Mahashivratri 2023: ज्वालेश्वर महादेव का पुराणों में मिलता है उल्लेख, यहां जल अर्पित करने से पाप और दोष का होता है नाश - ज्वालेश्वर महादेव
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जीपीएम: शनिवार को देशभर में महाशिवरात्रि की पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का बेहद महत्व है. जिसके लिए शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं का जमावड़ा सुबह से ही लग गया है.
पुराणों में भी मिलता है मंदिर का उल्लेख: ज्वालेश्वर महादेव मैं शनिवार को महाशिवरात्रि के मौके पर विशेष पूजा की जाती है. जिसका बेहद महत्व है. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित छत्तीसगढ़ के ज्वालेश्वर महादेव में सुबह से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुट रहे हैं. धर्म और पर्यटन के नगर अमरकंटक जाने वाले मुख्य रास्ते पर स्थित ज्वालेश्वर महादेव की मान्यता है कि भगवान शंकर ने स्वयं ही इस मंदिर की स्थापना की थी. पुराणों में भी इस जगह का उल्लेख है.
यह मंदिर पुराणों में महा रूद्र मेरु के नाम से जाना गया है. ज्वालेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन की मान्यता बहुत ज्यादा है. मंदिर में बाणलिंग मौजूद है. जिसकी कथा का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. बाणलिंग पर दूध और शुद्ध जल चढ़ाने से पाप और दोष का नाश होता है.
ऐसी है मान्यता: वैदिक पौराणिक कथा के हिसाब से बली का पुत्र बाणासुर जोअत्यंत बलशाली था. वह शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था. बाणासुर ने भगवान शंकर की कड़ी तपस्या की और फिर वर मांगा कि उसका नगर हमेशा दिव्य रहे और अजेय रहे. उसने यह भी वर मांगा कि शंकर भगवान के अलावा कोई और यहां कोई भी ना आ सके. ठीक इसी तरह बाणासुर ने ब्रह्म देव और भगवान विष्णु से भी वर लिए. जिसके बाद वह तीन पुर का स्वामी हो गया और त्रिपुर कहलाया. मान्यता यह भी है कि अपने शक्ति पर घमंड की वजह से बाणासुर उत्पाती होने लगा.
यह है वैदिक कथा: जिससे परेशान होकर भगवान शंकर ने पिनाक नाम के धनुष और अघोर नाम के बाण के प्रयोग से बाणासुर पर वार किया. जिसके बाद बाणासुर ने शिवलिंग को सिर पर धारण कर लिया और महादेव की स्तुति करना शुरु कर दिया. जिससे शंकर भगवान प्रसन्न हो गए. भगवान के चलाए बाण से त्रिपुर के तीन खंड हो गए, जो नर्मदा के जल में गिरे इसी स्थान से ज्वालेश्वर नाम का एक तीर्थ प्रकट हो गया. भगवान शंकर के छोड़े बाण से प्रहार से बचा शिवलिंग ही फिर बाणलिंग के नाम से जाना जाने लगा.