रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के बाद से प्रोफेसरों द्वारा शिक्षक संघ बनाए जाने के लिए मांग की जा रही थी. आज 23 साल बाद आखिरकार शिक्षकों की समस्या को सुलझाने और शिक्षकों के दर्जे को और ऊपर उठाने के लिए संवैधानिक तौर पर इस संघ की स्थापना की गई. सोमवार देर रात हुई मीटिंग में इस संघ को बनाने के निर्देश दिए गए हैं.
पत्रकारिता यूनिवर्सिटी के डॉ शाहिद अली होंगे अध्यक्ष: सर्वसमित्ति से यह फैसला लिया गया कि छत्तीसगढ़ शासकीय विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के पहले अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर शाहिद अली होंगे. संघ के महासचिव पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर निनाद बोधनकर होंगे. जिसमें अन्य पदाधिकारियों में उपाध्यक्ष के तौर पर प्रोफेसर एसके नेमा, कोषाध्यक्ष डॉ जयपाल सिंह प्रजापति, जो कि पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं.
वही संत गाहिरा गुरु विश्वविद्यालय सरगुजा के प्रोफेसर डॉ आनंद कुमार को सह सचिव बनाया गया है. अन्य कार्यकारिणी सदस्य की बात की जाए तो उसमें प्रोफेसर अशोक प्रधान, प्रोफेसर बलवंत ठाकुर, डॉ हरिशंकर प्रसाद टोंडे, डॉ पोले की नियुक्ति की गई है.
विश्वविद्यालय के शिक्षकों के हित के लिए संघ की स्थापना: शिक्षकों ईटीवी भारत की टीम को सरकारी विश्वविद्यालयय शिक्षक संघ के पहले अध्यक्ष डॉ शाहिद अली ने बताया कि "शिक्षकों की समस्या, शिक्षकों की पदोन्नति, उनके वेतनमान को बढ़ाना, उनके दर्जे को ऊंचा उठाना जैसे हितों की रक्षा यह संघ करेगा.
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विद्यार्थियों को अच्छी टीचिंग सुविधा मिलेगी: डॉ शाहिद अली ने बताया कि "अभी केवल संघ को बनाया गया है और उनके सदस्यों की नियुक्ति की गई है. संघ का कार्यालय कहां होगा, कब बैठकें होंगीं, कितने माह में कितनी बैठकें होंगी, कौन सा विषय बैठक का होगा, क्या-क्या फैसिलिटी होगी, इन सभी विषयों पर चर्चा बाकी है." विश्वविद्यालय की शिक्षा नीति और विद्यार्थियों को उचित व्यवहारिकता सीखाना और उन्हें बेहतर टीचिंग सुविधा मुहैया कराना मकसद होगा.
विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच होगा तालमेल: विश्वविद्यालय शिक्षक संघ बनने से अब विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों में भी एकता होगी. किसी भी विश्वविद्यालय से संबंधित समस्या के नए दिशानिर्देश को लेकर सबसे पहले संघ में चर्चा होगी. उसके बाद वह नियम और कानून उस विश्वविद्यालय में लागू किए जाएंगे. जिससे सभी विश्वविद्यालयों के नियमों में और भी बेहतर सुधार होगा और विद्यार्थियों तथा शिक्षकों दोनों के हित को ध्यान में रखते हुए उस कानून को बनाया जाएगा, ताकि दोनों को लाभ मिल सके.