बिलासपुर: तखतपुर के ग्रामीण अंचलों में बिल्व का फल, जिसे बेल भी कहते हैं, गर्मी आते ही पेड़ों पर पक कर तैयार है. ग्रामीण अंचलों के साथ-साथ शहरवासी भी इसका आनंद लेते हैं, जिससे गर्मी के दिनों में शरीर में पानी की कमी न हो. साथ ही इस मौसम में फलों का जूस पीना भी काफी फायदेमंद साबित होता है. बेल गर्मी का मौसमी फल और ठंडी तासीर वाला फल है, जिसमें अनेक प्रकार के विटामिन होते हैं.
बता दें कि बेल का अंग्रेजी नाम विल्व है. छत्तीसगढ़ में इसे बेल कहते हैं. बेल का फल और पत्तों का उपयोग किया जाता है. बेल के पत्तों का उपयोग धार्मिक रूप में शिवलिंग पर चढाने का रिवाज है. इसके फल का उपयोग औषधियों के रूप में किया जाता है. पकने के बाद इसका स्वाद मीठा होता है. इस फल का उपयोग कई प्रकार से किया जाता है.
बेल से कई इमारतों का निर्माण किया गया
बेल को पकने के बाद जूस, शरबत के लिए इसके भीतर भाग को पानी में घोलकर उपयोग करते हैं. कभी इसे आग में भूनकर खाया जाता है, तो कभी इसे उबाल कर औषधी बनाते हैं. साथ ही गोंद ( चिपकाने) का काम में उपयोग किया जाता है. ब्रिटिश शासन में इस बेल से कई इमारतों का भी निर्माण किया गया है. पाचन तंत्र सुचारू रूप से चलाने में सहयोग प्रदान करता है.
दस्त और कब्ज का रामबाण इलाज
ग्रामीण संतोष का कहना है कि यह पाचन तन्त्र को ठीक रखने का सस्ता और आसानी से मिलने वाला प्रकृति फल है. शहरों में लोग इसका जूस और शरबत बनाकर बेचते हैं. ग्रामीण इलाकों में यह सभी जगहों में आसानी से मिलता है. गर्मी के मौसम में अक्सर पाचन तंत्र सुचारू रूप से काम नहीं करते हैं, जिससे दस्त, कब्ज, अनपचन जैसे तमाम बीमारियों का राम बाण इलाज है. बेल, पीड़ा निवारक, श्री फल, सदाफल जैसे नाम से अलग-अलग देशों, राज्यों और ग्रामीण इलाकों में मिलता है.
वैज्ञानिक वर्गीकरण-
यह एक बीज पत्री श्रेणी में आता है, सापीन्दालेस इनका गण है. रूतासेऐ इसका कुल है, गणजाति क्लौसेनेऐ है.