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छत्तीसगढ़ के इस जंगल में है दुर्लभ प्रजाति के नाग नागिन, मवेशियों को चराने पर प्रतिबंध - Rare Species of Cobra Snakes

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 10, 2024, 10:35 AM IST

Updated : Sep 4, 2024, 7:02 AM IST

Rare species of cobra snakes छत्तीसगढ़ में बस्तर में 11वीं से 13 वीं शताब्दी के दौरान नागवंशी राजाओं ने राज किया. उनका चिन्ह नाग सांप था. उस दौरान राजाओं ने कई मंदिर बनाए जिनमें छिन्दक नागवंशी का चिन्ह नाग सांप हुआ करता था. आज वो मंदिर तो नहीं रहे लेकिन उस काल की मूर्तियां बस्तर के नागफनी गांव के मंदिर में मौजूद है. मान्यता है कि इस गांव से लगे जंगलों में आज भी दुर्लभ प्रजाति के नाग सांप रहते हैं. BASTAR NAG TEMPLE

Rare species of cobra snakes
बस्तर नाग मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

बस्तर: पौराणिक मान्यता के अनुसार बस्तर के नागफनी गांव के जंगलों में वासुकी, तक्षक, शंख, कुलिक, पदम, महापदम जैसे कई नामों के नाग पाए जाते थे. वहीं सुमेधा, सुप्रधा, दिधिप्रिया, श्वेतमुखी, सुनेत्रा, सुगंधि, पद्मा जैसे नामों के नागिन का वास रहा. कालांतर में नागवंशी राजाओं ने ही इस गांव में मंदिर बनवाया था. नागों की उपलब्धता के कारण इसका नाम नागफनी पड़ा. सबसे खासबात यह है कि आज भी इन जंगलों में मवेशियों को चराने के लिए प्रतिबंध लगाया गया है. क्योंकि अभी भी इस जंगल में दुर्लभ प्रजाति के नाग सांप पाए जाते हैं.

Rare Species of Cobra Snakes
बस्तर नाग मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

मवेशियों को जंगल में इस वजह से नहीं छोड़ा जाता: मंदिर के पुजारी हल्कूराम अटामी बताते हैं कि "जंगल में यदि मवेशियों को छोड़ा जाए तो परेशानी होती है. साथ ही बैलों को सांप के डसने और साथ ही नाग सांपों को नुकसान होने का खतरा भी रहता है."

बस्तर में कई प्रजाति के नाग नागिन (ETV Bharat Chhattisgarh)
Rare species of cobra snakes
नागपंचमी पर होती है विशेष पूजा (ETV Bharat Chhattisgarh)

11वीं शताब्दी के शेष नाग और नागिन की मूर्तियां: बस्तर के नागफनी मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं ने बनाया गया था. बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से 90 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर मौजूद है. जो पौराणिक नगरी बारसूर मार्ग पर स्थित है. अपने शासनकाल के दौरान पूजा अर्चना के लिये कई मंदिरों की स्थापना की. छिन्दक नागवंशी का चिन्ह नाग का सांप था. लिहाजा सभी मूर्तियों पर नाग सांप बनाया करते थे. छत्तीसगढ़ के बस्तर में आज भी छिन्दक नागवंशी राजाओं द्वारा बनाये गए या स्थापित किये गए मूर्ति-मंदिर मौजूद हैं.

बस्तर नाग मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

बस्तर का नागफनी मंदिर: इस मंदिर के भीतर शेषनाग और नागिन के जोड़े की मूर्ति मौजूद है. मंदिर के भीतर भगवान गणेश की विशाल मूर्ति भी मौजूद है. यहां दर्जनों प्राचीन मूर्तियों को सहेजकर रखा गया है. नागपंचमी पर हर साल यहां भव्य मेला लगता है.इस मंदिर में सिर्फ 11वीं शताब्दी के शेष नाग और नागिन की मूर्तियां स्थापित नहीं है. बल्कि सूर्यदेव, राम लक्ष्मण, श्रीकृष्ण, बलराम, बजरंग बली की मूर्तिया भी मौजूद है. नागफनी का मंदिर विभिन्न प्रजाति की वन औषधियों के लिए भी चर्चित है.

मंदिर बहुत पुराना है. सबसे पहले नागवंशी राजाओं की स्थली रही है. जब मुगल शासन हुआ. उस दौरान सभी मंदिरों को तोड़ा गया. मंदिर को तोड़ने के बाद स्थानीय भक्तों ने मूर्तियों को जमीन में गाड़ कर रख दिया गया था. 1980 में इन मूर्तियों को भक्तों ने जमीन से खोदकर निकाला और बैलगाड़ी से लेकर मंदिरों में स्थापना की.- प्रमोद अरटामी, मंदिर के पुजारी

11वीं से 13 शताब्दी के बीच छिंदक नागवंशी काल में नाग मंदिर बनाया गया. यहां चारों तरफ कई ऐसे धरोहर है जिसमें नाग युग से संबंधित प्रतीक मिलते हैं. कई ऐसे धरोहर है जो जमीन में दफन है. कुछ मूर्तियों को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया.-शैलेन्द्र ठाकुर, जानकार व वरिष्ठ पत्रकार

Bastar Nag Temple
जंगल में दबे मूर्तियों को बैलगाड़ी से लाने वाले (ETV Bharat Chhattisgarh)

छिन्दक नागवंशी का चिन्ह नाग सांप: छत्तीसगढ़ के बस्तर में हमेशा से ही राजाओं महाराजाओं का शासन रहा. कालांतर में नागवंशी राजाओं ने बस्तर में शासन किया और अपने शासनकाल के दौरान पूजा अर्चना के लिये कई मंदिरों की स्थापना की. छिन्दक नागवंशी का चिन्ह नाग का सांप था. लिहाजा सभी मूर्तियों पर नाग सांप बनाया करते थे. छत्तीसगढ़ के बस्तर में आज भी छिन्दक नागवंशी राजाओं द्वारा बनाये गए या स्थापित किये गए मूर्ति-मंदिर मौजूद हैं.

