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कोरिया : दिव्यांग परमेश्वर के जज्बे को सलाम, हर काम को बना लिया आसान

''खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है'' ये पंक्तियां जिले के मनेंद्रगढ़ में संचालित नेत्रहीन विद्यालय में पढ़ने वाले 14 साल के परमेश्वर पर सटीक बैठती है. परमेश्वर दिव्यांग है. उसके जन्म से ही दोनों हाथ नहीं हैं और आंखों से कम दिखाई देता है. इतना होने के बावजूद भी वह किसी का सहारा लिए बिना वह खुद ही अपने जरूरी कामों को ऐसे पूरा करता है, जिसे देखकर लोगों को यकीन नहीं होता.

दिव्यांग परमेश्वर
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Published : Feb 24, 2019, 11:52 PM IST

मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा इलाके में बीते 20 सालों से नेत्रहीन विद्यालय संचालित हैं. स्कूल में लगभग 50 दिव्यांग बच्चे रहते हैं, जिसमें से कुछ बच्चों के हाथ, पैर सही सलामत हैं, लेकिन उन्हें दिखाई नहीं देता है.

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स्कूल के लोगों ने नहीं देखी शिकन
भले ही कुदरत ने परमेश्वर दिव्यांग बनाया है पर उसके चेहरे पर कभी भी स्कूल के लोगों ने शिकन नहीं देखी. जब हमने उससे बात कि तब उसका जवाब था कि दूसरे लोग जो काम हाथ से नहीं करते, वह उन्हीं कामों को अपने पैरों से करता है.

वहीं पढ़ाई के साथ ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है. वह पढ़-लिखकर कलेक्टर बनकर देश की सेवा करना चाहता है. इसके साथ ही उसे झांझ बजाना बहुत अच्छा लगता है, उसके हाथ नहीं होने के बावजूद भी वह अच्छे कलाकार की तरह बजाता है, जिसे देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं. इसके अलावा उसे अपनी दिनचर्या के लिए किसी दूसरे का सहारा नहीं लेना पड़ता है.

लोगों के लिए मिसाल
बहरहाल परमेश्वर का यह जज्बा उन लोगों के लिए मिसाल है, जो हाथ-पैर सही सलामत होने के बाद भी दूसरों का सहारा खोजते हैं. कलेक्टर बनने में तो वक्त है, लेकिन इतना जरूर है कि जिस प्रकार परमेश्वर अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा रहा है, तो एक न एक दिन उसे उसकी मंजिल जरूर मिलेगी.

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मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा इलाके में बीते 20 सालों से नेत्रहीन विद्यालय संचालित हैं. स्कूल में लगभग 50 दिव्यांग बच्चे रहते हैं, जिसमें से कुछ बच्चों के हाथ, पैर सही सलामत हैं, लेकिन उन्हें दिखाई नहीं देता है.

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स्कूल के लोगों ने नहीं देखी शिकन
भले ही कुदरत ने परमेश्वर दिव्यांग बनाया है पर उसके चेहरे पर कभी भी स्कूल के लोगों ने शिकन नहीं देखी. जब हमने उससे बात कि तब उसका जवाब था कि दूसरे लोग जो काम हाथ से नहीं करते, वह उन्हीं कामों को अपने पैरों से करता है.

वहीं पढ़ाई के साथ ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है. वह पढ़-लिखकर कलेक्टर बनकर देश की सेवा करना चाहता है. इसके साथ ही उसे झांझ बजाना बहुत अच्छा लगता है, उसके हाथ नहीं होने के बावजूद भी वह अच्छे कलाकार की तरह बजाता है, जिसे देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं. इसके अलावा उसे अपनी दिनचर्या के लिए किसी दूसरे का सहारा नहीं लेना पड़ता है.

लोगों के लिए मिसाल
बहरहाल परमेश्वर का यह जज्बा उन लोगों के लिए मिसाल है, जो हाथ-पैर सही सलामत होने के बाद भी दूसरों का सहारा खोजते हैं. कलेक्टर बनने में तो वक्त है, लेकिन इतना जरूर है कि जिस प्रकार परमेश्वर अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा रहा है, तो एक न एक दिन उसे उसकी मंजिल जरूर मिलेगी.

