हैदराबाद : दुनियाभर में कोरोना वायरस का फैलाव लगातार जारी है. लॉकडाउन के चलते दुनियाभर में गंभीर अपराधों की संख्या में भारी कमी आई है. लेकिन ऐसे हालातों में घरेलू हिंसा और ऑनलाइन धोखाधड़ी जैसे अपराधों में वृद्धि होने की भी संभावना जताई जा रही है. कई देशों में तो घरेलू हिंसा जैसे अपराधों में भारी वृद्धि दर्ज भी की गई है.
घर पर रहने का दुष्प्रभाव यह है कि घरेलू और पारिवारिक हिंसा होने की अधिक संभावना है. 2016 के आंकड़ों की बात करें तो इस दौरान यौन उत्पीड़न के करीब 40% मामले सामने आए थे. इसमें सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि बच्चों का शारीरिक शोषण सबसे ज्यादा माता-पिता द्वारा ही किया जाता है.
आइसोलेशन के दौरान घरेलू हिंसा पीड़ित बच्चों और महिलाओं को उन पर अत्याचार करने वालों के ही साथ रहना पड़ता है.
वहीं, इस बारे में ब्राजील से जर्मनी, इटली से चीन तक के उपमहाद्वीप के कार्यकर्ताओं और बचे हुए लोगों का कहना है कि वह पहले से ही घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार में खतरनाक वृद्धि देख रहे हैं.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ती घरेलू हिंसा कोरोना वायरस लॉकडाउन का ही संभावित दुष्प्रभाव है.
कई आपात स्थितियों में घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है, फिर चाहे वह संघर्ष, आर्थिक संकट या किसी बीमारी का प्रकोप हो.
इस बारे में महिला डेलीवर में मानवीय वकालत कर रही वरिष्ठ महिला प्रबंधक मारसी हर्ष (Marcy Hersh) का कहना है, 'ऐसा सभी संकट की स्थितियों में होता है.'
उन्होंने कहा कि हमें सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि आज हिंसा की दर बढ़ रही है और इससे निपटना वास्तविकता में चुनौती है.
कई देशों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को प्रतिबिंबित करने के लिए कानूनी या नीतिगत बदलावों का आह्वान किया गया है.
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में महिलाओं के खिलाफ सबसे अधिक हिंसा के मामले दर्ज किए जाते हैं. इस संबंध में महिलाओं की मदद के लिए यहां हेल्पलाइन लॉन्च की गई है.
दफ्तरों या कार्यस्थलों पर उत्पीड़न और चोरी के मामलों में इसलिए कमी आएगी क्योंकि वहां कोई मौजूद नहीं है. वहीं लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक पार्क और उद्यानों में लगाई गई पाबंदी से भी असामाजिक व्यवहार में कमी देखी गई है.
कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन के कई दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं. कई जगहों पर दुर्भावनापूर्ण कोरोना वायरस खांसी एक अपराध बन गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ ऐसी भी खबरें आईं हैं, जहां लोगों, पुलिस और चिकित्सा कर्मचारियों को निशाना बनाने की कोशिश की गई.
इस महामारी के कारण दुनियाभर में पीड़ितों के लिए जोखिम और बढ़ गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग ही सबसे बेहतर उपाय है. हमारा फर्ज है कि हम सरकार और संगठनों द्वारा कर रहे संघर्ष में उनका साथ दें और अपने पड़ोसियों और दोस्तों को जागरुक करें.