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चुनाव में असम के चाय बागान मजदूरों की मांग - न्यूनतम वेतन, बुनियादी सुविधाएं और स्थायी रोजगार

असम के डिब्रूगढ़ में 11 अप्रैल को मतदान होगा. दूसरी तरफ चाय बागान के मजदूरों की मांग चुनाव प्रचार के शोर में दब सी गई है.य हां करीब 4.5 लाख मतदाता जनजातीय समुदायों से हैं जिनमें से काफी सारे लोग राज्य के चाय बागान मजदूर हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर.
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Published : Apr 8, 2019, 8:22 AM IST

गुवाहाटी. असम के डिब्रूगढ़ लोकसभा क्षेत्र में चाय बागान में काम करने वाले मजदूर विभिन्न दलों के उम्मीदवारों से न्यूनतम मजदूरी, अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा सुनिश्चित करने और स्थायी रोजगार जैसी मांगें कर रहे हैं ,लेकिन चुनाव प्रचार के शोर में उनकी आवाज दब सी गई है.


इस शहर में 11 अप्रैल को मतदान होना है. यहां करीब 4.5 लाख मतदाता जनजातीय समुदायों से हैं जिनमें से काफी सारे लोग राज्य के चाय बागान मजदूर हैं.

पढ़े - लोकसभा चुनाव के लिये कांग्रेस ने जारी किया चुनावी नारा 'अब होगा न्याय'

समुदाय से कई बार नेताओं के चुन कर संसद पहुंचने के बावजूद भी चाय बागान मजदूरों की दशा में सुधार नहीं आया है.इस बार समुदाय से चार उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं -- रामेश्वर तेली (भाजपा), पबन सिंह घटोवार (कांग्रेस), टाइटस भेंगरा (बहुजन मुक्ति पार्टी) और इसराईल नंदा (निर्दलीय) .

गौरतलब है कि 2017 में असम सरकार ने चाय बागान मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए एक सलाहकारी बोर्ड का गठन किया था. बोर्ड ने 351 रूपये की राशि की सिफारिश की थी लेकिन अंतिम फैसला लिया जाना अभी बाकी है.वर्तमान में चाय बागान मजदूर को महज 167 रूपये रोजाना पारिश्रमिक मिलती है.

मौजूदा सांसद रामेश्वर तेली के मुताबिक सरकार मजदूरी नहीं बढ़ा सकती और इस बारे में फैसला चाय बागान मालिकों को करना है.

वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री पबन सिंह घटोवार ने इस मुद्दे पर भाजपा के रूख पर सवाल उठाते हुए कहा कि, वह (घाटोवर) चाय बागान समुदाय को बेवकूफ बना रहे हैं. असम चाय मजदूर संघ (एसीएमएस) के महासचिव रूपेश ग्वाला ने इस मुद्दे पर कहा, ‘वे लोग कुछ नहीं सिर्फ राजनीति कर रहे हैं.’

बहुजन मुक्ति पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ रहे सेवानिवृत्त प्रोफेसर भेंगरा ने दावा किया कि चाय बागान मजदूरों के खातों में सरकार जो रकम जमा कर रही है वह उनके खुद के भविष्य निधि (पीएफ) के पैसे हैं. एसीएमएस महासचिव ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को चायवाला कहते हैं लेकिन उन्होंने चाय उगाने वाले चाय मजदूरों के विकास के लिए कुछ नहीं किया है.

उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ 36 समुदायों (जनजातियों) के बारे में बात कर रही लेकिन हम सभी 112 के लिए एसटी का दर्जा चाहते हैं. असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने भी राज्य के 112 समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की है.

गौरतलब है कि असम में 10 लाख चाय मजदूर 850 ‘टी एस्टेट’ में काम कर रहे हैं। राज्य देश में चाय का करीब 55 फीसदी हिस्सा उगाता है.

गुवाहाटी. असम के डिब्रूगढ़ लोकसभा क्षेत्र में चाय बागान में काम करने वाले मजदूर विभिन्न दलों के उम्मीदवारों से न्यूनतम मजदूरी, अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा सुनिश्चित करने और स्थायी रोजगार जैसी मांगें कर रहे हैं ,लेकिन चुनाव प्रचार के शोर में उनकी आवाज दब सी गई है.


इस शहर में 11 अप्रैल को मतदान होना है. यहां करीब 4.5 लाख मतदाता जनजातीय समुदायों से हैं जिनमें से काफी सारे लोग राज्य के चाय बागान मजदूर हैं.

पढ़े - लोकसभा चुनाव के लिये कांग्रेस ने जारी किया चुनावी नारा 'अब होगा न्याय'

समुदाय से कई बार नेताओं के चुन कर संसद पहुंचने के बावजूद भी चाय बागान मजदूरों की दशा में सुधार नहीं आया है.इस बार समुदाय से चार उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं -- रामेश्वर तेली (भाजपा), पबन सिंह घटोवार (कांग्रेस), टाइटस भेंगरा (बहुजन मुक्ति पार्टी) और इसराईल नंदा (निर्दलीय) .

गौरतलब है कि 2017 में असम सरकार ने चाय बागान मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए एक सलाहकारी बोर्ड का गठन किया था. बोर्ड ने 351 रूपये की राशि की सिफारिश की थी लेकिन अंतिम फैसला लिया जाना अभी बाकी है.वर्तमान में चाय बागान मजदूर को महज 167 रूपये रोजाना पारिश्रमिक मिलती है.

मौजूदा सांसद रामेश्वर तेली के मुताबिक सरकार मजदूरी नहीं बढ़ा सकती और इस बारे में फैसला चाय बागान मालिकों को करना है.

वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री पबन सिंह घटोवार ने इस मुद्दे पर भाजपा के रूख पर सवाल उठाते हुए कहा कि, वह (घाटोवर) चाय बागान समुदाय को बेवकूफ बना रहे हैं. असम चाय मजदूर संघ (एसीएमएस) के महासचिव रूपेश ग्वाला ने इस मुद्दे पर कहा, ‘वे लोग कुछ नहीं सिर्फ राजनीति कर रहे हैं.’

बहुजन मुक्ति पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ रहे सेवानिवृत्त प्रोफेसर भेंगरा ने दावा किया कि चाय बागान मजदूरों के खातों में सरकार जो रकम जमा कर रही है वह उनके खुद के भविष्य निधि (पीएफ) के पैसे हैं. एसीएमएस महासचिव ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को चायवाला कहते हैं लेकिन उन्होंने चाय उगाने वाले चाय मजदूरों के विकास के लिए कुछ नहीं किया है.

उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ 36 समुदायों (जनजातियों) के बारे में बात कर रही लेकिन हम सभी 112 के लिए एसटी का दर्जा चाहते हैं. असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने भी राज्य के 112 समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की है.

गौरतलब है कि असम में 10 लाख चाय मजदूर 850 ‘टी एस्टेट’ में काम कर रहे हैं। राज्य देश में चाय का करीब 55 फीसदी हिस्सा उगाता है.

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