चंडीगढ़ : फिल्म पानीपत का ट्रेलर रिलीज होने के बाद से सराहना और आलोचना दोनों बटोर रहा है. आशुतोष गोवारिकर की आने वाली इस फिल्म के लिए सिनेमा जगत के लोग शुभकामनाएं दे रहे हैं. वहीं कुछ लोग ट्विटर पर फिल्म की तुलना बाजीराव मस्तानी और पदमावत से कर रहे हैं. फिल्म के जिस किरदार को लेकर विवाद छिड़ गया है, वो है अहमद शाह अब्दाली का किरदार.
अफगानिस्तान जता रहा है फिल्म पर ऐतराज
फिल्म के ट्रेलर के बाद भारत में अफगास्तिान के पूर्व राजदूत डॉ. शाइदा अब्दाली ने चिंता जताई. उन्होंने कहा भारतीय फिल्में भारत-अफगानिस्तान संबंध को मजबूत करने में भूमिका निभाती रही हैं. अफगानिस्तान के लोगों का मानना है कि फिल्म में इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है. उनका मानना है कि अब्दाली के किरदार को नकारात्मक पेश किया है. अब्दाली को अफगान सम्मान से 'अहमद शाह बाबा' कहते हैं.
पाकिस्तान बन रहा बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना!
इन सब के बीच पाकिस्तान भी उतर आया है. पाकिस्तान के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री फवाद चौधरी ने फिल्म 'पानीपत' पर सवाल उठाया है. रिलीज से पहले ही फवाद चौधरी ने कहा कि इसमें मुसलमान शासक को जालिम दिखाने के लिए इतिहास को तोड़ मरोड़ दिया गया है. चौधरी ने ट्वीट में कहा, 'जब बेवकूफ लोग आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की विचारधारा के तहत इतिहास को फिर से लिखते हैं तो फिर उनसे हम ऐसे की ही उम्मीद कर सकते हैं. देखिए, आगे-आगे होता है क्या.'
इस पूरे बहस में इतिहास की चर्चा की जा रही है. लोग आपस में बहस कर रहे हैं कि आखिर हुआ क्या था. अब्दाली हीरो था या विलेन? क्या है इस फिल्म में जो आने से पहले चारों तरफ तहलका मचा रही है. इस सभी बातों का जवाब इतिहास देता है और ईटीवी भारत हरियाणा की टीम इसी इतिहास से धूल की परतों को उतारने पानीपत पहुंची. वही पानीपत जहां से इस इतिहास को ये कहानी मिली. वही पानीपत जो अहमद शाह अब्दाली और सदा शिव भाऊ के बीच हुए युद्ध का गवाह है.
इतिहास में क्या हुआ था?
पानीपत की तीसरी जंग आज से करीब ढाई सौ साल पहले लड़ी गई थी. फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही इसे लेकर उत्साह भी है और एक तबका फिक्रमंद भी है. हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा क्षत्रपों और अफगान सेना के बीच हुई थी. 14 जनवरी 1761 को हुए इस युद्ध में अफ़ग़ान सेना की कमान अहमद शाह अब्दाली-दुर्रानी के हाथों में थी.
अहमद शाह अब्दाली ने बादशाह बनने के पहले भी और बाद में भी कई निर्णायक जंगें लड़ी थीं, लेकिन जनवरी 1761 में दिल्ली के पास पानीपत के मैदान में लड़ा गया युद्ध, एक सेनापति और बादशाह के तौर पर अहमद शाह अब्दाली की जिंदगी की सबसे बड़ी जंग थी. ये वो दौर था जब एक तरफ मराठा और दूसरी तरफ अब्दाली, दोनों ही अपनी बादशाहत का दायरा बढ़ाने में जुटे थे और अपने इलाके का विस्तार करना चाहते थे.
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दुश्मन नहीं थे, एक दुसरे के रास्ते के कांटे थे!
मराठों ने भी अपने साम्राज्य का तेजी से विस्तार किया था. यही वजह थी कि अहमद शाह अब्दाली मराठों को अपने रास्ते का कांटा समझने लगा था. अहमद शाह अब्दाली के लिए पानीपत की तीसरी लड़ाई बहुत जरूरी हो गई थी और नतीजा हुआ कि जंग में मराठा और अब्दाली थे.
मराठों ने अपने असाधारण सेनानी सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में अब्दाली से दो-दो हाथ करने के लिए कूच किया. सदाशिवराव भाऊ मराठों के जांचे-परखे योद्धा थे. उनके नेतृत्व में मराठा सेना का मनोबल सातवें आसमान पर था. पानीपत में दोनों सेनाएं आमने-सामने आ भिड़ीं. एक भीषण युद्ध शुरू हुआ. मराठा सेना संख्याबल में कम थी, लेकिन अफगान सेना पर भारी पड़ रही थी तभी विश्वासराव को गोली लग गई. वो मैदान में गिर पड़े. भाऊ विश्वासराव से बहुत प्यार करते थे. जैसे ही उन्होंने उनको गिरते हुए देखा, वो अपने हाथी से उतरे और एक घोड़े पर सवार हो कर दुश्मनों के बीच घुस गए. अंजाम की परवाह किए बगैर.
भाऊ का हौदा खाली देख सेना में मच गई थी भगदड़
सदाशिवराव भाऊ के पीछे उनके हाथी पर हौदा खाली नजर आ रहा था. उसे खाली देख कर मराठा सैनिकों में दहशत फैल गई. उन्हें लगा कि उनका सेनापति युद्ध में मारा गया. अफरा-तफरी मच गई. मनोबल एकदम से पाताल छूने लगा. अफगान सेना ने इसका फौरन फायदा उठाया. वो घबराई हुई मराठा सेना पर नए जोश से टूट पड़े. हालांकि भाऊ अंतिम सांस तक लड़ते रहे, लेकिन एक वक्त आया जब अफगानों ने भाऊ का सिर कलम कर दिया. बताया जाता है कि अफगानी उनका सिर भी साथ ले गए.
इस युद्ध में हुई हार से मराठी साम्राज्य को काफी अघात पहुंचा. पेशवाई का दबदबा समाप्त हो गया. पानीपत के पहले जो मराठा साम्राज्य सफलता की उंचाइयां छू रहा था, वो एकदम से कमजोर, दीन-हीन हो गया.