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बिहार के गांव में मूलभूत सुविधाओं का टोटा, ग्रामीणों की स्थिति बदहाल

बिहार के अररिया जिले के रामराई गांव में आज तक बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. इस गांव के 90 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं. पढ़ें विस्तार से...

नीतिश कुमार
नीतिश कुमार
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Published : Sep 25, 2020, 10:42 PM IST

Updated : Sep 25, 2020, 11:15 PM IST

पटना : आजादी के 73 वर्षों के बाद भी बिहार के अररिया जिले के रामराई गांव में स्कूलों, अस्पतालों और सड़कों जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. गांव की दयनीय स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी 90 प्रतिशत आबादी निरक्षर है. उनकी नई पीढ़ी के पास भी गांव में शैक्षणिक सुविधाओं का अभाव है.

रामराई गांव के निवासियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. गांव में स्वच्छता और सफाई की कोई सुविधा नहीं है. यहां तक कि सरकार इस गांव में अपने बहुचर्चित स्वच्छ भारत अभियान के तहत एक भी शौचालय का निर्माण नहीं कर पाई है.

यहां के लोगों को वैकल्पिक खाना पकाने की ऊर्जा तक नहीं पहुंची है. गांव के घर अभी भी लकड़ी और पेड़ों की पत्तियों का उपयोग खाना पकाने की ऊर्जा के अपने मुख्य स्रोत के रूप में कर रहे हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि वह उन अपराधियों की तरह महसूस करते हैं, जिन्हें भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान कालापानी भेजा जाता था. उनका कहना है कि सरकार ने उन्हें भगवान की दया में छोड़ दिया है. यह गांव अंडमान और निकोबार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह तीन तरफ से नदियों से घिरा हुआ है.

स्थानीय लोगों के अनुसार, इस गांव को देश के विकासशील गांवों की सूची में शामिल नहीं किया गया है, भले ही यह गांव अररिया शहर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और बिहार के जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है.

पटना : आजादी के 73 वर्षों के बाद भी बिहार के अररिया जिले के रामराई गांव में स्कूलों, अस्पतालों और सड़कों जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. गांव की दयनीय स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी 90 प्रतिशत आबादी निरक्षर है. उनकी नई पीढ़ी के पास भी गांव में शैक्षणिक सुविधाओं का अभाव है.

रामराई गांव के निवासियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. गांव में स्वच्छता और सफाई की कोई सुविधा नहीं है. यहां तक कि सरकार इस गांव में अपने बहुचर्चित स्वच्छ भारत अभियान के तहत एक भी शौचालय का निर्माण नहीं कर पाई है.

यहां के लोगों को वैकल्पिक खाना पकाने की ऊर्जा तक नहीं पहुंची है. गांव के घर अभी भी लकड़ी और पेड़ों की पत्तियों का उपयोग खाना पकाने की ऊर्जा के अपने मुख्य स्रोत के रूप में कर रहे हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि वह उन अपराधियों की तरह महसूस करते हैं, जिन्हें भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान कालापानी भेजा जाता था. उनका कहना है कि सरकार ने उन्हें भगवान की दया में छोड़ दिया है. यह गांव अंडमान और निकोबार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह तीन तरफ से नदियों से घिरा हुआ है.

स्थानीय लोगों के अनुसार, इस गांव को देश के विकासशील गांवों की सूची में शामिल नहीं किया गया है, भले ही यह गांव अररिया शहर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और बिहार के जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है.

Last Updated : Sep 25, 2020, 11:15 PM IST
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