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अनोखी है शिव के इस रूप की कहानी, 'श्वेत गंगा' से होता है अभिषेक

छत्तीसगढ़ में शिव की नगरी सिरपुर को छत्तीसगढ़ का बैजनाथ धाम माना जाता है. जहां सावन शुरू होते ही हजारों की संख्या में कांवरियों बम्हनी से जल उठाते हैं. बम्हनी में भूगर्भ से निकलने वाले जल को श्वेत गंगा कहा जाता है. इसकी मान्यता गंगाजल के बराबर है. यहां से जल लेकर 42 किलोमीटर दूर सिरपुर जाने के लिए ओडिशा सहित काफी दूर-दूर से हजारों की संख्या में कांवर यात्री यहां आते हैं और यहां बम्हनी स्थित शिव मंदिर में पूजा एवं संकल्प के बाद कांवर लेकर सिरपुर के लिए निकलते हैं

गंधेश्वर महादेव मंदिर
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Published : Aug 11, 2019, 11:48 PM IST

Updated : Aug 12, 2019, 1:32 PM IST

महासमुंद : सावन माह भगवान शिव को अतिप्रिय होता है. मान्यता है कि सावन महीने में भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से मनुष्य के सब दुख-दर्द दूर होते हैं. आज सावन का आखिरी सोमवार है. 'बोल बम का नारा है भोलेनाथ जी का सहारा है' जैसे जयकारों और नारों के साथ कांवरिया छत्तीसगढ़ के बैजनाथ धाम माने जाने वाले सिरपुर में भगवान गंधेश्वर को जल चढ़ाने के लिए निकल पड़े हैं.

श्वेत गंगा से होता है गंधेश्वर महादेव का अभिषेक

गंगाजल सा पवित्र है यहां का पानी
छत्तीसगढ़ में शिव की नगरी सिरपुर को छत्तीसगढ़ का बैजनाथ धाम माना जाता है. जहां सावन शुरू होते ही हजारों की संख्या में कांवरियों बम्हनी से जल उठाते हैं. बम्हनी में भूगर्भ से निकलने वाले जल को श्वेत गंगा कहा जाता है. इसकी मान्यता गंगाजल के बराबर है. यहां से जल लेकर 42 किलोमीटर दूर सिरपुर जाने के लिए ओडिशा सहित काफी दूर-दूर से हजारों की संख्या में कांवर यात्री यहां आते हैं और यहां बम्हनी स्थित शिव मंदिर में पूजा एवं संकल्प के बाद कांवर लेकर सिरपुर के लिए निकलते हैं

ऐसा है इतिहास
सन् 1984 में पहली बार 16 श्रद्धालुओं ने बम्हनी से सिरपुर कांवर यात्रा की शुरुआत की थी, तब से यहां परंपरा चली आ रही है. हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु कांवर में जल लेकर सिरपुर पहुंचते हैं. हर साल श्राद्धलुओं की संख्या बढ़ती जा रही है. सरस सलिल महानदी के पावन तट पर सिरपुर नगरी भगवान शंकर की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में होती है. नदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में बाला अर्जुन के समय बाणासुर के द्वारा कराया गया था.

ऐसे प्रकट हुए शिव
बताया जाता है कि बाणासुर हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे. वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आते थे. एक दिन भगवान शंकर प्रकट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो अब मैं सिरपुर में ही प्रकट हो रहा हूं, तब बाणासुर ने कहा कि भगवान सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं, आप प्रकट होंगे तो मैं कैसे पहचानूंगा. तब भगवान शंकर ने कहा कि जिस शिवलिंग से तुम्हें गंध आए उसे ही स्थापित कर पूजा करो और तभी से सिरपुर में शिवजी की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में होती है. कहा जाता है कि अभी भी गर्भ गृह से शिवलिंग से सुगंध का एहसास होता है इसलिए ही यहां शिवजी को गंधेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है. कांवर में रखा जल सही मायने में शिव की अमानत होती है इसलिए विधि-विधान का पालन करते हैं. दूर-दूर से आए कांवरिया और श्रद्धालुओं का कहना है कि गंधेश्वर महादेव का अभिषेक करने से सभी मनोकामना पूरी होती है.

महासमुंद : सावन माह भगवान शिव को अतिप्रिय होता है. मान्यता है कि सावन महीने में भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से मनुष्य के सब दुख-दर्द दूर होते हैं. आज सावन का आखिरी सोमवार है. 'बोल बम का नारा है भोलेनाथ जी का सहारा है' जैसे जयकारों और नारों के साथ कांवरिया छत्तीसगढ़ के बैजनाथ धाम माने जाने वाले सिरपुर में भगवान गंधेश्वर को जल चढ़ाने के लिए निकल पड़े हैं.

श्वेत गंगा से होता है गंधेश्वर महादेव का अभिषेक

गंगाजल सा पवित्र है यहां का पानी
छत्तीसगढ़ में शिव की नगरी सिरपुर को छत्तीसगढ़ का बैजनाथ धाम माना जाता है. जहां सावन शुरू होते ही हजारों की संख्या में कांवरियों बम्हनी से जल उठाते हैं. बम्हनी में भूगर्भ से निकलने वाले जल को श्वेत गंगा कहा जाता है. इसकी मान्यता गंगाजल के बराबर है. यहां से जल लेकर 42 किलोमीटर दूर सिरपुर जाने के लिए ओडिशा सहित काफी दूर-दूर से हजारों की संख्या में कांवर यात्री यहां आते हैं और यहां बम्हनी स्थित शिव मंदिर में पूजा एवं संकल्प के बाद कांवर लेकर सिरपुर के लिए निकलते हैं

ऐसा है इतिहास
सन् 1984 में पहली बार 16 श्रद्धालुओं ने बम्हनी से सिरपुर कांवर यात्रा की शुरुआत की थी, तब से यहां परंपरा चली आ रही है. हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु कांवर में जल लेकर सिरपुर पहुंचते हैं. हर साल श्राद्धलुओं की संख्या बढ़ती जा रही है. सरस सलिल महानदी के पावन तट पर सिरपुर नगरी भगवान शंकर की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में होती है. नदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में बाला अर्जुन के समय बाणासुर के द्वारा कराया गया था.

