बिलासपुर: दाने-दाने को तरस रहे 'भिक्षुक'
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बिलासपुर: 'मुट्ठी-भर दाने को... भूख मिटाने को... मुंह फटी, पुरानी झोली का फैलाता... दो टूक कलेजे के करता... पछताता पथ पर आता. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की इस चर्चित कविता 'भिक्षुक' को आपने स्कूल में पढ़ा होगा. इसमें कवि ने एक भिक्षुक की दयनीय व्यथा का बखूबी वर्णन किया है. जब सामान्य दिनों में भिक्षकों की ये हालत रहती है, तो फिर लॉकडाउन में इनकी क्या हालत है, ये तो आप समझ ही सकते हैं.