. यह शहर प्रवासियों के लिए श्रम का बहुत बड़ा स्रोत हैं. इसलिए किराए के आवास इनके लिए सबसे सुरक्षित विकल्प हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार, देश के 27% से अधिक शहरी निवासी किराए पर रह रहे हैं. आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, भारत के 28% शहरवासी किराए के घर में रहते हैं.

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की 2008-09 की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी भारत के सभी आवासों में से 30.4 फीसद किराए पर दिए गए घर हैं. वहीं, 1993 में एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक उस समय शहरों में 28.1 फीसद घर किराए पर दिए गए थे और 2002 में 29.0% फीसद शहरी आवासों में किराए के मकान थे.

बता दें कि देश में कई वरिष्ठ नागरिक और परिवार अपने किराएदारों की आय पर निर्भर हैं और यदि वह किराए में छूट देते हैं या नहीं लेते हैं तो उनकी आय पर प्रभाव पड़ेगा.

सरकार ने उठाया गरीबों के लिए कदम
केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत एक महीने के लिए मकान मालिकों से किराया संग्रह को स्थगित करने के लिए कहा था. सरकार का यह आदेश मकान मालिकों को गरीब श्रमिकों और प्रवासी मजदूरों से एक महीने के लिए किराए की मांग करने से रोकता है. इसमें उन मकान मालिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का भी प्रावधान किया गया है, जो अपने किराएदारों को किराया देने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.

गृह मंत्रालय के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है, 'जहां पर प्रवासी, श्रमिक किराए के आवास में रह रहे हैं, उन संपत्तियों के मकान मालिक एक महीने की अवधि के लिए किराए के भुगतान की मांग नहीं करेंगे.'

दो साल से स्क्रबर में रह रही है महिला, हकीकत देख आपके भी उड़ जाएंगे होश

उत्तर प्रदेश सरकार ने नोएडा क्षेत्र में एक मजिस्ट्रेटी आदेश जारी किया था, जिसमें मकान मालिकों को एक महीने के लिए किराए के संग्रह को स्थगित करने के लिए कहा गया था. इसमें एक दंड का भी प्रावधान किया गया है, जिसके तहत आदेश का उल्लंघन करने वाले मकान मालिकों को एक वर्ष की जेल, जुर्माना या दोनों सजा सुनाई जा सकती है.

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने मकान मालिकों से दयालुता दिखाने के लिए कहा था और अपील की थी कि तीन महीने तक के लिए गरीबों का किराया माफ कर दें.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 29 मार्च को दिल्ली में मकान मालिकों से कहा कि वह अपने किराएदारों को दो से तीन महीने के किराए का भुगतान करने के लिए मजबूर न करें. उन्होंने यहां तक कहा कि यदि किराएदार किराया देने में असमर्थ हैं, तो उनकी सरकार किराए का भुगतान करेगी, लेकिन उन्हें घरों से निकाला न जाए.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने मकान मालिकों से आग्रह किया कि वह प्रवासी लोगों से दो माह तक का किराया न लें.

एक छात्रावास उन छात्रों की मदद कर रही है, जो अपने घर नहीं जा पाए हैं और खुले में रहने के लिए मजबूर हो रहे हैं. इस छात्रावास के पदाधिकारी अन्य लोगों से भी किराए में छूट देने की बात कर रहे हैं और मकान मालिकों से कुछ दिनों के लिए किराया न मांगने की भी अपील कर रहे हैं.

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