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पानीपत फिल्म को लेकर शुरू हुए विवाद में पाकिस्तान की एंट्री

फिल्म पानीपत काफी विवादों में है. इस फिल्म को लेकर इंटरनेशनल कंट्रोवर्सी हो रही है. अफगानिस्तान से पूर्व राजदूत ने ट्वीट कर संजय दत्त को रिश्ते बिगड़ने की दुहाई दी है तो वहीं पाकिस्तान बेवजह आग में घी डालने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच पानीपत के तीसरे युद्ध की चर्चा होने लगी है. ईटीवी भारत हरियाणा की टीम पानीपत के मैदान में पहुंची और इतिहास के उन पन्नों को पलटने की कोशिश की.

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Published : Dec 6, 2019, 10:19 PM IST

चंडीगढ़ : फिल्म पानीपत का ट्रेलर रिलीज होने के बाद से सराहना और आलोचना दोनों बटोर रहा है. आशुतोष गोवारिकर की आने वाली इस फिल्म के लिए सिनेमा जगत के लोग शुभकामनाएं दे रहे हैं. वहीं कुछ लोग ट्विटर पर फिल्म की तुलना बाजीराव मस्तानी और पदमावत से कर रहे हैं. फिल्म के जिस किरदार को लेकर विवाद छिड़ गया है, वो है अहमद शाह अब्दाली का किरदार.

अफगानिस्तान जता रहा है फिल्म पर ऐतराज
फिल्म के ट्रेलर के बाद भारत में अफगास्तिान के पूर्व राजदूत डॉ. शाइदा अब्दाली ने चिंता जताई. उन्होंने कहा भारतीय फिल्में भारत-अफगानिस्तान संबंध को मजबूत करने में भूमिका निभाती रही हैं. अफगानिस्तान के लोगों का मानना है कि फिल्म में इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है. उनका मानना है कि अब्दाली के किरदार को नकारात्मक पेश किया है. अब्दाली को अफगान सम्मान से 'अहमद शाह बाबा' कहते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पाकिस्तान बन रहा बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना!
इन सब के बीच पाकिस्तान भी उतर आया है. पाकिस्तान के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री फवाद चौधरी ने फिल्म 'पानीपत' पर सवाल उठाया है. रिलीज से पहले ही फवाद चौधरी ने कहा कि इसमें मुसलमान शासक को जालिम दिखाने के लिए इतिहास को तोड़ मरोड़ दिया गया है. चौधरी ने ट्वीट में कहा, 'जब बेवकूफ लोग आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की विचारधारा के तहत इतिहास को फिर से लिखते हैं तो फिर उनसे हम ऐसे की ही उम्मीद कर सकते हैं. देखिए, आगे-आगे होता है क्या.'

इस पूरे बहस में इतिहास की चर्चा की जा रही है. लोग आपस में बहस कर रहे हैं कि आखिर हुआ क्या था. अब्दाली हीरो था या विलेन? क्या है इस फिल्म में जो आने से पहले चारों तरफ तहलका मचा रही है. इस सभी बातों का जवाब इतिहास देता है और ईटीवी भारत हरियाणा की टीम इसी इतिहास से धूल की परतों को उतारने पानीपत पहुंची. वही पानीपत जहां से इस इतिहास को ये कहानी मिली. वही पानीपत जो अहमद शाह अब्दाली और सदा शिव भाऊ के बीच हुए युद्ध का गवाह है.

इतिहास में क्या हुआ था?
पानीपत की तीसरी जंग आज से करीब ढाई सौ साल पहले लड़ी गई थी. फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही इसे लेकर उत्साह भी है और एक तबका फिक्रमंद भी है. हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा क्षत्रपों और अफगान सेना के बीच हुई थी. 14 जनवरी 1761 को हुए इस युद्ध में अफ़ग़ान सेना की कमान अहमद शाह अब्दाली-दुर्रानी के हाथों में थी.

