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आरएसएस प्रमुख ने नई शिक्षा नीति और 'आत्मनिर्भर भारत' को बताया सही कदम

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने डिजिटल माध्यम से प्रो. राजेन्द्र गुप्ता की दो पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए कहा, स्वतंत्रता के बाद जैसी आर्थिक नीति बननी चाहिए थी, वैसी नहीं बनी.उन्होंने कहा कि विदेशों में जो कुछ है, उसका बहिष्कार नहीं करना है लेकिन अपनी शर्तो पर लेना है.

mohan bhagwat
सरसंघचालक मोहन भागवत
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Published : Aug 13, 2020, 7:23 AM IST

Updated : Aug 13, 2020, 10:11 AM IST

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और प्रधानमंत्री मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' के आव्हान को उचित दिशा में उठाया गया कदम और नीतिगत बदलाव बताया है. बुधवार को एक वेबिनार के माध्यम से अपने संबोधन के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि भारत के विश्वगुरु होने की दिशा में इन नीतियों का बहुत अच्छा योगदान रहने की प्रबल संभावना है.

मोहन भागवत ने आगे कहा कि विश्व मानता है कि सब देश अपनी हस्ती मिटा कर एक बाजार के एक मॉडल को अपनाएँ लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है. आत्मनिर्भर राष्ट्रों के परस्पर सद्भावनापूर्वक सहयोग करते हुए ग्लोबल मार्केट नहीं बल्कि ग्लोबल फैमिली की तरह संभव हो सकता है

कोरोना महामारी का उदाहरण देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि इस काल में हर देश को अपनी अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ी है, सिर्फ भारत ही ऐसा देश है जिसने अपनी दवाइयाँ अन्य देशों को भेजी हैं बाकी देशों के पास भेजने के लिए कुछ नहीं था. विश्व की तुलना में भारत की अर्थनीति को बेहतर बताते हुए भागवत ने कहा कि दुनिया में तमाम तरह के आर्थिक उतार चढ़ाव देखने को मिले लेकिन उनका प्रभाव भारत पर सबसे कम हुआ. उसी तरह कोरोना महामारी का भी असर भारत में कम है, यहाँ के लोग सावधान और अनुशाषित हैं लेकिन उनके भीतर इसका भय बाकी देशों की तुलना में कम है. यह सारी बातें आत्मनिर्भरता की आत्मा से ही आती हैं.

कार्यक्रम के दौरान 'आत्मनिर्भर भारत' पर लिखी गई एक किताब का विमोचन करते हुए आरएसएस प्रमुख ने किताब में सुझाए गए विचारों की भी सराहना की. मोहन भागवत ने कहा कि देश में जो आर्थिक नीति स्वतंत्रता के बाद बननी चाहिए थी वह नहीं बनी. हमारे यहाँ अर्थशास्त्र का विचार करते समय वास्तविक समृद्धि का विचार करते हैं, यह नहीं हुआ इसलिये हम पिछड़ गए. मौजूदा नीतियों की सराहना करते हुए भागवत ने कहा कि यह अच्छा है कि अब शुरू हो गया है और उस दिशा में हम कदम बढ़ा रहे हैं. लेकिन इसको करने वाले लोग सिर्फ सरकार में बैठे लोग नहीं होते हैं बल्कि जनता भी होती है.

नीतियों को अमल में लाने की कार्रवाई और उसकी समीक्षा पर जोर देते हुए आरएसएस प्रमुख ने इशारों में ही सरकार को सुझाव भी दिए हैं. मोहन भागवत ने कहा कि मॉनिटरिंग और इम्प्लीमेंटेशन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. अच्छी योजनाएँ, अच्छे अच्छे विचार किए जाने के बाद भी उसकी कार्रवाई नीचे तक नहीं पहुँचे तो उसका लाभ नहीं है. इसका ध्यान रखने के लिये बहुत प्रयास करना होगा.

पढ़ें :चीनी सामान का बहिष्कार शायद भारतीय उद्योगों के लिहाज से अधिक व्यवहारिक नहीं: फियो

मोहन भागवत मुख्य रूप से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, आत्मनिर्भर भारत और कोरोना काल के बाद कि परिस्थितियों पर आयोजित वेबिनार के दौरान बतौर मुख्य वक्ता अपना संबोधन दे रहे थे. मोहन भागवत ने स्वदेशी पर विशेष जोर देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि स्वदेशी का मतलब सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करना नहीं है. अपने संबोधन के दौरान भागवत ने कई ऐसे उदाहरण रखे जिसमें स्वदेशी तकनीक और स्वदेशी उत्पादों को कमतर आंका गया.
ऑनलाइन कार्यक्रम के दौरान शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विस्तार से बात की और उसके उद्देश्यों के बारे में बताया.

