नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून (CAA) जिसको लेकर पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है. जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इसकी पृष्ठभूमि में बीते 9-10 दिसंबर की आधी रात को लोकसभा से पास हुआ नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 (CAB) है. लोकसभा से पारित होने के बाद CAB राज्यसभा से 11 दिसंबर को पारित हुआ.
अगले ही दिन यानी 12 दिसंबर को राष्ट्रपति ने CAB पर हस्ताक्षर कर इसे कानून बनाने की मंजूरी दे दी. इसके बाद नागरिकता संशोधन बिल, 2019 नागरिकता संशोधन कानून (CAA) बन गया. नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) को लेकर आम जनता के मन में कई भ्रम हैं.
दरअसल, इस कानू को लेकर एक भ्रम है कि इस बिल से असम में रहने वाले 1.5 लाख से अधिक बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) से भारतीय नागरिकता हासिल करने में मदद मिलेगी.
इस पर सरकार ने कहा है कि CAA से किसी भी विदेशी को स्वत: नागरिकता नहीं मिलेगी. CAA के तहत नागरिकता के लिए एक निर्धारित प्राधिकारी प्रत्येक आवेदन की जांच करेगा. उसके बाद अधिनियम में तय किए गए मानदंडों का पालन करने पर ही भारतीय नागरिकता मिलेगी.
CAA पूरे देश में लागू होता है
इसके अलावा जनता में एक भ्रम यह भी है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) से असम में अल्पसंख्यकों के हित प्रभावित होंगे. जबकि सत्य इसके विपरीत है. खुद गृह मंत्री ने संसद में कहा था- CAA दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों पर लागू होता है. इसका असम के अल्पसंख्यकों से कोई संबंध नहीं है.
इसके अलावा लोगों यह भी मानना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) से बांग्ला भाषी लोगों का वर्चस्व बढ़ जाएगा. जबकि सच्चाई यह है कि हिंदू बंगाली आबादी के अधिकांश लोग असम के बराक घाटी में रहते हैं.
सरकार का कहना है कि बराक घाटी में बंगाली भाषा को राज्य की दूसरी भाषा का दर्जा दिया गया है. ब्रह्मपुत्र घाटी में हिंदू और बंगाली अलग-अलग क्षेत्रों में रह रहे हैं. ऐसे लोगों ने असमी भाषा को अपना लिया है.
सिर्फ असम में नहीं रहते उत्पीड़न के शिकार लोग
आम लोगों के बीच यह धारणा भी बनी हुई है कि CAA लागू होने के बाद बंगाली हिंदू असम के लिए बोझ बन जाएंगे. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. सरकार का कहना है कि धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोग केवल असम में ही नहीं बसते हैं. धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोग भारत के अन्य हिस्सों में भी रह रहे हैं.
इसके अलावा कानून को लेकर यह भी भ्रम बना हुआ है कि इस, नागरिकता संशोधन अधिनियम असम समझौते (Assam Accord) की भावना को कमजोर करता है. जबकि सत्य यह है कि CAA अवैध प्रवासियों का पता लगाने/वापस भेजने की कट ऑफ डेट 24 मार्च, 1971 है. ऐसे में CAA असम समझौते की मूल भावना को कमजोर नहीं करेगा.
पूर्वोत्तर के अन्य क्षेत्रों में CAA की स्थिति
इसके अलावा लोगों में एक भ्रम यह भी है कि CAA के प्रावधान पूर्वोत्तर के आदिवासी क्षेत्रों पर भी लागू होंगे. जबकि हकीकत यह है कि CAA के प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे.
वहीं, जनता का मानना है कि CAA अनुच्छेद 371 के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा. हालांकि इससे अनुच्छेद 371 के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया जाएगा. इसके अलावा पूर्वोत्तर के लोगों की भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरक्षित किया जाएगा.
CAA और NRC एक नहीं हैं
देश के एक बड़े तबके का मानना है कि CAA असम के लोगों के हितों के खिलाफ है और का मकसद घुसपैठियों को सुविधा मुहैया कराना है. जो कि बिल्कुल गलत है CAA पूरे देश में लागू है. CAA और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) दोनों अलग-अलग हैं.
CAA नागरिकता देने की संवैधानिक प्रक्रिया
वहीं, लोगों में भ्रम यह भी है कि NRC को अपडेट करने का कारण स्वदेशी समुदायों को अवैध प्रवासियों से बचाना है. जबकि CAA केवल नागरिकता प्रदान करने की संवैधानिक प्रक्रिया है. इसका असली मकसद शरणार्थियों को सुविधा प्रदान करना है, घुसपैठियों को नहीं.
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) में इनर लाइन परमिट (ILP) के तहत आने वाले विनियमित क्षेत्र भी शामिल किए जाएंगे और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के कारण बांग्लादेश से हिंदुओं का पलायन और बढ़ जाएगा.
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हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं है.ILP के तहत आने वाले विनियमित क्षेत्रों को छूट दी गई है. साथ ही मणिपुर को भी ILP के दायरे में लाया गया है.पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के स्तर में गिरावट आई है. धार्मिक प्रताड़ना के कारण बड़े पैमाने पर पलायन की संभावना बहुत कम है. 31 दिसंबर, 2014 के बाद भारत प्रवास करने वाले अल्पसंख्यकों को CAA का लाभ नहीं मिल सकेगा.