अहमद शाह अब्दाली ने बादशाह बनने के पहले भी और बाद में भी कई निर्णायक जंगें लड़ी थीं, लेकिन जनवरी 1761 में दिल्ली के पास पानीपत के मैदान में लड़ा गया युद्ध, एक सेनापति और बादशाह के तौर पर अहमद शाह अब्दाली की जिंदगी की सबसे बड़ी जंग थी. ये वो दौर था जब एक तरफ मराठा और दूसरी तरफ अब्दाली, दोनों ही अपनी बादशाहत का दायरा बढ़ाने में जुटे थे और अपने इलाके का विस्तार करना चाहते थे.

पढ़ें- इलाहाबाद HC ने पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव याचिका खारिज की

दुश्मन नहीं थे, एक दुसरे के रास्ते के कांटे थे!
मराठों ने भी अपने साम्राज्य का तेजी से विस्तार किया था. यही वजह थी कि अहमद शाह अब्दाली मराठों को अपने रास्ते का कांटा समझने लगा था. अहमद शाह अब्दाली के लिए पानीपत की तीसरी लड़ाई बहुत जरूरी हो गई थी और नतीजा हुआ कि जंग में मराठा और अब्दाली थे.

मराठों ने अपने असाधारण सेनानी सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में अब्दाली से दो-दो हाथ करने के लिए कूच किया. सदाशिवराव भाऊ मराठों के जांचे-परखे योद्धा थे. उनके नेतृत्व में मराठा सेना का मनोबल सातवें आसमान पर था. पानीपत में दोनों सेनाएं आमने-सामने आ भिड़ीं. एक भीषण युद्ध शुरू हुआ. मराठा सेना संख्याबल में कम थी, लेकिन अफगान सेना पर भारी पड़ रही थी तभी विश्वासराव को गोली लग गई. वो मैदान में गिर पड़े. भाऊ विश्वासराव से बहुत प्यार करते थे. जैसे ही उन्होंने उनको गिरते हुए देखा, वो अपने हाथी से उतरे और एक घोड़े पर सवार हो कर दुश्मनों के बीच घुस गए. अंजाम की परवाह किए बगैर.

भाऊ का हौदा खाली देख सेना में मच गई थी भगदड़
सदाशिवराव भाऊ के पीछे उनके हाथी पर हौदा खाली नजर आ रहा था. उसे खाली देख कर मराठा सैनिकों में दहशत फैल गई. उन्हें लगा कि उनका सेनापति युद्ध में मारा गया. अफरा-तफरी मच गई. मनोबल एकदम से पाताल छूने लगा. अफगान सेना ने इसका फौरन फायदा उठाया. वो घबराई हुई मराठा सेना पर नए जोश से टूट पड़े. हालांकि भाऊ अंतिम सांस तक लड़ते रहे, लेकिन एक वक्त आया जब अफगानों ने भाऊ का सिर कलम कर दिया. बताया जाता है कि अफगानी उनका सिर भी साथ ले गए.

इस युद्ध में हुई हार से मराठी साम्राज्य को काफी अघात पहुंचा. पेशवाई का दबदबा समाप्त हो गया. पानीपत के पहले जो मराठा साम्राज्य सफलता की उंचाइयां छू रहा था, वो एकदम से कमजोर, दीन-हीन हो गया.

चंडीगढ़ : फिल्म पानीपत का ट्रेलर रिलीज होने के बाद से सराहना और आलोचना दोनों बटोर रहा है. आशुतोष गोवारिकर की आने वाली इस फिल्म के लिए सिनेमा जगत के लोग शुभकामनाएं दे रहे हैं. वहीं कुछ लोग ट्विटर पर फिल्म की तुलना बाजीराव मस्तानी और पदमावत से कर रहे हैं. फिल्म के जिस किरदार को लेकर विवाद छिड़ गया है, वो है अहमद शाह अब्दाली का किरदार.

