नई दिल्ली: शिक्षा में सुधार को लेकर के कस्तूरीरंजन की रिपोर्ट विवादों में आ गई है. इसमें हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने की बात कही गई थी. विवाद बढ़ते ही इस सुझाव को हटा दिया गया है. हालांकि, इस रिपोर्ट में और भी कई अच्छी बातें हैं और कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं. इस पर विचार करने के लिए लोगों के सामने रिपोर्ट रखी गई है. 30 जून तक सुझाव देने का समय दिया गया है.
जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, 'कुछ बदलावों का सुझाव देना पर्याप्त नहीं है. देश की समकालीन स्थिति को ध्यान में रखते हुए, शिक्षा प्रणाली को उसकी जड़ों से ठीक किया जाना चाहिए'
- देश के पहले प्रधानमंत्री द्वारा इन सुनहरे शब्दों को कहे हुए सात दशक से अधिक समय बीत चुका है. आज तक उन शब्दों के महत्व को समझते हुए देश में कम नहीं हुआ है.
- प्राथमिक शिक्षा से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक हमारी शिक्षा प्रणाली कई खामियों से भरपूर्ण है.
- दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का अनुमान एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम इंडिया) की एक रिपोर्ट में लिखे गए तथ्य से लगाया जा सकता है. इसमें कहा गया है कि भारत अंतरराष्ट्रीय शिक्षा मानकों को प्राप्त करने में छह और पीढ़ियों का समय लेगा.
- इस निराशा भरे हालात की पृष्ठभूमि में डॉ. के कस्तूरी रंगन समिति ने हाल ही में एक मसौदा शिक्षा नीति प्रस्तुत की.
- इस समिति की रिपोर्ट उच्च स्तरीय शिक्षा के प्रसार के माध्यम से एक प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाले समाज की प्राप्ति का आह्वान करती है.
- इस समिति ने शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए कुल 19 सुधारों का सुझाव दिया है.
- समिति का कहना है कि 2030 तक शिक्षा के क्षेत्र में 20 प्रतिशत बजटीय आवंटन को बढ़ा देना चाहिए.
- समिति ने निम्न मानक शिक्षा वाले महाविद्यालयों के विघटन और विश्वविद्यालयों के साथ उनके विलय की सिफारिश की है.
- अब यह समय है कि हमारे सभी शिक्षाविदों की शिक्षा प्रणाली को सही किया जाए. इसमें निम्नतर गुणवत्ता वाले शिक्षक, खराब मानक, परीक्षा का तनाव, बेकार डिग्री और इसके साथ जुड़ी अन्य सभी चीजों को हटा देना होगा.
- महात्मा गांधी ने लोगों के बीच नई तालीम का प्रस्ताव रखा था. यह एक ऐसी शिक्षा प्रणाली थी, जिसमें काम और ज्ञान के मिश्रण की बात कही गई थी.
- भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद नए शासकों ने नई तालीम को पूरी तरह से दर किनार कर दिया.
- हालांकि, वे एक वैकल्पिक शैक्षिक प्रणाली लाने में सफल नहीं हो सके. वे ऐसा कोई माध्यम नई ला सके, जिसके प्रयोग से हमारे बच्चों को ज्ञान मिलने के साथ-साथ कार्य अनुभव भी मिल सके.
- विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि 2030 तक लगभग 80 करोड़ अकुशल युवा नौकरी के बाजार में प्रवेश करेंगे. उनमें से अधिकांश भारतीय होंगे.
- अपने सभी विशिष्ट दोषों के साथ हमारे देश की शिक्षा प्रणाली हास्य अवस्था में पहुंच गई है. भारत की शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए मजबूत तकनीकों की आवश्यकता है.
- कस्तूरी रंगन समिति ने 1986 में शुरू की गई शिक्षा प्रणाली, जिसकी समीक्षा 1992 में की गई, उसे पूरी तरह से खारिज कर दिया है.
- कई अन्य सिफारिशों के अलावा समिति ने 3 से 18 वर्ष के बच्चों को कवर करने के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का विस्तार करने का सुझाव दिया है. 5 + 3 + 3 + 4 पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संरचना बच्चों के संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास के चरणों के आधार पर है.
- मूलभूत चरण, जिसमें 3 से 8 साल के बच्चे आते हैं, उसके बाद पूर्व-प्राथमिक प्लस के 3 साल (ग्रेड 1-2), मध्य चरण में 11-14 साल के बच्चे (ग्रेड 6-8) और माध्यमिक चरण में 14 से 18 साल के बच्चे (ग्रेड 9-12). यह नीति स्कूलों को स्कूल परिसरों में पुनर्गठित करने की बात कहती है.
- इस समिति ने इस तरह की कई प्रभावशाली सिफारिशों और बुलंद उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है.
- अनावश्यक बहस और विवादों पर कीमती समय बर्बाद करने के बजाय राज्य और केंद्र सरकार को हमारी शिक्षा प्रणाली को सही रास्ते पर स्थापित करने के लिए जल्द से जल्द कार्य करना चाहिए.
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नई शिक्षा नीति की ड्राफ्ट रिपोर्ट पर विवाद, आप भी दे सकते हैं अपने सुझाव
नई शिक्षा नीति 2019 की रिपोर्ट पर विवाद हो गया है. इस रिपोर्ट में कई ऐसी बातें हैं, जिससे शिक्षा का स्तर सुधर सकता है. गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा किस तरीके से हासिल किया जाए, कमेटी ने इस पर विस्तार से अपनी राय रखी है. अब लोगों से इस पर सुझाव मांगे गए हैं. आप 30 जून तक सुझाव दे सकते हैं.
