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कांग्रेस और भाजपा दोनों ने नए चेहरों पर लगाया दांव , किसका पक्ष होगा मजबूत - मनोज मंडावी

कांग्रेस ने जहां वर्तमान जिला पंचायत सदस्य बीरेश ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं भाजपा ने वर्तमान में लोकसेवा आयोग के सदस्य और लगभग 25 साल तक शिक्षक रह चुके मोहन मंडावी को अपना उम्मीदवार बनाया है.

वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा
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Published : Mar 23, 2019, 11:37 AM IST

Updated : Mar 23, 2019, 12:36 PM IST

कांकेर: लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने कांकेर सीट पर अपने प्रत्याशियों का एलान कर दिया है. इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों पर दांव लगाया है. कांग्रेस ने जहां वर्तमान जिला पंचायत सदस्य बीरेश ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है तो वहीं भाजपा ने वर्तमान में लोकसेवा आयोग के सदस्य और लगभग 25 साल तक शिक्षक रह चुके मोहन मंडावी को अपना उम्मीदवार बनाया है.

वीडियो.


अब देखना ये होगा कि दोनों नए चेहरों पर आखिर किस चेहरे को कांकेर लोकसभा क्षेत्र की जनता चुनती है. दोनों उम्मीदवारों में किसका पक्ष कैसे मजबूत बैठता है ये बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा.


ऐसा है बीरेश ठाकुर का राजनीतिक करियर

  • कांग्रेस के प्रत्याशी बीरेश ठाकुर अपने छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े हुए हैं. दो बार भानुप्रतापपुर के जनपद अध्यक्ष रह चुके हैं.
  • बीरेश के दादा और पिता भी विधायक रह चुके हैं. बीरेश की ग्रामीण क्षेत्र में पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है.
  • बीरेश मुख्यरूप से भानुप्रतापपुर क्षेत्र के रहने वाले हैं.
  • हाल ही में विधानसभा चुनाव में हुई कांग्रेस की जबरदस्त जीत का लाभ उन्हें मिल सकता है. बीरेश की शहरी इलाकों में पकड़ कमजोर है जोकि उनके लिए वोटों की संख्या पर प्रभाव डाल सकती है.

ऐसा है मोहन मंडावी का सफर

  • कांकेर के गोविंदपुर के रहने वाले मोहन मंडावी ने 25 साल से अधिक समय शिक्षक के रूप में बिताया है. मोहन मानस गान मंडली से लंबे समय से जुड़े हुए हैं और इस वजह से भी गांव-गांव में इनकी अच्छी पकड़ है.
  • मोहन के खिलाफ यदि कुछ जाता नजर आता है तो वो आदिवासी समाज के बीच उनकी कमजोर छवि है.
  • बता दें कि आदिवासी समाज की एक बैठक में पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ उनकी तीखी बहस हो गई थी, जिसके बाद से मोहन का आदिवासी समाज के कार्यक्रमों में जाना कम होता है. इससे समाज के बीच में उनकी छवि थोड़ी बिगड़ी है.
  • मोहन मंडावी का राजनीतिक सफर मात्र 5 साल का ही है, जबकि बीरेश लगभग 30 सालों से राजनीति से जुड़े हुए हैं.

कांग्रेस दिख रही एकजुट, भाजपा में सामने आई कलह
टिकट बंटवारे के बाद जहां हमेशा गुटबाजी के लिए बदनाम रही कांग्रेस पार्टी में एकजुटता देखी जा रही है, तो वहीं खुद को अनुशासित पार्टी बताने वाली भाजपा में कलह खुलकर सामने आ गई है. पूर्व विधायक सुमित्रा मारकोले ने न केवल नामांकन फॉर्म खरीदा है, बल्कि मीडिया के सामने ही फोन पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी को खरीखोटी भी सुना दी है. ये सारी बातें भाजपा के लिए दिक्कतें खड़ी कर सकती हैं.


क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार
इन तमाम मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकार बस्तर बन्धु के संपादक सुशील शर्मा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है. उन्होंने कहा कि दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों को टिकट दिया है. ये बात ज्यादा मायने नहीं रखती क्योंकि लोकसभा क्षेत्र का दायरा काफी बड़ा होता है और ऐसे में प्रत्याशी से ज्यादा पार्टी का चिन्ह मायने रखता है.


सुशील शर्मा ने कहा कि प्रत्याशी के चेहरे को फिर भी भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन वर्तमान में समय काफी कम है ऐसे में चेहरे से ज्यादा पार्टी का सिंबल काम करेगा. सुशील शर्मा ने कहा कि छतीसगढ़ में सिटिंग सांसदों के टिकट बिना कारण बताए काटे जाना भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि यदि विक्रम उसेंडी नाकारा थे तो उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष क्यों बनाया गया और उनका टिकट काट दिया गया. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सिर्फ आदिवासी समाज को खुश करने के लिए भाजपा ने विक्रम उसेंडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.


बीजेपी और कांग्रेस को इनसे हो सकता है फायदा
केंद्र की मोदी सरकार के पांच साल के काम और विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार के द्वारा वादे पूरे किए जाने के असर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि दोनों ही चीजें अपनी जगह मायने रखती हैं. हाल ही में पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक कर भाजपा ने उसकी मार्केटिंग कर ली, लोगों में देशभक्ति की भावना एकाएक जाग उठी. इसका लाभ उन्हें जरूर मिलेगा. भूपेश सरकार के द्वारा कर्ज माफी कर किसानों को बड़ा लाभ दिया गया. इसका असर कांग्रेस के पक्ष में भी जरूर नजर आएगा.


कांग्रेस के पक्ष को बताया मजबूत
भाजपा-कांग्रेस के बीच पत्रकार ने कांग्रेस का पक्ष मजबूत बताया है. इसका कारण बीरेश ठाकुर का काफी समय से राजनीति में सक्रिय होना, साथ ही उनके दादा, पिता का भी लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय होना बताया जा रहा है.


18 अप्रैल को होगी वोटिंग
कांकेर लोकसभा सीट पर 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है, जिसके बाद नतीजे 23 मई को आएंगे. अब उसके बाद ही पता चल सकेगा कि जनता ने दोनों में किस नए चेहरे को चुना और मोदी और भूपेश में किसका फेक्टर काम कर गया.

कांकेर: लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने कांकेर सीट पर अपने प्रत्याशियों का एलान कर दिया है. इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों पर दांव लगाया है. कांग्रेस ने जहां वर्तमान जिला पंचायत सदस्य बीरेश ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है तो वहीं भाजपा ने वर्तमान में लोकसेवा आयोग के सदस्य और लगभग 25 साल तक शिक्षक रह चुके मोहन मंडावी को अपना उम्मीदवार बनाया है.

वीडियो.


अब देखना ये होगा कि दोनों नए चेहरों पर आखिर किस चेहरे को कांकेर लोकसभा क्षेत्र की जनता चुनती है. दोनों उम्मीदवारों में किसका पक्ष कैसे मजबूत बैठता है ये बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा.


ऐसा है बीरेश ठाकुर का राजनीतिक करियर

  • कांग्रेस के प्रत्याशी बीरेश ठाकुर अपने छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े हुए हैं. दो बार भानुप्रतापपुर के जनपद अध्यक्ष रह चुके हैं.
  • बीरेश के दादा और पिता भी विधायक रह चुके हैं. बीरेश की ग्रामीण क्षेत्र में पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है.
  • बीरेश मुख्यरूप से भानुप्रतापपुर क्षेत्र के रहने वाले हैं.
  • हाल ही में विधानसभा चुनाव में हुई कांग्रेस की जबरदस्त जीत का लाभ उन्हें मिल सकता है. बीरेश की शहरी इलाकों में पकड़ कमजोर है जोकि उनके लिए वोटों की संख्या पर प्रभाव डाल सकती है.

ऐसा है मोहन मंडावी का सफर

  • कांकेर के गोविंदपुर के रहने वाले मोहन मंडावी ने 25 साल से अधिक समय शिक्षक के रूप में बिताया है. मोहन मानस गान मंडली से लंबे समय से जुड़े हुए हैं और इस वजह से भी गांव-गांव में इनकी अच्छी पकड़ है.
  • मोहन के खिलाफ यदि कुछ जाता नजर आता है तो वो आदिवासी समाज के बीच उनकी कमजोर छवि है.
  • बता दें कि आदिवासी समाज की एक बैठक में पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ उनकी तीखी बहस हो गई थी, जिसके बाद से मोहन का आदिवासी समाज के कार्यक्रमों में जाना कम होता है. इससे समाज के बीच में उनकी छवि थोड़ी बिगड़ी है.
  • मोहन मंडावी का राजनीतिक सफर मात्र 5 साल का ही है, जबकि बीरेश लगभग 30 सालों से राजनीति से जुड़े हुए हैं.

