रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 20 सालों बाद भी राज्य के लगभग 1 लाख पेंशनर आर्थिक गुलामी के साये में जीने को मजबूर हैं. इसकी एक अहम वजह राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 के प्रावधानों से बंधा होना है. इस प्रावधान के तहत कोई भी आर्थिक लाभ देने संबंधी आदेश जारी करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को मध्यप्रदेश सरकार से सहमति लेना अनिवार्य होता है.
भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री व छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन रायपुर के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने बताया कि इसी वजह से छठवें वेतनमान का 32 महीने और सांतवे वेतनमान का 27 महीने एरियर देने का आदेश रुका हुआ है. वहीं कानूनी दांव पेंच के कारण हाईकोर्ट का फैसला भी निष्प्रभावी हो गया है. केन्द्र की तरह महंगाई राहत जैसे आदेश जारी करने के लिए भी राज्य सरकार को मध्यप्रदेश की सहमति के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है.
राज्य के पेंशनरों को हो रही भारी समस्याएं
राज्य पुनर्गठन के पहले से ही दोनों राज्य के पेंशन प्रकरण संभाग मुख्यालयों से संयुक्त संचालक, कोष, लेखा व पेंशन कार्यालय से पेंशन पेमेन्ट ऑर्डर जारी होने के बाद अंतिम परीक्षण के लिए सेन्ट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेल, स्टेट बैंक गोविन्दपुरा शाखा भोपाल को भेजा जाता रहा हैं. छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दोनों राज्यों के पेंशन प्रकरण की प्रक्रिया के निराकरण में महीनों गुजर जाते हैं. वहीं इस दौरान कुछ ऐसे प्रकरण भी सामने आए हैं, जिसके निराकरण में 2 साल तक का समय भी लगा है. इसके बाद भी पेंशनरों को बिना पेंशन प्राप्त हुए ही मृत्यु हो गई.
15 साल ब्यूरोक्रेट ने रमन सरकार को उलझाए रखा
ब्यूरोक्रेट ने 15 साल तक रमन सरकार को उलझाए रखा और अब भूपेश बघेल की सरकार के साथ भी वही खेल कर रही है. साल 2000 में उत्तरप्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश राज्य का पुनर्गठन कर उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ नाम से 3 नए राज्य का निर्माण हुआ था. मगर नए दोनों राज्य इस समस्या को सुलझा चुके हैं, अकेले छत्तीसगढ़ राज्य इस समस्या से जूझ रहा है. पेंशनर संघ ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से इस मामले को संज्ञान में लेकर छत्तीसगढ़ के पेंशनरों को मध्यप्रदेश के आर्थिक गुलामी से मुक्त कराने की मांग की है.