सरगुजा: 9 अक्टूबर 2019 यानि करीब पांच साल पहले भारत के पहले गार्बेज कैफे की शुरुआत छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से हुई. इस कैफे ने साल दर साल शहर की आबो हवा को बेहतर करने में और प्रदूषण के खिलाफ जंग में भी अहम भूमिका निभाई है. साल 2020 से साल 2024 तक के आंकड़ों पर गौर करे तो यह बात साबित होती है. यहां साल 2020 में 292 टन, 2021 में 270 टन, 2022 में 269 टन, 2023 में 254 टन और 2024 में मात्र 226 टन प्लास्टिक वेस्ट मिला है. शहर में लगातार प्लास्टिक वेस्ट में कमी आई है. हर साल प्लास्टिक वेस्ट की घटती संख्या बताती है की लोग प्लास्टिक के उपयोग के प्रति जागरूक हो रहे हैं.
गार्बेज कैफे वाला फॉर्मूला हुआ कारगर : More The Waste Better The Taste इस गार्बेज कैफे की थीम है. इसका मतबल होता है जितना अधिक कचरा होगा, स्वाद उतना ही बेहतर होगा यानि कि आप जितना रद्दी और कचरा लाओगे उतना टेस्टी खाना पाओगे. इस गार्बेज कैफे में खाने या नाश्ते के लिए पैसे नहीं देने पड़ते हैं. पैसों की जगह यहां प्लास्टिक वेस्ट यानि की प्लास्टिक वाला कूड़ा देना पड़ता है. एक किलो प्लास्टिक में खाना और आधा किलो प्लास्टिक में नास्ता दिया जाता है. इस कैफे वाली स्कीम से बीते पांच साल में अंबिकापुर शहर में प्रदूषण के स्तर में बेहद कमी देखने को मिल रही है. कचरे में भी कमी आई है. लोगों के अंदर भी जागरुकता आई है कि वह प्लास्टिक की चीजों का कम से कम इस्तेमाल करें खासकर पॉलिथीन का. इससे पर्यावरण को गंभीर खतरा है.
"अंबिकापुर की साफ सफाई में मिली मदद": अंबिकापुर शहर को क्लीन सिटी का खिताब दिलाने में इस गार्बेज कैफे की अहम भूमिका रही है. शहर में लगातार प्लास्टिक वेस्ट में कमी आई है. हर साल प्लास्टिक वेस्ट की घटती संख्या बताती है की लोग प्लास्टिक के उपयोग के प्रति जागरूक हो रहे हैं. देश के पहले गार्बेज कैफे से अंबिकापुर की साफ सफाई में तो मदद मिली है. देश को भी एक शानदार मैसेज गया. स्वच्छ भारत मिशन शहरी के नोडल आफिसर रितेश सैनी बताते हैं कि इस गार्बेज कैफे का उद्देश्य प्लास्टिक के कचरे से शहर को निजात मिली है.
साल 2019 में करीब 5400 किलो प्लास्टिक इस कैफे में आई. उसके बाद कोरोना काल में 2020-21 में फैफे बंद रहा. इस दौरान भी लोगों में जागरुकता रही और उन्होंने शहर में कम प्लास्टिक वेस्ट फेंका. साल 2022 में 2500 किलो और 2024 में 2000 किलो प्लास्टिक वेस्ट गार्बेज कैफे के माध्यम से पहुंचा है. आज भी इस कैफे में रोजाना पांच से 6 लोग प्लास्टिक वाला कचरा ला रहे हैं- रितेश सैनी, नोडल ऑफिसर, स्वच्छ भारत मिशन शहरी
पर्यावरण के जानकार ने क्या कहा?: इस गार्बेज कैफे को पर्यावरण के जानकार भी बेहद सफल मानते हैं. पर्यावरण के जानकार और मौसम विज्ञानी एमएम भट्ट ने इस मुहिम की तारीफ की और कहा कि नगर निगम में हजारो टन प्लास्टिक के कचरे को प्रकृति में मिलने से रोका है. इससे शहर के लोगों को स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी नसीब हुई है. इसके साथ ही जलवायु को होने वाले नुकसान में भी कमी आई है.