अफगानिस्तान जता रहा है फिल्म पर ऐतराज
फिल्म के ट्रेलर के बाद भारत में अफगास्तिान के पूर्व राजदूत डॉ. शाइदा अब्दाली ने चिंता जताई. उन्होंने कहा भारतीय फिल्में भारत-अफगानिस्तान संबंध को मजबूत करने में भूमिका निभाती रही हैं. अफगानिस्तान के लोगों का मानना है कि फिल्म में इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है. उनका मानना है कि अब्दाली के किरदार को नकारात्मक पेश किया है. अब्दाली को अफगान सम्मान से 'अहमद शाह बाबा' कहते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पाकिस्तान बन रहा बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना!
इन सब के बीच पाकिस्तान भी उतर आया है. पाकिस्तान के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री फवाद चौधरी ने फिल्म 'पानीपत' पर सवाल उठाया है. रिलीज से पहले ही फवाद चौधरी ने कहा कि इसमें मुसलमान शासक को जालिम दिखाने के लिए इतिहास को तोड़ मरोड़ दिया गया है. चौधरी ने ट्वीट में कहा, 'जब बेवकूफ लोग आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की विचारधारा के तहत इतिहास को फिर से लिखते हैं तो फिर उनसे हम ऐसे की ही उम्मीद कर सकते हैं. देखिए, आगे-आगे होता है क्या.'

इस पूरे बहस में इतिहास की चर्चा की जा रही है. लोग आपस में बहस कर रहे हैं कि आखिर हुआ क्या था. अब्दाली हीरो था या विलेन? क्या है इस फिल्म में जो आने से पहले चारों तरफ तहलका मचा रही है. इस सभी बातों का जवाब इतिहास देता है और ईटीवी भारत हरियाणा की टीम इसी इतिहास से धूल की परतों को उतारने पानीपत पहुंची. वही पानीपत जहां से इस इतिहास को ये कहानी मिली. वही पानीपत जो अहमद शाह अब्दाली और सदा शिव भाऊ के बीच हुए युद्ध का गवाह है.

इतिहास में क्या हुआ था?
पानीपत की तीसरी जंग आज से करीब ढाई सौ साल पहले लड़ी गई थी. फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही इसे लेकर उत्साह भी है और एक तबका फिक्रमंद भी है. हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा क्षत्रपों और अफगान सेना के बीच हुई थी. 14 जनवरी 1761 को हुए इस युद्ध में अफ़ग़ान सेना की कमान अहमद शाह अब्दाली-दुर्रानी के हाथों में थी.

अहमद शाह अब्दाली ने बादशाह बनने के पहले भी और बाद में भी कई निर्णायक जंगें लड़ी थीं, लेकिन जनवरी 1761 में दिल्ली के पास पानीपत के मैदान में लड़ा गया युद्ध, एक सेनापति और बादशाह के तौर पर अहमद शाह अब्दाली की जिंदगी की सबसे बड़ी जंग थी. ये वो दौर था जब एक तरफ मराठा और दूसरी तरफ अब्दाली, दोनों ही अपनी बादशाहत का दायरा बढ़ाने में जुटे थे और अपने इलाके का विस्तार करना चाहते थे.

पढ़ें- इलाहाबाद HC ने पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव याचिका खारिज की

दुश्मन नहीं थे, एक दुसरे के रास्ते के कांटे थे!
मराठों ने भी अपने साम्राज्य का तेजी से विस्तार किया था. यही वजह थी कि अहमद शाह अब्दाली मराठों को अपने रास्ते का कांटा समझने लगा था. अहमद शाह अब्दाली के लिए पानीपत की तीसरी लड़ाई बहुत जरूरी हो गई थी और नतीजा हुआ कि जंग में मराठा और अब्दाली थे.