नई दिल्ली: शिक्षा में सुधार को लेकर के कस्तूरीरंजन की रिपोर्ट विवादों में आ गई है. इसमें हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने की बात कही गई थी. विवाद बढ़ते ही इस सुझाव को हटा दिया गया है. हालांकि, इस रिपोर्ट में और भी कई अच्छी बातें हैं और कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं. इस पर विचार करने के लिए लोगों के सामने रिपोर्ट रखी गई है. 30 जून तक सुझाव देने का समय दिया गया है.
जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, 'कुछ बदलावों का सुझाव देना पर्याप्त नहीं है. देश की समकालीन स्थिति को ध्यान में रखते हुए, शिक्षा प्रणाली को उसकी जड़ों से ठीक किया जाना चाहिए'
- देश के पहले प्रधानमंत्री द्वारा इन सुनहरे शब्दों को कहे हुए सात दशक से अधिक समय बीत चुका है. आज तक उन शब्दों के महत्व को समझते हुए देश में कम नहीं हुआ है.
- प्राथमिक शिक्षा से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक हमारी शिक्षा प्रणाली कई खामियों से भरपूर्ण है.
- दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का अनुमान एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम इंडिया) की एक रिपोर्ट में लिखे गए तथ्य से लगाया जा सकता है. इसमें कहा गया है कि भारत अंतरराष्ट्रीय शिक्षा मानकों को प्राप्त करने में छह और पीढ़ियों का समय लेगा.
- इस निराशा भरे हालात की पृष्ठभूमि में डॉ. के कस्तूरी रंगन समिति ने हाल ही में एक मसौदा शिक्षा नीति प्रस्तुत की.
- इस समिति की रिपोर्ट उच्च स्तरीय शिक्षा के प्रसार के माध्यम से एक प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाले समाज की प्राप्ति का आह्वान करती है.
- इस समिति ने शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए कुल 19 सुधारों का सुझाव दिया है.
- समिति का कहना है कि 2030 तक शिक्षा के क्षेत्र में 20 प्रतिशत बजटीय आवंटन को बढ़ा देना चाहिए.
- समिति ने निम्न मानक शिक्षा वाले महाविद्यालयों के विघटन और विश्वविद्यालयों के साथ उनके विलय की सिफारिश की है.
- अब यह समय है कि हमारे सभी शिक्षाविदों की शिक्षा प्रणाली को सही किया जाए. इसमें निम्नतर गुणवत्ता वाले शिक्षक, खराब मानक, परीक्षा का तनाव, बेकार डिग्री और इसके साथ जुड़ी अन्य सभी चीजों को हटा देना होगा.
- महात्मा गांधी ने लोगों के बीच नई तालीम का प्रस्ताव रखा था. यह एक ऐसी शिक्षा प्रणाली थी, जिसमें काम और ज्ञान के मिश्रण की बात कही गई थी.
- भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद नए शासकों ने नई तालीम को पूरी तरह से दर किनार कर दिया.
- हालांकि, वे एक वैकल्पिक शैक्षिक प्रणाली लाने में सफल नहीं हो सके. वे ऐसा कोई माध्यम नई ला सके, जिसके प्रयोग से हमारे बच्चों को ज्ञान मिलने के साथ-साथ कार्य अनुभव भी मिल सके.
- विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि 2030 तक लगभग 80 करोड़ अकुशल युवा नौकरी के बाजार में प्रवेश करेंगे. उनमें से अधिकांश भारतीय होंगे.
- अपने सभी विशिष्ट दोषों के साथ हमारे देश की शिक्षा प्रणाली हास्य अवस्था में पहुंच गई है. भारत की शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए मजबूत तकनीकों की आवश्यकता है.
- कस्तूरी रंगन समिति ने 1986 में शुरू की गई शिक्षा प्रणाली, जिसकी समीक्षा 1992 में की गई, उसे पूरी तरह से खारिज कर दिया है.
- कई अन्य सिफारिशों के अलावा समिति ने 3 से 18 वर्ष के बच्चों को कवर करने के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का विस्तार करने का सुझाव दिया है. 5 + 3 + 3 + 4 पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संरचना बच्चों के संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास के चरणों के आधार पर है.
मूलभूत चरण, जिसमें 3 से 8 साल के बच्चे आते हैं, उसके बाद पूर्व-प्राथमिक प्लस के 3 साल (ग्रेड 1-2), मध्य चरण में 11-14 साल के बच्चे (ग्रेड 6-8) और माध्यमिक चरण में 14 से 18 साल के बच्चे (ग्रेड 9-12). यह नीति स्कूलों को स्कूल परिसरों में पुनर्गठित करने की बात कहती है.
- इस समिति ने इस तरह की कई प्रभावशाली सिफारिशों और बुलंद उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है.
- अनावश्यक बहस और विवादों पर कीमती समय बर्बाद करने के बजाय राज्य और केंद्र सरकार को हमारी शिक्षा प्रणाली को सही रास्ते पर स्थापित करने के लिए जल्द से जल्द कार्य करना चाहिए.
Conclusion: