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धमतरी का अंगारमोती मंदिर, औंधे मुंह लेटी महिलाओं पर बैगा के चलने की परंपरा

धमतरी के अंगारमोती मंदिर की सालों पुरानी मड़ई की परंपरा आज भी कायम है. जिसमे शामिल होने दूर दूर से महिलाएं पहुंचती है.

DHAMTARI ANGARMOTI
अंगारमोती मंदिर में दिवाली के बाद मड़ई परंपरा (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 9, 2024, 9:23 PM IST

Updated : Nov 11, 2024, 6:16 AM IST

धमतरी: गंगरेल स्थित मां अंगारमोती मंदिर में दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को मड़ई का आयोजन होता है. इस मड़ई में छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों के लोग पहुंचते हैं. हर साल की तरह इस साल भी 52 गांव के देवी-देवता मड़ई में शामिल हुए. अंगारमोती मड़ई की खास बात है कि निसंतान महिलाएं यहां जरूर पहुंचती है और संतान प्राप्ति की मन्नत मां अंगारमोती से मांगती है. निंसतान महिलाएं लेटकर मां से मुराद मांगती है. इन लेटी महिलाओं पर बैगा चलकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं.

दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को अंगारमोती मड़ई: शुक्रवार अंगारमोती मड़ई में संतान की कामना के लिए 500 से ज्यादा महिलाएं हाथ में नारियल, नींबू, फूल पकड़कर मां अंगार मोती के दरबार के सामने जमीन पर लेटीं. सुहागिनों के ऊपर चलकर मुख्य पुजारी ने उन्हें आशीर्वाद दिया. जमीन पर लेटने वाली सुहागिनों की भीड़ इतनी ज्यादा रही कि मां अंगार मोती के दरबार से लेकर मंदिर के प्रवेश द्वार तक करीब 500 मीटर तक का रास्ता उनसे भर गया.

अंगारमोती मंदिर में मड़ई परंपरा (ETV BHARAT)

यहां सभी लोग अपनी इच्छा पूर्ति के लिए आते हैं. कुछ लोग संतान प्राप्ति के लिए आते हैं. कुछ लोग अपनी शारीरिक परेशानी के लिए आते हैं. दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को बैगा आते हैं. जो भी मन्नत मांगते है पूरी होती है : नंदनी साहू, श्रद्धालु, बलौदाबाजार

सुबह 10 बजे से मंदिर आई हूं. मां अंगारमोती मंदिर में जो भी कुछ मांगते हैं वो जरूर मिलता है. निसंतान लोगों को संतान जरूर होती है : स्मिति साहू, श्रद्धालु

अंगारमोती मां के दरबार में निसंतान महिलाओं की भीड़ : पुरानी मान्यता है कि निसंतान महिलाओं को मां अंगारमोती का आशीर्वाद मिल जाए, तो उसके आंगन में किलकारियां जरूर गूंजती है. लेकिन इस आशीर्वाद के लिये उस प्रथा का पालन भी करना होता है, जो यहां प्रचलित है. इसके लिये निसंतान महिलाएं सुबह से ही मंदिर पहुंचती हैं. इन्हें अपने बाल खुले रखने होते हैं. निराहार रहना होता है. हाथ में एक नारियल लेकर ये महिलाएं इंतजार करती रहती हैं.

Dhamtari Angarmoti temple
मन्नत मांगने महिलाओं की लगती है कई किलोमीटर लंबी लाइन (ETV Bharat Chhattisgarh)

कहा जाता है कि जब पूजा पाठ करने के बाद मुख्य पुजारी अंगारमोती मंदिर की तरफ आते है, उस दौरान मुख्य पुजारी या बैगा पर मां अंगारमोती सवार रहती है. जैसे ही बैगा मंदिर की तरफ बढ़ते है. सभी महिलाएं रास्ते में औंधे लेट जाती है. बैगा इन महिलाओं के उपर से चलते हुए मंदिर तक जाते है. कहते हैं कि जिन महिलाओं के उपर बैगा का पैर पड़ता है. उसकी गोद जरूर हरी होती है.

Dhamtari Angarmoti temple
छत्तीसगढ़ के हर जिले से लोग पहुंचते हैं अंगारमोती मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

बस्तर से आई हूं, पता चला कि यहां मन्नत मांगने से पूरी होती है तो यहां आए हैं. शादी होकर 3 साल हो गए है. संतान के लिए आए है. : दुर्गा कश्यप, श्रद्धालु

हर साल लोग मन्नत लेकर आते हैं मन्नत पूरी होने के बाद उनकी श्रद्धा और बढ़ती जा रही है. अंगारमोती मां के दर्शन करने दूर दूर से लोग आते हैं. सदियों से ये परंपरा चली आ रही है. गंगरेल बांध के निर्माण के दौरान 52 गांवों की देवी देवता को एक साथ अंगारमोती मां के दरबार पहुंचे. जिसके बाद मां को इस जगह पर स्थापित किया गया. :जयपाल सिंह ध्रुव, मां अंगारमोती मंदिर ट्रस्ट, सदस्य

पहले मड़ई दिवाली के बाद के प्रथम शुक्रवार को अंगारमोती मंदिर में मड़ई होता है. उसके बाद बाकी के सब जगह होता है. आस्था, अंधविश्वास से आगे हैं. अपनी इच्छा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा सकते हैं :डॉ एआर ठाकुर, मां अंगारमोती मंदिर ट्रस्ट, सदस्य

अंगारमोती मंदिर की मान्यता: बताया जाता है कि कई साल पहले अंगारमोती माता की मूर्ति डुबान क्षेत्र के गांव कोरलमा, कोकड़ी, बटरेल, चंवर की सीमा में महानदी नदी किनारे विराजमान थी. जहां लोग विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करते थे. मां अंगारमोती 52 गांवों की देवी कहलाती थी. उस समय भी शुक्रवार के दिन दिवाली के बाद मड़ई का आयोजन किया जाता. यह परंपरा आज भी कायम है.

Dhamtari Angarmoti temple
जमीन पर लेटीं महिलाओं के ऊपर पैदल चलकर जाते हैं बैगा (ETV Bharat Chhattisgarh)

जब गंगरेल बांध बना तब 52 गांव डूब में आ गए. माता अंगारमोती की मूर्ति को उस जगह से 40 साल पहले बैलगाड़ी के जरिए ग्राम खिड़कीटोला लाया गया. बाद में इसे गंगरेल बांध के अंतिम छोर में पुर्नस्थापित किया गया. 1999 से मां अंगारमोती मंदिर के संरक्षण और देखरेख की जिम्मेदारी के लिए ट्रस्ट बनाया गया. अब इसका संचालन गौड़ समाज की तरफ से किया जाता है. मां अंगारमोती की ख्याति छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि कई राज्यों तक फैली है. सुरक्षा की दृष्टिकोण से मड़ई क्षेत्र में पुलिस की ड्युटी के साथ-साथ पुलिस यातायात की टीम तैनात की गई थी. मड़ई में हजारों लोग दर्शन के लिए पहुंचे.

Dhamtari Angarmoti temple
अंगारमोती मंदिर में निसन्तान महिलाओं की भीड़ (ETV Bharat Chhattisgarh)
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धमतरी: गंगरेल स्थित मां अंगारमोती मंदिर में दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को मड़ई का आयोजन होता है. इस मड़ई में छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों के लोग पहुंचते हैं. हर साल की तरह इस साल भी 52 गांव के देवी-देवता मड़ई में शामिल हुए. अंगारमोती मड़ई की खास बात है कि निसंतान महिलाएं यहां जरूर पहुंचती है और संतान प्राप्ति की मन्नत मां अंगारमोती से मांगती है. निंसतान महिलाएं लेटकर मां से मुराद मांगती है. इन लेटी महिलाओं पर बैगा चलकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं.

दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को अंगारमोती मड़ई: शुक्रवार अंगारमोती मड़ई में संतान की कामना के लिए 500 से ज्यादा महिलाएं हाथ में नारियल, नींबू, फूल पकड़कर मां अंगार मोती के दरबार के सामने जमीन पर लेटीं. सुहागिनों के ऊपर चलकर मुख्य पुजारी ने उन्हें आशीर्वाद दिया. जमीन पर लेटने वाली सुहागिनों की भीड़ इतनी ज्यादा रही कि मां अंगार मोती के दरबार से लेकर मंदिर के प्रवेश द्वार तक करीब 500 मीटर तक का रास्ता उनसे भर गया.

अंगारमोती मंदिर में मड़ई परंपरा (ETV BHARAT)

यहां सभी लोग अपनी इच्छा पूर्ति के लिए आते हैं. कुछ लोग संतान प्राप्ति के लिए आते हैं. कुछ लोग अपनी शारीरिक परेशानी के लिए आते हैं. दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को बैगा आते हैं. जो भी मन्नत मांगते है पूरी होती है : नंदनी साहू, श्रद्धालु, बलौदाबाजार

सुबह 10 बजे से मंदिर आई हूं. मां अंगारमोती मंदिर में जो भी कुछ मांगते हैं वो जरूर मिलता है. निसंतान लोगों को संतान जरूर होती है : स्मिति साहू, श्रद्धालु