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Intro:मंजिले उन्ही को मिलती है जिनके हौसलों में जान होती है पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है । ये लाइनें कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ में संचालित नेत्रहीन विद्यालय में पढ़ने वाले 14 वर्षीय परमेश्वर पर पूरी तरह खरी उतरती है । परमेश्वर के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है । एक आंख में थोड़ा थोड़ा दिखाई देता है । इतना होने के बावजूद ही परमेश्वर किसी का सहारा लिए बिना वह खुद अपने जरूरी कामों को ऐसे पूरा करता है जिसे देख कर लोगों को सहसा यकीन नहीं होता ।


Body:मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा इलाके में बीते 20 वर्षों से नेत्रहीन विद्यालय संचालित है । इस स्कूल में लगभग 50 दिव्यांग बच्चे रहते हैं । इन दिव्यांग बच्चों के हाथ पैर सही सलामत हैं लेकिन उन्हें दिखाई नहीं देता । वही इन सब के पीछे एक ऐसा भी छात्र है जिसके दोनों हाथ भी नहीं है लेकिन हाथों के बिना ही परमेश्वर अपने पैरों से ही भोजन कर लेता है और पैरों से ही वह अपनी पढ़ाई भी करता है । इसके अलावा कपड़े पहनने से लेकर उसे अपनी दिनचर्या के लिए किसी दूसरे का सहारा नहीं लेना पड़ता है ।

भले ही कुदरत ने परमेश्वर के साथ बहुत नाइंसाफी की है लेकिन उसके चेहरे पर कभी भी स्कूल के लोगों ने शिकन नहीं देखी। उससे पूछने पर कि बिना हाथों के वह कैसा महसूस करता है । तो उसका जवाब था कि वह दूसरे लोग जो काम हाथों से नहीं करते वह उन्हीं कामों को अपने पैरों से कर लेता है । वहीं पढ़ाई के साथ ही वह सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर शामिल होता है । हाथ नहीं होने के बावजूद भी वह झांझ को किसी अच्छे कलाकार की तरह हो बजाता है , जिसे देख कर लोग हैरत में पड़ जाते हैं ।

इस स्कूल के शिक्षक बताते हैं कि जब परमेश्वर स्कूल में दाखिले के लिए आया तो उन्हें लगा कि वह यहां रहने वाले अन्य बच्चों के साथ कैसे रह पाएगा । तब उन्होंने परमेश्वर की परीक्षा ली तो उन्होंने पाया कि बिन हाथों के ही अपने मुंह में चाबी फंसाकर ताला खोल लेता है ।शौचालय में उसे कोई दिक्कत नहीं होती और खाना बनाने के लिए भी जिस तरह लोग अपने हाथों का इस्तेमाल करते हैं ।वह अपने पैरों में ही चम्मच फंसा कर बड़ी आसानी से खाना खा लेता है ।

बाइट गौतम कुमार सरोज (प्राचार्य,काला चश्मा)
बाइट - गीता रजक (कर्मचारी,महिला)
बाइट रामनाथ रहे (शिक्षक,वाइट चेक शर्ट)
बाइट गोपाल तिवारी (शिक्षक,गोल्डन फ्रेम वाला चश्मा)




Conclusion:बहर हाल परमेश्वर का यह जज्बा उन लोगों के लिए मिसाल है जो हाथ पैर सही सलामत होने के बाद भी दूसरों का सहारा खोजते रहते हैं । परमेश्वर ना केवल लोगों के लिए एक मिसाल है वरन वह पढ़ लिख कर कलेक्टर बनकर देश की सेवा करना चाहता है । उसके अरमानों को कब पंख लगेंगे । इसमें तो काफी वक्त है लेकिन इतना जरूर है कि जिस प्रकार परमेश्वर अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा दिए हैं तो एक ना एक दिन उसे उसकी मंजिल जरूर मिलेगी ।
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