मोरबी : आज के समय में शादियों के साथ-साथ सगाई भी महंगी हो गई हैं. आम वर्ग को भी दिखावे के लिए झूठे खर्च उठाने पड़ते हैं. जहां सगाई समारोह महंगे हो गए हैं, वहीं मोरबी का वणकर समाज झूठे खर्चों से बचने के लिए प्रेरक रास्ता अपना रहा है, जिसमें आधी चाय में ही सगाई संपन्न हो जाती है. कोई अन्य खर्च नहीं होता है. दूल्हा और दुल्हन सार्वजनिक उद्यान में इकट्ठा होते हैं और केवल आधी चाय, एक रुपये और नारियल के साथ सगाई की रस्म पूरी करते हैं.
जुलाहा जाति समाज वर्षों से बच्चों की सगाई की रस्म निभाने की प्रेरक परंपरा निभा रहा है. जिसमें आधी चाय में ही सगाई की रस्म पूरी करने की परंपरा है. इससे खर्च भी बचता है. सार्वजनिक पार्क में ज्यादातर सगाई समारोह होते हैं. जिसमें दोनों पक्षों के करीब 100 लोग इकट्ठा होते हैं. सगाई में दोनों पक्षों के लोग जुट जाने के बाद पुरोहित गणपति की स्थापना कर सगाई की रस्म शुरू करते हैं. हाथ में एक रुपया और नारियल लेकर वह मंत्रोच्चारण करते हैं और वर-कन्या पक्ष की सगाई की घोषणा करते हैं.
इस समाज में सिर्फ चाय पिलाकर रिश्तेदारों को रवाना किया जाता है. खास बात यह भी है कि कोई रिश्तेदार यजमान से कुछ मांगता नहीं है. खाने के लिए भी नहीं कहता. सब साथ मिलकर चाय पीते है और हंसी-खुशी आशीर्वाद देकर घर जाते हैं.
समाज के लोग कहते है कि, आज के महंगाई के जमाने में हर किसी का बड़ा बजट नहीं होता. अगर कुछ पूंजी पड़ी है तो वर-कन्या पक्ष एक दूसरे परिवारों को अच्छा खाना खिलाकर खुशियां मनाते हैं. जिसमे कुछ मर्यादित रिश्तेदारों को बुलाया जाता है. फिल्मों में दिखाई देनेवाली शाही शादी या थीम आधारित सगाई जैसा हमारे यहां नहीं होता.
सबसे खात बात यह है कि सगाई भी किसी मैरेज हॉल या कम्युनिटी हॉल में नही की जाती. मोरबी के एक गार्डन में समाज के लोग और रिश्तेदार आते है और सगाई हो जाती है.
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