मराठों ने अपने असाधारण सेनानी सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में अब्दाली से दो-दो हाथ करने के लिए कूच किया. सदाशिवराव भाऊ मराठों के जांचे-परखे योद्धा थे. उनके नेतृत्व में मराठा सेना का मनोबल सातवें आसमान पर था. पानीपत में दोनों सेनाएं आमने-सामने आ भिड़ीं. एक भीषण युद्ध शुरू हुआ. मराठा सेना संख्याबल में कम थी, लेकिन अफगान सेना पर भारी पड़ रही थी तभी विश्वासराव को गोली लग गई. वो मैदान में गिर पड़े. भाऊ विश्वासराव से बहुत प्यार करते थे. जैसे ही उन्होंने उनको गिरते हुए देखा, वो अपने हाथी से उतरे और एक घोड़े पर सवार हो कर दुश्मनों के बीच घुस गए. अंजाम की परवाह किए बगैर.

भाऊ का हौदा खाली देख सेना में मच गई थी भगदड़
सदाशिवराव भाऊ के पीछे उनके हाथी पर हौदा खाली नजर आ रहा था. उसे खाली देख कर मराठा सैनिकों में दहशत फैल गई. उन्हें लगा कि उनका सेनापति युद्ध में मारा गया. अफरा-तफरी मच गई. मनोबल एकदम से पाताल छूने लगा. अफगान सेना ने इसका फौरन फायदा उठाया. वो घबराई हुई मराठा सेना पर नए जोश से टूट पड़े. हालांकि भाऊ अंतिम सांस तक लड़ते रहे, लेकिन एक वक्त आया जब अफगानों ने भाऊ का सिर कलम कर दिया. बताया जाता है कि अफगानी उनका सिर भी साथ ले गए.

इस युद्ध में हुई हार से मराठी साम्राज्य को काफी अघात पहुंचा. पेशवाई का दबदबा समाप्त हो गया. पानीपत के पहले जो मराठा साम्राज्य सफलता की उंचाइयां छू रहा था, वो एकदम से कमजोर, दीन-हीन हो गया.

