नई दिल्ली: सदाबहार हिंदी गानों में चांद को महबूबा की सुंदरता का प्रतीक बताया जाता रहा है. कई ऐसे गाने 'चंदा छुपा बादल में', 'चंदा मामा दूर के', 'चांद सी महबूबा हो' और 'चांद सिफारिश जो करता हमारी'...को आज की युवा पीढ़ी भी गुनगुनाती है. हद तो यहां तक हो गई है कि टिकटॉकर्स चांद को औकात दिखाते हैं. हां ये बात और है कि इनमें से शायद ही किसी ने कभी चांद के पास जाकर उसकी हकीकत जानी हो. क्योंकि जिनको ऐसा करने का मौका मिला, उनकी मानें तो चांद में सुंदरता के कोई लक्षण नहीं हैं.
धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चांद पर सबसे पहले आज ही के दिन 20 जुलाई 1969 को अमेरिका के अपोलो-11 मिशन से नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन गए थे. ये दोनों अंतरिक्ष यात्री 21 घंटे 31 मिनट तक चंद्रमा पर रुके थे. इनके बाद पेटे कॉनराड, एलन बीन, एलन शेपर्ड, एडगर मिशेल, डेविड स्कॉट, जेम्स इरविन, जॉन यंग, चार्ल्स ड्यूक, यूजीन सेरनन और हैरिसन स्मिट ने भी चांद की सतह पर चहलकदमी की है. चांद पर अब तक गए दर्जनों लोगों में सभी का यही कहना है कि चांद पर सुंदरता जैसी कोई बात नहीं है, वहां सिर्फ धूल का गुबार है, जो सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पर मंडराता रहता है. ऐसा क्यों होता है, यह रहस्य अभी कायम है.
दागदार तो चांद भी है, तुम क्या चीज हो?
चांद खूबसूरत होता है. ठीक है, अच्छी बात है. लेकिन चांद पर दाग क्यों होते हैं, मतलब चांद पर ये दाग कहां से आए? इन सवालों का जवाब है कि करीब 45 लाख साल पहले चांद बना. तब अंतरिक्ष में पत्थरबाज़ी चल रही थी. भयंकर स्पीड से बड़ी-बड़ी चट्टानें इधर-उधर भाग रही थीं. बड़ी-बड़ी चट्टानें मतलब एस्टेरॉइड और मीटियोर. हिंदी में बोले तो क्षुद्र ग्रह और उल्का पिंड. ये चट्टानें आकर चांद से टकराईं और चांद पर दाग बन गए. पहले एस्ट्रोनॉमर्स ने इन काले दागों का मारिया नाम रखा था. लैटिन भाषा में समुद्रों को 'मारिया' कहते हैं.
दरअसल, ये काले धब्बे समुद्र थे, लेकिन इन समुद्रों में पानी नहीं लावा भरा हुआ था. जब बहुत बड़ी-बड़ी चट्टानें जाकर चांद से टकराईं तो बड़े-बड़े गड्ढे भी बने. ये चट्टानें इतनी भयंकर थीं कि धमाके से चांद की बाहरी सतह फट गई और अंदर का लावा बाहर आकर गड्ढों में भर गया. बाद में लावा ठंडा हुआ और वहां जम गया. ये लावा जमकर बेसॉल्ट की काली चट्टानों में तब्दील हो गया. यही ठंडा जमा हुआ लावा काले धब्बे के रूप में दिखता है.
चांद से अभी दूर हैं भारतीय
अभी तक काफी लोग यही जानते हैं कि चांद पर जाने वाले पहले भारतीय राकेश शर्मा हैं. लेकिन यह तथ्य गलत है. राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं. चांद पर अब तक किसी भी भारतीय ने कदम नहीं रखा है. कल्पना चावला का जन्म भारत में हुआ था, लेकिन वे अमेरिकी नागरिक थीं. सुनीता विलियम्स भी भारतीय मूल की थीं. हालांकि वो भी अमेरिका में जन्मीं थी और वहीं की नागरिक थीं. यही वजह है कि कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स की फोटो में अमेरिकी झंडा नजर आता है, जबकि राकेश शर्मा की फोटो में भारतीय झंडा दिखता है.
48 साल से चांद पर कोई इंसान क्यों नहीं गया ?
21 जुलाई 1969 की तारीख थी और नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर कदम रखकर इतिहास रच दिया था. इसके बाद पांच और अमेरिकी अभियान चांद पर भेजे गए. साल 1972 में चांद पर पहुंचने वाले यूजीन सेरनन आखिरी अंतरिक्ष यात्री थे. उनके बाद अब तक कोई भी इंसान चांद पर नहीं गया है. दरअसल चांद पर किसी इंसान को भेजना एक महंगा सौदा है. एक और कारण है कि ऐसे मिशन के वैज्ञानिक फायदे कम हैं.
जानते हैं चांद के बारे में इंटरेस्टिंग फैक्ट्स
- चांद से भी बड़े उपग्रह है सौरमंडल में
यह वैज्ञानिक रूप से सच है कि सौर मंडल में चंद्रमा से भी बड़े चार और उपग्रह मौजूद है. इनमें सबसे बड़ा बृहस्पति ग्रह के पास स्थित है जोकि असल में प्लूटो और बुध ग्रह से भी बड़ा है. इसके अलावा टाइटन, कैलीस्टो और ईओ भी चंद्रमा से बड़े हैं. खगोलशात्रियों का अध्ययन जारी है. कभी सिर्फ 9 ग्रह के बारे में जानकारी थी, लेकिन अब सौर मंडल में दर्जनभर से अधिक ग्रहों के बारे में पता चल चुका है.
- नींद भी प्रभावित करता है चांद
यूनिवर्सिटी ऑफ बेसल, स्विट्जरलैंड के एक अध्ययन के अनुसार, चंद्रमा धरती पर रहे लोगों की नींद पर भी असर डालता है. कहा जाता है कि अमावस्या पर लोग जहां अच्छी नींद का आनंद लेते हैं, वही पूर्णिमा पर नींद कम आती है. यह अलग बात है कि विज्ञान अभी तक इस बात को साबित नहीं कर पाया है. इस पर वैज्ञानिक अध्ययन अभी जारी है.
- चांद से इस ग्रह की बढ़ रही है दूरी
प्रत्येक वर्ष चंद्रमा धरती से 3.78 सेमी दूर होता जा रहा है. इस तरह 50 अरब वर्ष तक ऐसा ही होता रहा तो धरती की परिक्रमा करने में चंद्रमा 47 दिन लगाएगा. वर्तमान में चंद्रमा को धरती की परिक्रमा करने में 28 दिन लगते हैं. धरती के मध्य से चंद्रमा के मध्य तक की दूरी 384, 403 किलोमीटर है.
- चांद पर इतनी है इंटरनेट स्पीड
शोध में यह जानकारी भी सामने आई है कि इंटरनेट की स्पीड चंद्रमा पर बढ़ सकती है. नासा ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए चांद पर वाई-फाई कनेक्शन की सुविधा उपलब्ध कराई है, जिसकी 19 MBPS की स्पीड बेहद हैरान करने वाली है.
- चांद पर क्यों कम हो जाता है वजन ?
इंसान चंद्रमा पर 20वीं सदी में ही कदम रख चुका है. इसमें भारत का नाम भी शामिल है. वैज्ञानिक अध्ययन में यह सिद्ध हुआ है कि चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से कम होती है. सामान्य तौर पर चंद्रमा पर किसी व्यक्ति का वजन 16.5 फीसद कम होता है. यह कारण है कि चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्री ज्यादा उछलकूद करते हैं। यह फिल्मों में भी दिखाया गया है.