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मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता - आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाएं

हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 34 साल की उम्र में जान दे दी. दिल्ली में एक अन्य घटना में 56 वर्षीय आईआरएस अधिकारी ने कथिर तौर पर अपनी कार में एसिड जैसा कोई पदार्थ खा लिया. एनसीआरबी के अनुसार, भारत में हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या कर अपनी जान दे देते हैं.

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मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता
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Published : Jun 17, 2020, 10:24 AM IST

नई दिल्ली : भारत में आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर मानसिक स्वास्थ्य और संबंधित मुद्दों पर एक बार फिर चर्चा जोरों पर है. हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 34 साल की उम्र में अपनी जान दे दी.

वहीं दिल्ली में एक अन्य घटना में 56 वर्षीय आईआरएस अधिकारी ने कथिर तौर पर अपनी कार में एसिड जैसा कोई पदार्थ खा लिया और अपने प्राण त्याग दिए. उनकी कार से बरामद सुसाइड नोट में कहा गया कि वह अस्वस्थ थे और उन्हें डर था कि उन्होंने अपने परिवार को संक्रमित कर दिया है. हालांकि, बाद में रिपोर्ट में उनकी कोरोना जांच नेगेटिव आई.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या कर अपनी जान दे देते हैं. आत्महत्या के कई कारण हैं जैसे करियर की समस्याएं, अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, पारिवारिक समस्याएं, मानसिक विकार, शराब की लत, वित्तीय नुकसान, पुराने दर्द आदि.

भारत में 2018 में आकस्मिक मौतों और आत्महत्याओं के लिए एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में देश में कुल 1,34,516 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिसमें 2017 की तुलना में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और 2018 के दौरान आत्महत्या की दर में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों से बात करते हुए भारत में वर्षों से आत्महत्या के मामलों में वृद्धि के कारणों का पता लगाने का प्रयास किया गया.

सर गंगाराम अस्पताल के मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ राजीव मेहता ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार, भारत एक आत्महत्या की राजधानी है, जहां मानसिक स्वास्थ्य को एक चिकित्सा आपातकाल के रूप में संबोधित करने की जरूरत है.

चौंकाने वाली बात यह है कि हम युवाओं को खो देते हैं. आत्महत्या की अधिकतम संख्या किशोरावस्था या शुरुआती वयस्कता में हो रही है, जिसके बाद वृद्धावस्था की आबादी आती है. हमें इन चीजों को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन की आवश्यकता है. हमें एक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है.

डॉ मेहता द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत में 80 प्रतिशत लोग जो आत्महत्या से मर गए, अवसाद से पीड़ित रहे, जो एक चिकित्सा और मानसिक बीमारी है जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं.

जैसे कैल्शियम की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस होता है, वैसे ही थायरोक्सिन की कमी से हाइपोथायरायडिज्म होता है, आयरन की कमी से एनीमिया होता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार ठीक इसी तरह सेरोटोनिन की कमी मानसिक अवसाद की ओर ले जाती है.

डॉ मेहता ने बताया कि हमारा शरीर रसायनों पर कार्य करता है. रसायन क्षीण होने पर अवसाद हो जाता है.

डॉक्टरों ने कथित तौर पर भारत सरकार (जीओआई) से एक राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रम की मांग की है, जैसा कि अधिकांश विकसित देशों में मौजूद है.

नई दिल्ली : भारत में आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर मानसिक स्वास्थ्य और संबंधित मुद्दों पर एक बार फिर चर्चा जोरों पर है. हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 34 साल की उम्र में अपनी जान दे दी.

वहीं दिल्ली में एक अन्य घटना में 56 वर्षीय आईआरएस अधिकारी ने कथिर तौर पर अपनी कार में एसिड जैसा कोई पदार्थ खा लिया और अपने प्राण त्याग दिए. उनकी कार से बरामद सुसाइड नोट में कहा गया कि वह अस्वस्थ थे और उन्हें डर था कि उन्होंने अपने परिवार को संक्रमित कर दिया है. हालांकि, बाद में रिपोर्ट में उनकी कोरोना जांच नेगेटिव आई.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या कर अपनी जान दे देते हैं. आत्महत्या के कई कारण हैं जैसे करियर की समस्याएं, अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, पारिवारिक समस्याएं, मानसिक विकार, शराब की लत, वित्तीय नुकसान, पुराने दर्द आदि.

भारत में 2018 में आकस्मिक मौतों और आत्महत्याओं के लिए एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में देश में कुल 1,34,516 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिसमें 2017 की तुलना में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और 2018 के दौरान आत्महत्या की दर में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों से बात करते हुए भारत में वर्षों से आत्महत्या के मामलों में वृद्धि के कारणों का पता लगाने का प्रयास किया गया.

सर गंगाराम अस्पताल के मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ राजीव मेहता ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार, भारत एक आत्महत्या की राजधानी है, जहां मानसिक स्वास्थ्य को एक चिकित्सा आपातकाल के रूप में संबोधित करने की जरूरत है.

चौंकाने वाली बात यह है कि हम युवाओं को खो देते हैं. आत्महत्या की अधिकतम संख्या किशोरावस्था या शुरुआती वयस्कता में हो रही है, जिसके बाद वृद्धावस्था की आबादी आती है. हमें इन चीजों को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन की आवश्यकता है. हमें एक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है.

डॉ मेहता द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत में 80 प्रतिशत लोग जो आत्महत्या से मर गए, अवसाद से पीड़ित रहे, जो एक चिकित्सा और मानसिक बीमारी है जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं.

जैसे कैल्शियम की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस होता है, वैसे ही थायरोक्सिन की कमी से हाइपोथायरायडिज्म होता है, आयरन की कमी से एनीमिया होता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार ठीक इसी तरह सेरोटोनिन की कमी मानसिक अवसाद की ओर ले जाती है.

डॉ मेहता ने बताया कि हमारा शरीर रसायनों पर कार्य करता है. रसायन क्षीण होने पर अवसाद हो जाता है.

डॉक्टरों ने कथित तौर पर भारत सरकार (जीओआई) से एक राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रम की मांग की है, जैसा कि अधिकांश विकसित देशों में मौजूद है.

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