ऐसे प्रकट हुए शिव
बताया जाता है कि बाणासुर हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे. वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आते थे. एक दिन भगवान शंकर प्रकट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो अब मैं सिरपुर में ही प्रकट हो रहा हूं, तब बाणासुर ने कहा कि भगवान सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं, आप प्रकट होंगे तो मैं कैसे पहचानूंगा. तब भगवान शंकर ने कहा कि जिस शिवलिंग से तुम्हें गंध आए उसे ही स्थापित कर पूजा करो और तभी से सिरपुर में शिवजी की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में होती है. कहा जाता है कि अभी भी गर्भ गृह से शिवलिंग से सुगंध का एहसास होता है इसलिए ही यहां शिवजी को गंधेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है. कांवर में रखा जल सही मायने में शिव की अमानत होती है इसलिए विधि-विधान का पालन करते हैं. दूर-दूर से आए कांवरिया और श्रद्धालुओं का कहना है कि गंधेश्वर महादेव का अभिषेक करने से सभी मनोकामना पूरी होती है.

Intro:एंकर- बोल बम का नारा है भोलेनाथ जी सहारा है जैसे जयकारो एवं नारों के साथ कांवरिया सावन लगते ही छत्तीसगढ़ के बैजनाथ धाम माने जाने वाले सिरपुर में भगवान गंधेशस्वर को जल चढ़ाने के लिए निकल पड़ते हैं कांवरियों एवं डाक बम कांवरिया बिना रुके जाने वाले के द्वारा पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ जल अर्पण करने के पीछे सदियों से प्रमाणित मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ बाबा भक्तों का संकट दूर कर सभी प्रकार के कल्याण करते हैं। छत्तीसगढ़ में शिव की नगरी सिरपुर को छत्तीसगढ़ का बैजनाथ धाम माना जाता है जहां सावन लगते ही हजारों की संख्या में कांवरियों बम्हनी से जल उठाते हैं बमनी में भूगर्भ से स्वत निकलने वाले जल को श्वेत गंगा कहा जाता है।


Body:
वीओ 1 - इसकी मान्यता गंगाजल के बराबर है बमनी से जल लेकर 42 किलोमीटर दूर सिरपुर जाने के लिए उड़ीसा सहित काफी दूर-दूर से हजारों की संख्या में कांवर यात्री भक्ति आता यहां तक आते हैं। और यहां बम्हनी स्थित शिव मंदिर में पूजा एवं सकलप के बाद कांवर लेकर सिरपुर के लिए निकलते हैं सन 1984 में पहली बार 16 श्रद्धालुओं ने बम्हनी से सिरपुर कावर यात्रा की शुरुआत की थी तब से यहां परंपरा चली आ रही है हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु कावर में जल लेकर सिरपुर पहुंचते हैं यह रिकॉर्ड है कि हर वर्ष यहां श्राद्धलुओ की संख्या बढ़ती जा रही है सरस सलिल महानदी के पावन तट पर शिरपुर नगरी भगवान शंकर की पूजा गधेशर के रूप में होती है नदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में बाला अर्जुन के समय बाणासुर के द्वारा कराया गया था जिसके बारे में एक देव कथा है कि वह हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आते थे एक दिन भगवान शंकर प्रकट होकर बाणासुर रूप से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो अब मैं शेरपुर में ही प्रकट हो रहा हूं तब बाणासुर ने कहा कि भगवान में सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं आप प्रकट होंगे तो मैं कैसे पहचान लूंगा तब भगवान शंकर ने कहा कि इस शिवलिंग का एहसास हो उससे ही स्थापित कर पूजा करो तब से सिरपुर में शिवजी की पूजा गधेशवर महादेव के रूप में होती है अभी भी गर्भ गृह से शिवलिंग से कभी सुगंध तो कभी दुर्गगनध का एहसास होता है इसलिए ही यहां शिवजी को गंगेश्वर के रूप में पूजते हैं गदेश्वर मंदिर काफी पुराना मंदिर है।


Conclusion:वीओ 2 - कांवर में रखा जल सही मायने में शिव की अमानत होती है इसलिए विधि-विधान का पालन करते हैं दूर-दूर से आए कांवरिया श्रद्धालुओं का कहना है किसान और भगवान का अभिषेक करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है सावन के प्रत्येक सोमवार को हजारों लोग दूर-दूर से आते हैं और जल अभिषेक करते हैं कांवरिया ट्रस्ट के द्वारा कांवरियों के लिए भोजन रहने आदि की निशुल्क व्यवस्था हर साल की जाती है वही रस्ते में लोग भंडारा लगा कर भक्तों का सेवा कर भगवान का आशीर्वाद लेते हैं।


बाइट 1 - मंजू अग्रवाल, महिला श्रदालु, पहचान - नीला सदी और सर पर सिंदूर।

बाइट 2 - गोपाल पटेल, पुरुष काँवरिया, पहचान - बोल बम लिखा हुआ कपड़ा और संतरे कलर का टीशर्ट।

one2one - प्रकाश गिरी, गंधेश्वर मंदिर पुजारी, सिरपुर

हकीमुद्दीन नासिर रिपोर्ट ईटीवी भारत महासमुंद छत्तीसगढ़ मो. 9826555052
Last Updated : Aug 12, 2019, 1:32 PM IST
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