छत्तीसगढ़ का नागलोक जशपुर में खूबसूरत सांपों का कलेक्शन, इस सर्पलोक में मिलती है रेयर स्नेक्स की वैरायटी - Snakes In Nagalok Jashpur
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बस्तर: पौराणिक मान्यता के अनुसार बस्तर के नागफनी गांव के जंगलों में वासुकी, तक्षक, शंख, कुलिक, पदम, महापदम जैसे कई नामों के नाग पाए जाते थे. वहीं सुमेधा, सुप्रधा, दिधिप्रिया, श्वेतमुखी, सुनेत्रा, सुगंधि, पद्मा जैसे नामों के नागिन का वास रहा. कालांतर में नागवंशी राजाओं ने ही इस गांव में मंदिर बनवाया था. नागों की उपलब्धता के कारण इसका नाम नागफनी पड़ा. सबसे खासबात यह है कि आज भी इन जंगलों में मवेशियों को चराने के लिए प्रतिबंध लगाया गया है. क्योंकि अभी भी इस जंगल में दुर्लभ प्रजाति के नाग सांप पाए जाते हैं.

Rare Species of Cobra Snakes
बस्तर नाग मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

मवेशियों को जंगल में इस वजह से नहीं छोड़ा जाता: मंदिर के पुजारी हल्कूराम अटामी बताते हैं कि "जंगल में यदि मवेशियों को छोड़ा जाए तो परेशानी होती है. साथ ही बैलों को सांप के डसने और साथ ही नाग सांपों को नुकसान होने का खतरा भी रहता है."

बस्तर में कई प्रजाति के नाग नागिन (ETV Bharat Chhattisgarh)
Rare species of cobra snakes
नागपंचमी पर होती है विशेष पूजा (ETV Bharat Chhattisgarh)

11वीं शताब्दी के शेष नाग और नागिन की मूर्तियां: बस्तर के नागफनी मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं ने बनाया गया था. बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से 90 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर मौजूद है. जो पौराणिक नगरी बारसूर मार्ग पर स्थित है. अपने शासनकाल के दौरान पूजा अर्चना के लिये कई मंदिरों की स्थापना की. छिन्दक नागवंशी का चिन्ह नाग का सांप था. लिहाजा सभी मूर्तियों पर नाग सांप बनाया करते थे. छत्तीसगढ़ के बस्तर में आज भी छिन्दक नागवंशी राजाओं द्वारा बनाये गए या स्थापित किये गए मूर्ति-मंदिर मौजूद हैं.

बस्तर नाग मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

बस्तर का नागफनी मंदिर: इस मंदिर के भीतर शेषनाग और नागिन के जोड़े की मूर्ति मौजूद है. मंदिर के भीतर भगवान गणेश की विशाल मूर्ति भी मौजूद है. यहां दर्जनों प्राचीन मूर्तियों को सहेजकर रखा गया है. नागपंचमी पर हर साल यहां भव्य मेला लगता है.इस मंदिर में सिर्फ 11वीं शताब्दी के शेष नाग और नागिन की मूर्तियां स्थापित नहीं है. बल्कि सूर्यदेव, राम लक्ष्मण, श्रीकृष्ण, बलराम, बजरंग बली की मूर्तिया भी मौजूद है. नागफनी का मंदिर विभिन्न प्रजाति की वन औषधियों के लिए भी चर्चित है.

मंदिर बहुत पुराना है. सबसे पहले नागवंशी राजाओं की स्थली रही है. जब मुगल शासन हुआ. उस दौरान सभी मंदिरों को तोड़ा गया. मंदिर को तोड़ने के बाद स्थानीय भक्तों ने मूर्तियों को जमीन में गाड़ कर रख दिया गया था. 1980 में इन मूर्तियों को भक्तों ने जमीन से खोदकर निकाला और बैलगाड़ी से लेकर मंदिरों में स्थापना की.- प्रमोद अरटामी, मंदिर के पुजारी

11वीं से 13 शताब्दी के बीच छिंदक नागवंशी काल में नाग मंदिर बनाया गया. यहां चारों तरफ कई ऐसे धरोहर है जिसमें नाग युग से संबंधित प्रतीक मिलते हैं. कई ऐसे धरोहर है जो जमीन में दफन है. कुछ मूर्तियों को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया.-शैलेन्द्र ठाकुर, जानकार व वरिष्ठ पत्रकार

Bastar Nag Temple
जंगल में दबे मूर्तियों को बैलगाड़ी से लाने वाले (ETV Bharat Chhattisgarh)

छिन्दक नागवंशी का चिन्ह नाग सांप: छत्तीसगढ़ के बस्तर में हमेशा से ही राजाओं महाराजाओं का शासन रहा. कालांतर में नागवंशी राजाओं ने बस्तर में शासन किया और अपने शासनकाल के दौरान पूजा अर्चना के लिये कई मंदिरों की स्थापना की. छिन्दक नागवंशी का चिन्ह नाग का सांप था. लिहाजा सभी मूर्तियों पर नाग सांप बनाया करते थे. छत्तीसगढ़ के बस्तर में आज भी छिन्दक नागवंशी राजाओं द्वारा बनाये गए या स्थापित किये गए मूर्ति-मंदिर मौजूद हैं.

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Last Updated : Sep 4, 2024, 7:02 AM IST
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