कांग्रेस दिख रही एकजुट, भाजपा में सामने आई कलह
टिकट बंटवारे के बाद जहां हमेशा गुटबाजी के लिए बदनाम रही कांग्रेस पार्टी में एकजुटता देखी जा रही है, तो वहीं खुद को अनुशासित पार्टी बताने वाली भाजपा में कलह खुलकर सामने आ गई है. पूर्व विधायक सुमित्रा मारकोले ने न केवल नामांकन फॉर्म खरीदा है, बल्कि मीडिया के सामने ही फोन पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी को खरीखोटी भी सुना दी है. ये सारी बातें भाजपा के लिए दिक्कतें खड़ी कर सकती हैं.


क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार
इन तमाम मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकार बस्तर बन्धु के संपादक सुशील शर्मा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है. उन्होंने कहा कि दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों को टिकट दिया है. ये बात ज्यादा मायने नहीं रखती क्योंकि लोकसभा क्षेत्र का दायरा काफी बड़ा होता है और ऐसे में प्रत्याशी से ज्यादा पार्टी का चिन्ह मायने रखता है.


सुशील शर्मा ने कहा कि प्रत्याशी के चेहरे को फिर भी भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन वर्तमान में समय काफी कम है ऐसे में चेहरे से ज्यादा पार्टी का सिंबल काम करेगा. सुशील शर्मा ने कहा कि छतीसगढ़ में सिटिंग सांसदों के टिकट बिना कारण बताए काटे जाना भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि यदि विक्रम उसेंडी नाकारा थे तो उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष क्यों बनाया गया और उनका टिकट काट दिया गया. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सिर्फ आदिवासी समाज को खुश करने के लिए भाजपा ने विक्रम उसेंडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.


बीजेपी और कांग्रेस को इनसे हो सकता है फायदा
केंद्र की मोदी सरकार के पांच साल के काम और विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार के द्वारा वादे पूरे किए जाने के असर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि दोनों ही चीजें अपनी जगह मायने रखती हैं. हाल ही में पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक कर भाजपा ने उसकी मार्केटिंग कर ली, लोगों में देशभक्ति की भावना एकाएक जाग उठी. इसका लाभ उन्हें जरूर मिलेगा. भूपेश सरकार के द्वारा कर्ज माफी कर किसानों को बड़ा लाभ दिया गया. इसका असर कांग्रेस के पक्ष में भी जरूर नजर आएगा.


कांग्रेस के पक्ष को बताया मजबूत
भाजपा-कांग्रेस के बीच पत्रकार ने कांग्रेस का पक्ष मजबूत बताया है. इसका कारण बीरेश ठाकुर का काफी समय से राजनीति में सक्रिय होना, साथ ही उनके दादा, पिता का भी लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय होना बताया जा रहा है.


18 अप्रैल को होगी वोटिंग
कांकेर लोकसभा सीट पर 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है, जिसके बाद नतीजे 23 मई को आएंगे. अब उसके बाद ही पता चल सकेगा कि जनता ने दोनों में किस नए चेहरे को चुना और मोदी और भूपेश में किसका फेक्टर काम कर गया.

Intro:कांकेर - लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने कांकेर सीट पर अपने प्रत्याशियों का एलान कर दिया है , इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों पर दांव लगाया है , कांग्रेस ने जहा वर्तमान जिला पंचायत सदस्य बीरेश ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है तो वही भाजपा ने वर्तमान में लोकसेवा आयोग के सदस्य और लगभग 25 साल तक शिक्षक रह चुके मोहन मंडावी को अपना उम्मीदवार बनाया है । अब देखना यह होगा कि दोनों नए चेहरों पर आखिर किस चेहरे को कांकेर लोकसभा क्षेत्र की जनता चुनती है , इसके पहले जानते है दोनों उम्मीदवारों के बारे में और किसका पक्ष किस कारण से मजबूत बैठता है। और दोनों के लिए कमजोर कड़ी क्या साबित हो सकती है ।


