बीजापुर: धरमापुर के रहने वाले देवेंद्र लोगों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं. घर से अलग किए जाने के बाद भी इस शख्स ने हार नहीं मानी. बल्कि चुनौतियों का सामना कर खुद को मजबूत बनाया. लॉकडाउन के दौरान जब हर वर्ग आर्थिक तंगी से गुजर रहा था तब बोल और सुन न पाने वाले देवेंद्र की आय दुगुनी हो गई थी और आज वे पूरी तरह आत्मनिर्भर होकर अपनी जिंदगी जी रहा है.
देवेंद्र बीजापुर जिले के धुर नक्सल प्रभावित गांव धरमापुर के रहने वाले हैं. 2 साल की उम्र में देवेंद्र को चिकनपॉक्स हुआ था. जिसके बाद देवेंद्र की सुनने और बोलने की शक्ति चली गई. करीब 6 साल की उम्र में देवेंद्र की मां और भाई ने उसे अकेले ही छोड़ दिया था. इसके बाद भी देवेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी. 9वीं तक की पढ़ाई देवेंद्र ने अपने मामा के घर पर रह कर पूरी की. इसके बाद देवेंद्र बाल काटने का काम सीखा और अकेले ही किराए के कमरे में रहकर पढ़ाई के साथ खुद का खर्च उठाते हुए बासागुड़ा के सरकारी स्कूल से ही 12वीं पास किया.
SPECIAL: एजुकेशन सेक्टर पर लॉकडाउन की मार, एक सेंटर बंद होने से 250 लोग हुए बेरोजगार
लॉकडाउन में आय हुई दोगुनी
इसके बाद देवेंद्र बासागुड़ा से बीजापुर आए और यहां अलग-अलग सैलून में नौकरी करने लगे. बोल और सुन नहीं पाने के बावजूद देवेंद्र के हुनर और उसकी सेवा से उसके ग्राहक काफी खुश रहते हैं. देवेंद्र जिस सैलून में काम करते हैं, उसके संचालक हरीश बताते हैं कि देवेंद्र की आय महीने में 15 से 20 हजार रूपए है. लॉकडाउन के दौरान जब हर वर्ग आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था, तब देवेन्द्र की आय दोगुनी हो गई थी. जब लॉकडाउन में सभी सैलून बंद हो गए थे. उस वक्त लोग बाल कटवाने के लिए देवेंद्र को अपने घर बुलाने लग गए थे.