प्लास्टिक वेस्ट समेत अन्य ऐसे कचरे जो रासायनिक असर डालते हैं. उन सबको नगर निगम प्रशासन ने प्रकृति में मिलने से रोका है. अगर ये कचरा शहर में जाता तो मिटटी पानी और जलवायु को नुकसान पहुंचाता. इस गार्बेज कैफे के प्रयास से इसमें कमी आई है. इसके साथ ही प्लास्टिक के निदान से मिटटी और पानी के साथ साथ पशुओं को होने वाले खतरे भी कम हुए हैं- एएम भट्ट, मौसम विज्ञानी और पर्यावरण के जानकार
"नगर निगम का प्रयास बना रोल मॉडल": इस गार्बेज कैफे की सफलता से अंबिकापुर के मेयर भी काफी संतुष्ट हैं. उन्होंने इसके लिए नगर निगम की टीम को बधाई दी है. अंबिकापुर के मेयर अजय तिर्की ने बताया कि "नगर निगम अंबिकापुर ने वेस्ट मैनेजमेंट में शरू से ही अच्छा काम किया है. इसमें सबसे सहभागिता रही है शहर के सभी वर्ग के सहयोग से ही ये संभव हुआ. इसमें हर साल इनोवेशन किये गये. इसी के तहत प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए गार्बेज कैफे की योजना शुरू की गई. इस प्रयास की पूरे देश में ही नहीं बल्कि यूएन में भी सराहना की गई थी"
प्लास्टिक कचरा इक्टठा करने की तकनीक: इस गार्बेज कैफे में प्लास्टिक के कचरे के बदले कैसे खाना दिया जाता है. उसको समझना बेहद जरूरी है. अंबिकापुर में कोई भी शख्स प्लास्टि का कचरा जुटाकर गार्बेज कैफे के सेंटर में जमा कर सकता है. इसके लिए नगर निगम ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहर की स्वच्छता दीदियों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है. कोई भी शख्स जो प्लास्टिक का कचरा इक्टठा करता है उसे नगर निगम की स्वच्छता दीदियों को यह कचरा देना होता है. इसके बदले में स्वच्छता दीदी उन्हें प्लास्टिक का कचरा देने पर कचरे को तौलकर कूपन देती है. उस कूपन को इस गार्बेज कैफे में दिखाने पर उन्हें खाना और नाश्ता मिलता है. इस नाश्ते और खाने के दर का भुगतान नगर निगम गार्बेज कैफे को प्रति कूपन के आधार पर करता है.
नगर निगम की गार्बेज कैफे वाला यह मॉडल अच्छा है. इससे शहर की साफ सफाई में मदद मिलती है. यह अच्छा है इसे चलना चाहिए- सरोज, स्थानीय निवासी
एसएलआरएम सेंटर में प्लास्टिक की तौलाई दो तरीके से की जाती है. एक किलो प्लास्टिक की तौलाई में खाने का कूपन दिया जाता है. आधा किलो प्लास्टिक में नाश्ता दिया जाता है- स्वरा श्री टोप्पो ,एसएलआरएम सुपरवाइजर
यहां रोजाना प्लास्टिक के कचरे के बदले कूपन दिया जाता है. रोजाना 10 से ज्यादा कूपन कटता है. हमारे पास टोकन आता है उसमें प्लास्टिक की मात्रा लिखी होती है. उसके आधार पर हम नाश्ता और भोजन देते हैं. यह अच्छे से चल रहा है- रोहित पटेल, संचालक, गार्बेज कैफे
प्लास्टिक के कचरे को छांटने की प्रक्रिया: शहर में इक्टठा किए गए प्लास्टिक के कचरे को छांटने का काम किया जाता है. इसमें स्वच्छता दीदियों की टीम काम करती है. शहर से इक्टठा किए गए गीले और सूखे कचरे को अलग अलग बांटा जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में कचरा कलेक्शन से लेकर कचरे को बांटने के काम में 80 महिलाएं काम करती हैं. जिनमें 450 दीदी घरों से कचरा कलेक्शन का काम करती हैं. बाकी 30 स्वच्छता दीदियां इन कचरों को छांटने का काम करती है. इसके बाद ये कचरा शहर के 20 एसएलआरएम सेंटरों में लाया जाता है.
एसएलआरएम सेंटरों में होती है कचरे की छटाई: अंबिकापुर के 20 एसएलआरएम सेंटर (Scientific Solid And Liquid Resource Management) में कचरे की छटाई होती है. यहां इन्हें छांट कर अलग किया जाता है. छंटा हुआ कचरा सेनेटरी पार्क स्थित सेग्रेगेशन सेंटर में भेजा जाता है. यहां पर कचरों की विभिन्न स्तरों में प्रोसेसिंग की जाती है. यहां 156 प्रकार के अलग-अलग कचरे डिसाइड किए जाते हैं. ज्यादातर कचरा सीधे ही बेच दिया जाता है, लेकिन प्लास्टिक, सीएंडडी वेस्ट, मेडिकल वेस्ट को प्रोसेस किया जाता है. प्लास्टिक का दाना बनाकर उसे रीजयूज किया जा रहा है. सीएंडडी वेस्ट (Construction and Demolition Waste) की प्रोसेस यूनिट लगाई गई है. जिसमें भी इसका भी उपयोग किया जा रहा है. मेडिकल वेस्ट और बाकी प्रोसेसिंग से बचने वाला वेस्ट इंसीनरेटर में जला दिया जाता है.