Body:बात करे कांग्रेस के प्रत्याशी बीरेश ठाकुर की तो बीरेश अपने छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े हुए है , दो बार भानुप्रतापपुर के जनपद अध्यक्ष रह चुके है बीरेश के दादा और पिता भी विधायक रह चुके है। वही बीरेश की ग्रामीण क्षेत्र में पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है , बीरेश मुख्यरूप से भानुप्रतापपुर क्षेत्र के रहने वाले है । वही हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त जीत का लाभ उन्हें मिल सकता है । बीरेश के खिलाफ यह बात जा सकती है कि शहरी इलाकों में उनकी पकड़ कमजोर है ।
वही बात करे मोहन मंडावी की तो कांकेर के गोविंदपुर के रहने वाले मोहन ने 25 साल से अधिक समय शिक्षक के रूप में बिताया है , मोहन मानस गान मंडली से लंबे समय से जुड़े हुए है और इस वजह से भी गांव गांव में इनकी अच्छी पकड़ है ।मोहन के खिलाफ यदि कुछ जाता नज़र आता है तो वो आदिवासी समाज के बीच उनकी कमजोर छवि है , बता दे कि आदिवासी समाज की एक बैठक में पूर्व सासंद सोहन पोटाई के साथ उनकी तीखी बहस हो गई थी जिसके बाद से मोहन का आदिवासी समाज के कार्यक्रमो में जाना कम होता है जिससे समाज के बीच मे उनकी छवि थोड़ी बिगड़ी है । वही मोहन मंडावी की राजनीतिक सफर भी मात्र 5 साल का ही है , जबकि बीरेश लगभग 30 सालो से राजनीति से जुड़े हुए है।

कांग्रेस दिख रही एकजुट ,भाजपा में सामने आई कलह
टिकट बंटवारे के बाद जहा हमेशा गुटबाज़ी के लिए बदनाम रही कांग्रेस पार्टी में एकजुटता देखी जा रही है तो वही खुद को अनुशासित पार्टी बताने वाली भाजपा में कलह खुलकर सामने आ गई है , पूर्व विधायक सुमित्रा मारकोले ना केवल नामांकन फार्म खरीदा है बल्कि मीडिया के सामने ही फोन पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी को ख़रीकोटी भी सुना दी है । यह सब बातें भी भाजपा के लिए दिक्कते खड़ी कर सकती है।

इन तमाम मुद्दों पर हमने वरिष्ठ पत्रकार बस्तर बन्धु के संपादक सुशील शर्मा से भी राय ली , सुशील शर्मा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों को टिकट दिया है यह बात ज्यादा मायने नही रखती क्योकि लोकसभा क्षेत्र का दायरा काफी बड़ा होता है और ऐसे में प्रत्याशी से ज्यादा पार्टी का चिन्ह मायने रखता है उन्होने कहा कि प्रत्याशी के चेहरे को फिर भी भुला नही जा सकता , लेकिन वर्तमान में समय काफी कम है ऐसे में चेहरे से ज्यादा पार्टी का सिंबल काम करेगा । सुशील शर्मा ने कहा कि छतीसगढ़ में सिटिंग सासंदो के टिकट बिना कारण बताए काटे जाना भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है ,उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि यदि विक्रम उसेंडी नाकारा थे तो उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष क्यों बनाया गया ,और उनका टिकट काट दिया गया , उन्होने सवाल उठाया कि क्या सिर्फ आदिवासी समाज को खुश करने के लिए भाजपा ने विक्रम उसेंडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है ?
केंद्र की मोदी सरकार के पांच साल के काम और विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार के द्वारा वादे पूरे किए जाने के असर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि दोनों ही चीज़े अपनी जगह मायने रखती है , हालही में पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक कर भाजपा ने उसकी मार्केटिंग कर ली लोगो मे देशभक्ति की भावना एकाएक जाग उठी ,इसका लाभ उन्हें जरूर मिलेगा साथ ही भूपेश सरकार के द्वारा कर्ज माफी कर किसानो को बड़ा लाभ दिया इसका असर कांग्रेस के पक्ष में भी जरूर नज़र आएगा । भाजपा - कांग्रेस में पक्ष किसका मजबूत नज़र आता है इस सवाल पर उन्होंने कांग्रेस का नाम लिया और कहा कि इसका कारण बीरेश ठाकुर का काफी समय से राजनीति में सक्रिय होना साथ ही उनके दादा , पिता का भी लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय होने को बताया ।


Conclusion:कांकेर लोकसभा सीट पर 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है , जिसके बाद नतीजे 23 मई को आएंगे अब उसके बाद ही पता चल सकेगा कि जनता ने दोनों में किस नए चेहरे को चुना और मोदी और भूपेश में किसका फेक्टर काम कर गया।

बाइट - सुशील शर्मा , वरिष्ठ पत्रकार , संपादक बस्तर बन्धु
Last Updated : Mar 23, 2019, 12:36 PM IST
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