कवर्धा : आज हम एक ऐसे गांव से आपको रू-ब-रू कराने जा रहे हैं, जो सरकारी विकास के दावों पर तमाचा है. महरुम बैगा जनजातियों का ऐसा गांव, जिन्हें पीने का पानी तक नहीं नसीब है. ऐसा गांव जहां पगडंडियों के सहारे लोग सड़क तक पहुंचते हैं. अस्पताल तो क्या एंबुलेंस भी यहां नहीं पहुंच सकती. ईटीवी ने इस गांव तक पहुंचकर इस जनजाति से उनकी समस्या साझा करने की कोशिश की है.
हम बात कर रहे हैं पंडरिया ब्लॉक के सुदूर वनांचल ग्राम पंचायत महिडबरा के आश्रित गांव खैरा की. यहां बैगा जनजाति के करीब 25 परिवार निवास करते हैं. वैसे तो इन्हें देश के राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. गांव में न तो पाने के पानी की व्यवस्था है और न तो गांव तक पहुंचने के लिए सड़क. अगर गांव का कोई सदस्य बीमार पड़ जाए, तो उसे ग्रामीण खाट में लेटाकर कई किलोमीटर पैदल लेकर सड़क तक पहुंचते हैं.
कच्ची झिरिया का पानी बना अमृत
हालात इतनी खराब है कि ग्रामीण करीब 2 किलोमीटर पैदल चलकर एक नाले तक पहुंचते हैं. यहां उन्होंने एक कच्ची झिरिया बना रखी है, जिसका पानी इनके लिए अब अमृत तुल्य है. ग्रामीण यहीं से पानी भरते हैं. वैसे तो इस झिरिया का इस्तेमाल पशुओं के साथ ही जंगलीजानवर भी करते हैं, लेकिन ग्रामीणों के लिए पानी का एकमात्र सहारा झिरिया ही है.
अधिकारियों का रटा-रटाया जवाब
गांव में न तो स्कूल हैं और न ही स्कूल पहुंचने के लिए कोई सुविधा. मामले में अधिकारी रटा-रटाया जवाब देते हैं.