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और प्रधानमंत्री मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' के आव्हान को उचित दिशा में उठाया गया कदम और नीतिगत बदलाव बताया है. बुधवार को एक वेबिनार के माध्यम से अपने संबोधन के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि भारत के विश्वगुरु होने की दिशा में इन नीतियों का बहुत अच्छा योगदान रहने की प्रबल संभावना है.

मोहन भागवत ने आगे कहा कि विश्व मानता है कि सब देश अपनी हस्ती मिटा कर एक बाजार के एक मॉडल को अपनाएँ लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है. आत्मनिर्भर राष्ट्रों के परस्पर सद्भावनापूर्वक सहयोग करते हुए ग्लोबल मार्केट नहीं बल्कि ग्लोबल फैमिली की तरह संभव हो सकता है

कोरोना महामारी का उदाहरण देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि इस काल में हर देश को अपनी अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ी है, सिर्फ भारत ही ऐसा देश है जिसने अपनी दवाइयाँ अन्य देशों को भेजी हैं बाकी देशों के पास भेजने के लिए कुछ नहीं था. विश्व की तुलना में भारत की अर्थनीति को बेहतर बताते हुए भागवत ने कहा कि दुनिया में तमाम तरह के आर्थिक उतार चढ़ाव देखने को मिले लेकिन उनका प्रभाव भारत पर सबसे कम हुआ. उसी तरह कोरोना महामारी का भी असर भारत में कम है, यहाँ के लोग सावधान और अनुशाषित हैं लेकिन उनके भीतर इसका भय बाकी देशों की तुलना में कम है. यह सारी बातें आत्मनिर्भरता की आत्मा से ही आती हैं.

कार्यक्रम के दौरान 'आत्मनिर्भर भारत' पर लिखी गई एक किताब का विमोचन करते हुए आरएसएस प्रमुख ने किताब में सुझाए गए विचारों की भी सराहना की. मोहन भागवत ने कहा कि देश में जो आर्थिक नीति स्वतंत्रता के बाद बननी चाहिए थी वह नहीं बनी. हमारे यहाँ अर्थशास्त्र का विचार करते समय वास्तविक समृद्धि का विचार करते हैं, यह नहीं हुआ इसलिये हम पिछड़ गए. मौजूदा नीतियों की सराहना करते हुए भागवत ने कहा कि यह अच्छा है कि अब शुरू हो गया है और उस दिशा में हम कदम बढ़ा रहे हैं. लेकिन इसको करने वाले लोग सिर्फ सरकार में बैठे लोग नहीं होते हैं बल्कि जनता भी होती है.

नीतियों को अमल में लाने की कार्रवाई और उसकी समीक्षा पर जोर देते हुए आरएसएस प्रमुख ने इशारों में ही सरकार को सुझाव भी दिए हैं. मोहन भागवत ने कहा कि मॉनिटरिंग और इम्प्लीमेंटेशन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. अच्छी योजनाएँ, अच्छे अच्छे विचार किए जाने के बाद भी उसकी कार्रवाई नीचे तक नहीं पहुँचे तो उसका लाभ नहीं है. इसका ध्यान रखने के लिये बहुत प्रयास करना होगा.

पढ़ें :चीनी सामान का बहिष्कार शायद भारतीय उद्योगों के लिहाज से अधिक व्यवहारिक नहीं: फियो

मोहन भागवत मुख्य रूप से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, आत्मनिर्भर भारत और कोरोना काल के बाद कि परिस्थितियों पर आयोजित वेबिनार के दौरान बतौर मुख्य वक्ता अपना संबोधन दे रहे थे. मोहन भागवत ने स्वदेशी पर विशेष जोर देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि स्वदेशी का मतलब सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करना नहीं है. अपने संबोधन के दौरान भागवत ने कई ऐसे उदाहरण रखे जिसमें स्वदेशी तकनीक और स्वदेशी उत्पादों को कमतर आंका गया.
ऑनलाइन कार्यक्रम के दौरान शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विस्तार से बात की और उसके उद्देश्यों के बारे में बताया.

Last Updated : Aug 13, 2020, 10:11 AM IST
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