नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सभी बिना किसी कार्ययोजना के भ्रष्टाचार को समाप्त करने में लगे हुए हैं. यूपीए शासन के दौरान अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों और विरोध प्रदर्शनों से जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया, लेकिन इसका कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला है. भ्रष्टाचार निगरानी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में भ्रष्टाचार की दर 39 प्रतिशत है.
इसके अलावा, भारतीयों को सरकारी नौकरियां पाने के लिए व्यक्तिगत कनेक्शन का उपयोग करने पड़ता है या रिश्वत देने की आवश्यकता पड़ जाती है.
17 देशों में किए गए फील्डवर्क पर आधारित रिपोर्ट में भारत के बाद कंबोडिया (37 प्रतिशत) और इंडोनेशिया (30 प्रतिशत) का नाम आता है. मालदीव और जापान में भ्रष्टाचार की दर सबसे कम दो प्रतिशत है.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा तैयार किए गए भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2020 में 180 देशों में भारत 80वें स्थान पर है.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में गिरावट, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और विकास लक्ष्यों के साथ मानव विकास सूचकांक के खराब प्रदर्शन के पीछे भ्रष्टाचार ही वजह है.
रिपोर्ट ने राजनीति में धन के प्रभाव का विश्लेषण किया गया और निष्कर्ष में पाया कि भ्रष्टाचार उन देशों में व्याप्त है जहां पूंजीवादी चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं. निगरानी प्रणालियां सत्तारूढ़ दलों के हिसाब से चलती हैं. वहीं धीमी और जटिल न्यायिक प्रक्रिया के चलते राजनीतिक भ्रष्टाचारियों पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है.
हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जहां, एक व्यक्ति ने सिर्फ इसलिए चलती हुई ट्रेन के नीचे आकर आत्महत्या कर ली क्योंकि वह सरकारी अस्पतालों में अपनी पत्नी के इलाज के लिए रिश्वत देने में असमर्थता था.
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त नागराज विट्ठल ने तर्क दिया कि कैसे भ्रष्ट राजनेताओं, अधिकारियों, व्यापारियों, गैर सरकारी संगठनों और अपराधियों के बीच संबंध ने देश को दलदल में धकेल दिया है. उन्होंने भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के लिए दिशा-निर्देश प्रस्तावित किए थे, जिसको दो दशक बीत चुके हैं.
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विट्टल ने सरकार से मांग कि वह युवाओं को भ्रष्टाचार से लड़ने में सक्षम बनाने के लिए राष्ट्रीय सतर्कता कोर (एनवीसी) की स्थापना करे और भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले नागरिकों को कानूनी संरक्षण प्रदान करने के लिए व्हिसलब्लोअर अधिनियम को मंजूरी दें. उन्होंने कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों की जांच करने के लिए पूर्व अनुमति प्राप्त करने के चलते उचित कार्रवाई नहीं हो पाती है.
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को जांच के लिए लगभग 802 करोड़ रुपये आवंटित किए जाते हैं. अगर सीबीआई की गतिविधियों को देखा जाए तो इनमें जनता के लिए बनाए गए सिस्टम में खराबियां साफ दिखाई देती हैं. हांगकांग, सिंगापुर, फ्रांस और इटली पहले ही भ्रष्टाचार विरोधी ब्रिगेड का नेतृत्व कर चुके हैं.
कोरोना महामारी के समय कोरोना राहत कोष में पक्षपात और भ्रष्टाचार फैलने से देश की कल्याणकारी अवधारणा अब कायम नहीं है. अब हमें भ्रष्टाचार की बेड़ियों को तोड़कर भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की जरुरत है.