अंगारमोती मां के दरबार में निसंतान महिलाओं की भीड़ : पुरानी मान्यता है कि निसंतान महिलाओं को मां अंगारमोती का आशीर्वाद मिल जाए, तो उसके आंगन में किलकारियां जरूर गूंजती है. लेकिन इस आशीर्वाद के लिये उस प्रथा का पालन भी करना होता है, जो यहां प्रचलित है. इसके लिये निसंतान महिलाएं सुबह से ही मंदिर पहुंचती हैं. इन्हें अपने बाल खुले रखने होते हैं. निराहार रहना होता है. हाथ में एक नारियल लेकर ये महिलाएं इंतजार करती रहती हैं.

Dhamtari Angarmoti temple
मन्नत मांगने महिलाओं की लगती है कई किलोमीटर लंबी लाइन (ETV Bharat Chhattisgarh)

कहा जाता है कि जब पूजा पाठ करने के बाद मुख्य पुजारी अंगारमोती मंदिर की तरफ आते है, उस दौरान मुख्य पुजारी या बैगा पर मां अंगारमोती सवार रहती है. जैसे ही बैगा मंदिर की तरफ बढ़ते है. सभी महिलाएं रास्ते में औंधे लेट जाती है. बैगा इन महिलाओं के उपर से चलते हुए मंदिर तक जाते है. कहते हैं कि जिन महिलाओं के उपर बैगा का पैर पड़ता है. उसकी गोद जरूर हरी होती है.

Dhamtari Angarmoti temple
छत्तीसगढ़ के हर जिले से लोग पहुंचते हैं अंगारमोती मंदिर (ETV Bharat Chhattisgarh)

बस्तर से आई हूं, पता चला कि यहां मन्नत मांगने से पूरी होती है तो यहां आए हैं. शादी होकर 3 साल हो गए है. संतान के लिए आए है. : दुर्गा कश्यप, श्रद्धालु

हर साल लोग मन्नत लेकर आते हैं मन्नत पूरी होने के बाद उनकी श्रद्धा और बढ़ती जा रही है. अंगारमोती मां के दर्शन करने दूर दूर से लोग आते हैं. सदियों से ये परंपरा चली आ रही है. गंगरेल बांध के निर्माण के दौरान 52 गांवों की देवी देवता को एक साथ अंगारमोती मां के दरबार पहुंचे. जिसके बाद मां को इस जगह पर स्थापित किया गया. :जयपाल सिंह ध्रुव, मां अंगारमोती मंदिर ट्रस्ट, सदस्य

पहले मड़ई दिवाली के बाद के प्रथम शुक्रवार को अंगारमोती मंदिर में मड़ई होता है. उसके बाद बाकी के सब जगह होता है. आस्था, अंधविश्वास से आगे हैं. अपनी इच्छा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा सकते हैं :डॉ एआर ठाकुर, मां अंगारमोती मंदिर ट्रस्ट, सदस्य

अंगारमोती मंदिर की मान्यता: बताया जाता है कि कई साल पहले अंगारमोती माता की मूर्ति डुबान क्षेत्र के गांव कोरलमा, कोकड़ी, बटरेल, चंवर की सीमा में महानदी नदी किनारे विराजमान थी. जहां लोग विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करते थे. मां अंगारमोती 52 गांवों की देवी कहलाती थी. उस समय भी शुक्रवार के दिन दिवाली के बाद मड़ई का आयोजन किया जाता. यह परंपरा आज भी कायम है.

Dhamtari Angarmoti temple
जमीन पर लेटीं महिलाओं के ऊपर पैदल चलकर जाते हैं बैगा (ETV Bharat Chhattisgarh)

जब गंगरेल बांध बना तब 52 गांव डूब में आ गए. माता अंगारमोती की मूर्ति को उस जगह से 40 साल पहले बैलगाड़ी के जरिए ग्राम खिड़कीटोला लाया गया. बाद में इसे गंगरेल बांध के अंतिम छोर में पुर्नस्थापित किया गया. 1999 से मां अंगारमोती मंदिर के संरक्षण और देखरेख की जिम्मेदारी के लिए ट्रस्ट बनाया गया. अब इसका संचालन गौड़ समाज की तरफ से किया जाता है. मां अंगारमोती की ख्याति छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि कई राज्यों तक फैली है. सुरक्षा की दृष्टिकोण से मड़ई क्षेत्र में पुलिस की ड्युटी के साथ-साथ पुलिस यातायात की टीम तैनात की गई थी. मड़ई में हजारों लोग दर्शन के लिए पहुंचे.

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Last Updated : Nov 11, 2024, 6:16 AM IST
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