नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) लोकसभा में आसानी से पारित हो गया. इसके पक्ष में 311 सांसदों ने मतदान किया. इसके बाद इस बिल को आज राज्यसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पेश किया है. इस पर ईटीवी भारत ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी से बात की. उन्होंने कहा, ' देश में अगर यह विधेयक लागू होता है तो भविष्य में यह काले कानून के रूप में साबित होगा.
उन्होंने कहा,'सदन में जिस कानून के लिए गृह मंत्री अमित शाह जद्दोजहद कर रहे हैं वह संविधान के साथ-साथ देश की संस्कृति के भी खिलाफ हैं.
राशिद अल्वी ने कहा , 'यह कैसा कानून है जिसके पास हो जाने के बाद सिर्फ एक ही धर्म के लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अपने कागजात दिखाने होंगे बाकी धर्म के लोगों को किसी भी तरीके की परेशानी नहीं होगी और उन्हें किसी भी दस्तावेज दिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
कांगेस नेता ने कहा कि भारत को आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी और सरदार पटेल ने कभी नहीं सोच होगा कि भारत में धर्म के आधार पर लोगों को बांट कर नागरिकता दी जाएगी.
उन्होंने बीजेपी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि अमित शाह वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं, लेकिन देश के लोग समझार हैं और उनके इस मंसूबे कामयाब नहीं होने देंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह देश को बर्बादी की तरफ ले कर जा रहें हैं.
इस बिल को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों में हो रहे विरोध पर राशिद अल्वी ने कहा कि मोदी सरकार देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कानून बनाने लगी है.
उन्होंने कहा कि कश्मीर में अलग कानून है तो पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट ( आईएलपी) लागू कर दिया गया है.
राज्यसभा में CAB पर मोदी सरकार का समीकरण जानें
कांग्रेस नेता ने कहा केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा , 'यदि राज्यसभा में सभी विपक्षी दल एक साथ आ जायें तो यह बिल किसी भी हालत में पास नहीं होगा, लेकिन केंद्र की मौजूदा सरकार सीबीआई,ईडी और इनकम टैक्स के जरिए नेताओं को डरा कर समर्थन ले लेगी.
उन्होंने कहा , ' यह निश्चित है यदि यह बिल पास हो जाता है तो देश के मुसलमानों को नागरिकता साबित करने के लिए हर हालत में अपने दस्तावेज दिखाने होंगे.
गौरतलब है कि यह विधेयक अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम के बाद अब गृह मंत्रालय के आदेश के बाद मणिपुर में भी नहीं लागू होगा, क्योंकि यहां इनर लाइन परमिट ( आईएलपी) व्यवस्था है. इसके साथ ही संविधान की छठी अनुसूची के तहत शासित होने वाले असम मेघालय और त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्र भी इसके दायरे से बाहर होंगे.