Intro:एंकर -बाइट --पानीपत का तृतीय युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ। पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा साम्राज्य सदाशिवा राव भाउ और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली, जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है के बीच 14 जनवरी 1761 को वर्तमान हरियाणा मे स्थित पानीपत के मैदान मे हुआ। इस युद्ध मे दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब सुजाउद्दौला  ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया। हलाकि इस युद्ध में मराठाओ को हार का मुँह देखना पड़ा एटवी भारत की टीम ने पानीपत युद्ध स्मारक काले आम्ब का दौरा किया और इतिहास से रुकरू कराने का प्रयास करेगी , हाल ही में पानीपत फिल्म रिलीज होने जा रही है जिसमे पानीपत के साथ इतिहास के बारे में दर्शाया गया है।  हम आपको बताएंगे कि पानीपत का इतिहास क्या है पानीपत का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है पानीपत के अंदर एक काला आम युद्ध स्मारक बनाया गया है जो अपने आप में एक इतिहास है आपको बता दें कि काला आम जहां पर बनाया गया है यहां पर उबड़ खाबड़ जगह थी। एक विशाल आम का पेड़ था जिस पेड़ पर सिर्फ काले आम लगते थे सदाशिव राव  भाऊ व इब्राहिम गांधी यहां पर आए और उन्होंने यहां का भ्रमण किया मोर्चा बनाने के लिए निरीक्षण किया गया।  एक छोटे से गांव को भी यहां से उठाया गया जिसका नाम शिवा खेड़ी था जहां पर एक बड़ा जोहड़  था युद्ध में पानी की जरूरत होती है तो व तोपों  के लिए भी पानी की जरूरत होती है, सदाशिव राव ने यहां पर देखा कि एक पेड़ के नीचे दोपहर के वक्त 250  के करीब गाय बैठी हुई थी और इतना बड़ा पेड़ देखकर उन्होंने इसके बारे में पूछा तो बताया गया कि यह काले आम का पेड़ है जिस पर काले आम लगते हैं तो इस पर सदाशिवराव ने कहा कि यह अच्छी जगह है यहां पर ही मोर्चा बनाएंगे क्योंकि यहां पर एक जोहड़ , यमुना नदी ,यहां से जाती थी और साथ में एक नहर लगती थी पानी की उचित व्यवस्था होने के कारण जहां पर मोर्चा बनाने का फैसला लिया।  अब्दाली ने सिवाह और डाहर  गांव के बीच डेरा डाला हुआ था यह दोनों सेनाएं आमने-सामने थी।  इनकी तो टोपे भी आमने सामने रखी गई थी ऊंचाई की जगह को साफ करके यहाँ पर मोर्चा बनाया गया। तोप को  इब्राहिम गांधी ने चालू किया जिसका नाम अटक था  इससे पहला गोला अब्दाली की सेना पर दागा  गया।  इस तोप की  18 हाथ की लंबी नाल थी गोला दागने से अब्दाली की सेना में  खलबली मच गई। पानीपत का युद्ध हुआ वह इसी स्थान पर हुआ था जिसका नाम काला आम है इसके साथ ही युद्ध इतना भयंकर था कि यहां पर लाशों के ढेर लग गए थे इन लाशों को यहां से उठाने वाला कोई नहीं था यहाँ तक की इन  लाशों को चील- कव्वे व कुत्तों ने भी नहीं खाया। हिंदू लोगों ने इन लाशो का अंतिम संस्कार किया जो कि चांदनी बाग के पास इन लाशो  का संस्कार किया गया अंग्रेजों द्वारा अहमद शाह अब्दाली -सदाशिव राव के इस युद्ध को यादगार करने के लिए एक युद्ध स्मारक बनाया।  ताकि यह उनकी यादगार में रहे और इसके साथ ही जहां पर काला आम का पेड़ था वह सूख चुका था उस पेड़ को काटकर उसकी जगह एक नया आम का पेड़ लगाया गया इसके साथ ही इस काले आम के पेड़ के दो दरवाजे बनाए गए जो कि एक दरवाजा करनाल के डीसी को जो अंग्रेज था उसको भेट  किया गया जो आज पानीपत के म्यूजियम में रखा हुआ है और एक दरवाजा विक्टोरिया भेजा गया।  वही पानीपत के इतिहासकार रमेश पुहाल  ने कहा कि फिल्म के बारे में सुना है उसकी टीवी पर ऐड देखी हैं फिल्म तो नहीं देखी लेकिन फिल्म में जो दिखाया है यह इतिहास के परे है यहां का कोई भी दृश्य इस फिल्म में नहीं दिखाया गया जो कि इतिहास से परे बताया है।
 वन टू वन -अनिल कुमार -रमेश पुहाल इतिहासकार  
