नई दिल्ली: तिरुपति प्रसादम विवाद शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि यह मामला मौलिक हिंदू धार्मिक रीति रिवाजों का उल्लंघन करता है और ऐसे करोड़ों भक्तों की आस्था को चोट पहुंचाता है जो प्रसाद को प्रसाद की तरफ पवित्र आशीर्वाद मानते हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि प्रसाद के लड्डूओं में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल हो रहा था, इससे साफ है कि मंदिर प्रशासन का इसमें दोष हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ को संबोधित करते हुए अधिवक्ता सत्यम सिंह के माध्यम से दायर पत्र याचिका में कहा गया है कि तिरुमला तिरुपति बालाजी मंदिर में गंभीर उल्लंघन केवल एक अलग घटना नहीं है, बल्कि हमारे पवित्र संस्थानों के प्रबंधन को परेशान करने वाले एक बड़े, प्रणालीगत मुद्दे का लक्षण है, और यह हमारे मंदिरों के समर्पित और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है.
पत्र याचिका में कहा गया है कि, प्रसाद तैयार करने में मांसाहारी उत्पादों का उपयोग इस संवैधानिक संरक्षण के मूल में आघात करता है. आर्टिकल 25(1) में कहा गया है कि, सभी व्यक्तियों को "अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का समान अधिकार है." यह कृत्य न केवल हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, बल्कि उन असंख्य भक्तों की भावनाओं को भी गहरा आघात पहुंचाता है जो प्रसाद को पवित्र आशीर्वाद मानते हैं. इस स्थिति की गंभीरता को कम करके नहीं आंका जा सकता, क्योंकि यह हमारी धार्मिक प्रथाओं और मान्यताओं के मूल पर प्रहार करता है."
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार को कहा कि पिछली वाईएसआर कांग्रेस सरकार के समय में तिरुपति में श्री वेंकटेश्वर मंदिर द्वारा 'प्रसाद' के रूप में दिए जाने वाले लड्डू बनाने के लिए पशु चर्बी का उपयोग किया गया है. राज्य सरकार ने तब गुजरात की एक प्रयोगशाला की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि, लड्डूओं को बनाने में इस्तेमाल होने वाले घी में बीफ की चर्बी, मछली का तेल और सुअर की चर्बी के अंश थे.
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