मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा इलाके में बीते 20 सालों से नेत्रहीन विद्यालय संचालित हैं. स्कूल में लगभग 50 दिव्यांग बच्चे रहते हैं, जिसमें से कुछ बच्चों के हाथ, पैर सही सलामत हैं, लेकिन उन्हें दिखाई नहीं देता है.
स्कूल के लोगों ने नहीं देखी शिकन
भले ही कुदरत ने परमेश्वर दिव्यांग बनाया है पर उसके चेहरे पर कभी भी स्कूल के लोगों ने शिकन नहीं देखी. जब हमने उससे बात कि तब उसका जवाब था कि दूसरे लोग जो काम हाथ से नहीं करते, वह उन्हीं कामों को अपने पैरों से करता है.
वहीं पढ़ाई के साथ ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है. वह पढ़-लिखकर कलेक्टर बनकर देश की सेवा करना चाहता है. इसके साथ ही उसे झांझ बजाना बहुत अच्छा लगता है, उसके हाथ नहीं होने के बावजूद भी वह अच्छे कलाकार की तरह बजाता है, जिसे देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं. इसके अलावा उसे अपनी दिनचर्या के लिए किसी दूसरे का सहारा नहीं लेना पड़ता है.
लोगों के लिए मिसाल
बहरहाल परमेश्वर का यह जज्बा उन लोगों के लिए मिसाल है, जो हाथ-पैर सही सलामत होने के बाद भी दूसरों का सहारा खोजते हैं. कलेक्टर बनने में तो वक्त है, लेकिन इतना जरूर है कि जिस प्रकार परमेश्वर अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा रहा है, तो एक न एक दिन उसे उसकी मंजिल जरूर मिलेगी.