Body:एंकर -बाइट --पानीपत का तृतीय युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ। पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा साम्राज्य सदाशिवा राव भाउ और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली, जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है के बीच 14 जनवरी 1761 को वर्तमान हरियाणा मे स्थित पानीपत के मैदान मे हुआ। इस युद्ध मे दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब सुजाउद्दौला  ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया। हलाकि इस युद्ध में मराठाओ को हार का मुँह देखना पड़ा एटवी भारत की टीम ने पानीपत युद्ध स्मारक काले आम्ब का दौरा किया और इतिहास से रुकरू कराने का प्रयास करेगी , हाल ही में पानीपत फिल्म रिलीज होने जा रही है जिसमे पानीपत के साथ इतिहास के बारे में दर्शाया गया है।  हम आपको बताएंगे कि पानीपत का इतिहास क्या है पानीपत का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है पानीपत के अंदर एक काला आम युद्ध स्मारक बनाया गया है जो अपने आप में एक इतिहास है आपको बता दें कि काला आम जहां पर बनाया गया है यहां पर उबड़ खाबड़ जगह थी। एक विशाल आम का पेड़ था जिस पेड़ पर सिर्फ काले आम लगते थे सदाशिव राव  भाऊ व इब्राहिम गांधी यहां पर आए और उन्होंने यहां का भ्रमण किया मोर्चा बनाने के लिए निरीक्षण किया गया।  एक छोटे से गांव को भी यहां से उठाया गया जिसका नाम शिवा खेड़ी था जहां पर एक बड़ा जोहड़  था युद्ध में पानी की जरूरत होती है तो व तोपों  के लिए भी पानी की जरूरत होती है, सदाशिव राव ने यहां पर देखा कि एक पेड़ के नीचे दोपहर के वक्त 250  के करीब गाय बैठी हुई थी और इतना बड़ा पेड़ देखकर उन्होंने इसके बारे में पूछा तो बताया गया कि यह काले आम का पेड़ है जिस पर काले आम लगते हैं तो इस पर सदाशिवराव ने कहा कि यह अच्छी जगह है यहां पर ही मोर्चा बनाएंगे क्योंकि यहां पर एक जोहड़ , यमुना नदी ,यहां से जाती थी और साथ में एक नहर लगती थी पानी की उचित व्यवस्था होने के कारण जहां पर मोर्चा बनाने का फैसला लिया।  अब्दाली ने सिवाह और डाहर  गांव के बीच डेरा डाला हुआ था यह दोनों सेनाएं आमने-सामने थी।  इनकी तो टोपे भी आमने सामने रखी गई थी ऊंचाई की जगह को साफ करके यहाँ पर मोर्चा बनाया गया। तोप को  इब्राहिम गांधी ने चालू किया जिसका नाम अटक था  इससे पहला गोला अब्दाली की सेना पर दागा  गया।  इस तोप की  18 हाथ की लंबी नाल थी गोला दागने से अब्दाली की सेना में  खलबली मच गई। पानीपत का युद्ध हुआ वह इसी स्थान पर हुआ था जिसका नाम काला आम है इसके साथ ही युद्ध इतना भयंकर था कि यहां पर लाशों के ढेर लग गए थे इन लाशों को यहां से उठाने वाला कोई नहीं था यहाँ तक की इन  लाशों को चील- कव्वे व कुत्तों ने भी नहीं खाया। हिंदू लोगों ने इन लाशो का अंतिम संस्कार किया जो कि चांदनी बाग के पास इन लाशो  का संस्कार किया गया अंग्रेजों द्वारा अहमद शाह अब्दाली -सदाशिव राव के इस युद्ध को यादगार करने के लिए एक युद्ध स्मारक बनाया।  ताकि यह उनकी यादगार में रहे और इसके साथ ही जहां पर काला आम का पेड़ था वह सूख चुका था उस पेड़ को काटकर उसकी जगह एक नया आम का पेड़ लगाया गया इसके साथ ही इस काले आम के पेड़ के दो दरवाजे बनाए गए जो कि एक दरवाजा करनाल के डीसी को जो अंग्रेज था उसको भेट  किया गया जो आज पानीपत के म्यूजियम में रखा हुआ है और एक दरवाजा विक्टोरिया भेजा गया।  वही पानीपत के इतिहासकार रमेश पुहाल  ने कहा कि फिल्म के बारे में सुना है उसकी टीवी पर ऐड देखी हैं फिल्म तो नहीं देखी लेकिन फिल्म में जो दिखाया है यह इतिहास के परे है यहां का कोई भी दृश्य इस फिल्म में नहीं दिखाया गया जो कि इतिहास से परे बताया है।
 वन टू वन -अनिल कुमार -रमेश पुहाल इतिहासकार  
