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राम वन गमन पथ: बस्तर संभाग में आदिवासियों का जेल भरो आंदोलन

कांकेर में गोंडवाना भवन से निकलकर बीच शहर से होते हुए आदिवासियों की रैली कलेक्ट्रेट जा रही है. रैली के गुजरने वाले रास्तों पर पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी गई है. आशंका जताई जा रही है कि आदिवासी पुलिस थाने का घेराव कर सकते हैं.

Jail Bharo movement of tribals
आदिवासियों का जेल भरो आंदोलन
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Published : Dec 30, 2020, 10:59 AM IST

Updated : Dec 30, 2020, 3:51 PM IST

कांकेर: थाने में आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामले को लेकर बस्तर के जिला मुख्यालयों और प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर बुधवार को आदिवासियों ने जेल भरो आंदोलन की शुरुआत की है. आदिवासियों के प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस अलर्ट है. विरोध दर्ज करा रहे आदिवासी समाज के प्रमुखों पर कांकेर थाने में मामला दर्ज किया गया था. सर्व आदिवासी समाज इसका विरोध कर रहा है. आदिवासी आज पूरे बस्तर संभाग में जेल भरो आंदोलन हो रहा है. जिले में रैली गोंडवाना भवन से निकलकर कलेक्ट्रेट की तरफ बढ़ रही है. दंतेवाड़ा में भी 25 लोगों ने आदिवासी समाज के नेता मेनका डोबरा गिरफ्तारी देंगे.

पुलिस और ग्रामीणों के बीच हुई हुई थी झड़प

छत्तीसगढ़ सरकार के दो साल पूरा होने का जश्न राम वन गमन रूट पर पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली निकालकर मनाया था. उत्तर से दक्षिण छत्तीसगढ़ तक पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली निकाली गई थी. 14 दिसंबर को निकाली गई इस रैली का बस्तर में बड़ी संख्या में आदिवासियों ने विरोध किया था. आदिवासी राम वन गमन पथ पर्यटन रथ पहुंचने से पहले ही NH 30 पर इकट्ठे हो गए और जाम लगा दिया था. कई घंटों तक आदिवासी सड़क पर डटे रहे और जिले की मिट्टी ले जाने का विरोध करने लगे. इस दौरान पुलिस के पहुंचने के बाद स्थिति और तनावपूर्ण हो गई थी. ग्रामीणों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई थी.

पढ़ें: कांकेर: आदिवासी समाज ने रथ से मिट्टी निकाली, बिना रुके गुजरी रैली, खत्म हुआ चक्काजाम

पेसा कानून का हो रहा उल्लंघन

काफी हंगामे के बाद पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों से आदिवासी समाज के पदाधिकारियों की बात हुई, जिसके बाद राम वन गमन पथ पर्यटक रथ को शहर में बिना रुके निकाला गया था. आदिवासी समाज के पदाधिकारियों का कहना था कि उनके क्षेत्र में पेसा कानून का उल्लंघन हो रहा है. उनका कहना है कि मिट्टी उनकी मां है. उन्होंने कहा कि उनकी मर्जी के बिना कोई उनके यहां की मिट्टी कैसे ले जा सकता है ?

इन जिलों में हुआ था विरोध-प्रदर्शन

  • कोंडागांव में भी सर्व आदिवासी समाज के लोगों ने यात्रा का विरोध किया था. इसे लेकर सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग के जिलाध्यक्ष जगत मरकाम ने कहा कि राम वन गमन पथ के लिए चिन्हांकित जगहों से मिट्टी ले जाया जा रहा है. ये हमारे आदिवासी परंपराओं और व्यवस्थाओं के खिलाफ है.
  • सुकमा में भी ग्रामीणों ने यात्रा का विरोध किया था. रथ यात्रा शुभारंभ होने से पहले सर्व आदिवासी समाज मातागुड़ी के प्रांगण में डट गए थे. जिसके बाद जिला प्रशासन ने सुकमा जिले के रामाराम से बगैर मिट्टी लिए रथ को रवाना कर दिया गया.
  • कांकेर में बड़ी संख्या में आदिवासियों ने सड़क जाम कर रथ यात्रा का विरोध किया था. कांकेर से 10 किमी पहले आदिवासी समाज ने विरोध जताते हुए नेशनल हाईवे पर जाम लगा दिया था.

पढ़ें: कांकेर: आदिवासी समाज ने रथ से मिट्टी निकाली, बिना रुके गुजरी रैली, खत्म हुआ चक्काजाम

क्या है पेसा कानून ?

पेसा अधिनियम के अंतर्गत, (अनुच्छेद 4 (ख)), आमतौर पर एक बस्ती या बस्तियों के समूह या एक पुरवा या पुरवों के समूह को मिलाकर एक गांव का गठन होता है, जिसमें एक समुदाय के लोग रहते हैं और अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार अपने मामलों का प्रबंधन करते हैं.

पेसा कानून समुदाय की प्रथागत, धार्मिक एवं परंपरागत रीतियों के संरक्षण पर जोर देता है. इसमें विवादों को प्रथागत ढंग से सुलझाना और सामुदायिक संसाधनों का प्रबंध करना भी शामिल है.

भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन में देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी, लेकिन यह महसूस किया गया कि इसके प्रावधानों में अनुसूचित क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया है. इस कमी को पूरा करने के लिए संविधान के भाग 9 के अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के लिए पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम 1996 बनाया गया. जिसे 24 दिसम्बर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया. यह कानून पेसा के नाम से इसलिए जाना जाता है, क्योंकि अंग्रेजी में इस कानून का नाम प्रोविजन आफ पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट 1996 है.

कांकेर: थाने में आदिवासियों के खिलाफ दर्ज मामले को लेकर बस्तर के जिला मुख्यालयों और प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर बुधवार को आदिवासियों ने जेल भरो आंदोलन की शुरुआत की है. आदिवासियों के प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस अलर्ट है. विरोध दर्ज करा रहे आदिवासी समाज के प्रमुखों पर कांकेर थाने में मामला दर्ज किया गया था. सर्व आदिवासी समाज इसका विरोध कर रहा है. आदिवासी आज पूरे बस्तर संभाग में जेल भरो आंदोलन हो रहा है. जिले में रैली गोंडवाना भवन से निकलकर कलेक्ट्रेट की तरफ बढ़ रही है. दंतेवाड़ा में भी 25 लोगों ने आदिवासी समाज के नेता मेनका डोबरा गिरफ्तारी देंगे.

पुलिस और ग्रामीणों के बीच हुई हुई थी झड़प

छत्तीसगढ़ सरकार के दो साल पूरा होने का जश्न राम वन गमन रूट पर पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली निकालकर मनाया था. उत्तर से दक्षिण छत्तीसगढ़ तक पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली निकाली गई थी. 14 दिसंबर को निकाली गई इस रैली का बस्तर में बड़ी संख्या में आदिवासियों ने विरोध किया था. आदिवासी राम वन गमन पथ पर्यटन रथ पहुंचने से पहले ही NH 30 पर इकट्ठे हो गए और जाम लगा दिया था. कई घंटों तक आदिवासी सड़क पर डटे रहे और जिले की मिट्टी ले जाने का विरोध करने लगे. इस दौरान पुलिस के पहुंचने के बाद स्थिति और तनावपूर्ण हो गई थी. ग्रामीणों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई थी.

पढ़ें: कांकेर: आदिवासी समाज ने रथ से मिट्टी निकाली, बिना रुके गुजरी रैली, खत्म हुआ चक्काजाम

पेसा कानून का हो रहा उल्लंघन

काफी हंगामे के बाद पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों से आदिवासी समाज के पदाधिकारियों की बात हुई, जिसके बाद राम वन गमन पथ पर्यटक रथ को शहर में बिना रुके निकाला गया था. आदिवासी समाज के पदाधिकारियों का कहना था कि उनके क्षेत्र में पेसा कानून का उल्लंघन हो रहा है. उनका कहना है कि मिट्टी उनकी मां है. उन्होंने कहा कि उनकी मर्जी के बिना कोई उनके यहां की मिट्टी कैसे ले जा सकता है ?

इन जिलों में हुआ था विरोध-प्रदर्शन

  • कोंडागांव में भी सर्व आदिवासी समाज के लोगों ने यात्रा का विरोध किया था. इसे लेकर सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग के जिलाध्यक्ष जगत मरकाम ने कहा कि राम वन गमन पथ के लिए चिन्हांकित जगहों से मिट्टी ले जाया जा रहा है. ये हमारे आदिवासी परंपराओं और व्यवस्थाओं के खिलाफ है.
  • सुकमा में भी ग्रामीणों ने यात्रा का विरोध किया था. रथ यात्रा शुभारंभ होने से पहले सर्व आदिवासी समाज मातागुड़ी के प्रांगण में डट गए थे. जिसके बाद जिला प्रशासन ने सुकमा जिले के रामाराम से बगैर मिट्टी लिए रथ को रवाना कर दिया गया.
  • कांकेर में बड़ी संख्या में आदिवासियों ने सड़क जाम कर रथ यात्रा का विरोध किया था. कांकेर से 10 किमी पहले आदिवासी समाज ने विरोध जताते हुए नेशनल हाईवे पर जाम लगा दिया था.

पढ़ें: कांकेर: आदिवासी समाज ने रथ से मिट्टी निकाली, बिना रुके गुजरी रैली, खत्म हुआ चक्काजाम

क्या है पेसा कानून ?

पेसा अधिनियम के अंतर्गत, (अनुच्छेद 4 (ख)), आमतौर पर एक बस्ती या बस्तियों के समूह या एक पुरवा या पुरवों के समूह को मिलाकर एक गांव का गठन होता है, जिसमें एक समुदाय के लोग रहते हैं और अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार अपने मामलों का प्रबंधन करते हैं.

पेसा कानून समुदाय की प्रथागत, धार्मिक एवं परंपरागत रीतियों के संरक्षण पर जोर देता है. इसमें विवादों को प्रथागत ढंग से सुलझाना और सामुदायिक संसाधनों का प्रबंध करना भी शामिल है.

भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन में देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी, लेकिन यह महसूस किया गया कि इसके प्रावधानों में अनुसूचित क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया है. इस कमी को पूरा करने के लिए संविधान के भाग 9 के अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के लिए पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम 1996 बनाया गया. जिसे 24 दिसम्बर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया. यह कानून पेसा के नाम से इसलिए जाना जाता है, क्योंकि अंग्रेजी में इस कानून का नाम प्रोविजन आफ पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट 1996 है.

Last Updated : Dec 30, 2020, 3:51 PM IST
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