Conclusion:एंकर -बाइट --पानीपत का तृतीय युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ। पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा साम्राज्य सदाशिवा राव भाउ और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली, जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है के बीच 14 जनवरी 1761 को वर्तमान हरियाणा मे स्थित पानीपत के मैदान मे हुआ। इस युद्ध मे दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब सुजाउद्दौला  ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया। हलाकि इस युद्ध में मराठाओ को हार का मुँह देखना पड़ा एटवी भारत की टीम ने पानीपत युद्ध स्मारक काले आम्ब का दौरा किया और इतिहास से रुकरू कराने का प्रयास करेगी , हाल ही में पानीपत फिल्म रिलीज होने जा रही है जिसमे पानीपत के साथ इतिहास के बारे में दर्शाया गया है।  हम आपको बताएंगे कि पानीपत का इतिहास क्या है पानीपत का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है पानीपत के अंदर एक काला आम युद्ध स्मारक बनाया गया है जो अपने आप में एक इतिहास है आपको बता दें कि काला आम जहां पर बनाया गया है यहां पर उबड़ खाबड़ जगह थी। एक विशाल आम का पेड़ था जिस पेड़ पर सिर्फ काले आम लगते थे सदाशिव राव  भाऊ व इब्राहिम गांधी यहां पर आए और उन्होंने यहां का भ्रमण किया मोर्चा बनाने के लिए निरीक्षण किया गया।  एक छोटे से गांव को भी यहां से उठाया गया जिसका नाम शिवा खेड़ी था जहां पर एक बड़ा जोहड़  था युद्ध में पानी की जरूरत होती है तो व तोपों  के लिए भी पानी की जरूरत होती है, सदाशिव राव ने यहां पर देखा कि एक पेड़ के नीचे दोपहर के वक्त 250  के करीब गाय बैठी हुई थी और इतना बड़ा पेड़ देखकर उन्होंने इसके बारे में पूछा तो बताया गया कि यह काले आम का पेड़ है जिस पर काले आम लगते हैं तो इस पर सदाशिवराव ने कहा कि यह अच्छी जगह है यहां पर ही मोर्चा बनाएंगे क्योंकि यहां पर एक जोहड़ , यमुना नदी ,यहां से जाती थी और साथ में एक नहर लगती थी पानी की उचित व्यवस्था होने के कारण जहां पर मोर्चा बनाने का फैसला लिया।  अब्दाली ने सिवाह और डाहर  गांव के बीच डेरा डाला हुआ था यह दोनों सेनाएं आमने-सामने थी।  इनकी तो टोपे भी आमने सामने रखी गई थी ऊंचाई की जगह को साफ करके यहाँ पर मोर्चा बनाया गया। तोप को  इब्राहिम गांधी ने चालू किया जिसका नाम अटक था  इससे पहला गोला अब्दाली की सेना पर दागा  गया।  इस तोप की  18 हाथ की लंबी नाल थी गोला दागने से अब्दाली की सेना में  खलबली मच गई। पानीपत का युद्ध हुआ वह इसी स्थान पर हुआ था जिसका नाम काला आम है इसके साथ ही युद्ध इतना भयंकर था कि यहां पर लाशों के ढेर लग गए थे इन लाशों को यहां से उठाने वाला कोई नहीं था यहाँ तक की इन  लाशों को चील- कव्वे व कुत्तों ने भी नहीं खाया। हिंदू लोगों ने इन लाशो का अंतिम संस्कार किया जो कि चांदनी बाग के पास इन लाशो  का संस्कार किया गया अंग्रेजों द्वारा अहमद शाह अब्दाली -सदाशिव राव के इस युद्ध को यादगार करने के लिए एक युद्ध स्मारक बनाया।  ताकि यह उनकी यादगार में रहे और इसके साथ ही जहां पर काला आम का पेड़ था वह सूख चुका था उस पेड़ को काटकर उसकी जगह एक नया आम का पेड़ लगाया गया इसके साथ ही इस काले आम के पेड़ के दो दरवाजे बनाए गए जो कि एक दरवाजा करनाल के डीसी को जो अंग्रेज था उसको भेट  किया गया जो आज पानीपत के म्यूजियम में रखा हुआ है और एक दरवाजा विक्टोरिया भेजा गया।  वही पानीपत के इतिहासकार रमेश पुहाल  ने कहा कि फिल्म के बारे में सुना है उसकी टीवी पर ऐड देखी हैं फिल्म तो नहीं देखी लेकिन फिल्म में जो दिखाया है यह इतिहास के परे है यहां का कोई भी दृश्य इस फिल्म में नहीं दिखाया गया जो कि इतिहास से परे बताया है।
 वन टू वन -अनिल कुमार -रमेश पुहाल इतिहासकार  
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