जगदलपुर: बस्तर के सबसे कीमती वनोपज में शुमार इमली को राज्य शासन ने 'एक जिला, एक उत्पाद योजना' में शामिल किया गया है. इससे न सिर्फ इमली की देश-विदेश में ब्रांडिंग होगी. बल्कि ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी. शासन की मंशा के अनुसार बस्तर जिले में इसके उत्पादन और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के साथ ही इसकी मार्केटिंग के लिए बेहतर माहौल तैयार किया जाएगा.
बस्तर में इमली ग्रामीणों के आय का मुख्य स्रोत है. इसलिए बस्तर में अब ज्यादा से ज्यादा इमली के उत्पादन करने के साथ ही ग्रामीणों को रोजगार दिलाने का प्रयास केंद्र सरकार की संस्था ट्रायफेड और राज्य सरकार कर रही है. इसके लिए ज्यादा से ज्यादा प्रसंस्करण केंद्र भी खोले जाएंगे. यहां इमली से कैंडी और सॉस बनाने के साथ ही फूड पार्क के माध्यम से बाहर निर्यात किया जा सकेगा. इसके लिए जिला प्रशासन और वन विभाग ने तैयारी शुरू कर दी है.
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अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 22 साल पहले 'इमली की छांव में गांव का पैसा गांव में' के नारे के साथ बस्तर में अभियान चलाया गया. इमली आंदोलन की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी, तब वन-धन योजना के माध्यम से इमली की खरीदी बिक्री से यहां के युवाओं को जोड़कर इसे बस्तर के ग्रामीण क्षेत्र में सबसे बड़े व्यापार के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया गया था. हालांकि यग आधी अधूरी तैयारी के साथ चलाया गया. इमली आंदोलन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका.
केंद्रीय जनजाति मंत्रालय के अधीन ट्रायफेड के वर्तमान प्रबंध निदेशक प्रवीण कृष्ण इमली आंदोलन के समय बस्तर के जिला कलेक्टर थे. अब 22 वर्ष बाद एक बार फिर जिला प्रशासन इमली को लेकर सक्रिय हो गया है, लेकिन इस बार इमली आंदोलन चलाने की पहले जैसी कोई योजना नहीं है. बल्कि इमली की ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को रोजगार दिलाना है. इसलिए राज्य शासन की एक जिला एक उत्पाद योजना के अंतर्गत जिला प्रशासन ने इमली के उत्पादन और प्रसंस्करण को चिह्नाकित किया है.
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शासन के अनुसार बस्तर जिले में इसके उत्पादन और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के साथ ही इसकी मार्केटिंग के लिए बेहतर माहौल तैयार किया जाएगा और अब जिला पंचायत और वन विभाग को इमली की मार्केटिंग के संबंध में निर्देश भी जारी किया गया है.
बस्तर में अच्छी गुणवत्ता की इमली पाई जाती है. आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी परिवारों के घरों और खेतों में औसतन 2 से 3 इमली का पेड़ है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले के ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था में इमली का बड़ा योगदान है.
इमली का उत्पादन बढ़ाकर इसके प्रसंस्करण और मार्केटिंग के लिए उपयुक्त बाजार दिया जाता है, तो जिला उत्पाद के रूप में बस्तर की पहचान तो बदलेगी. साथ ही आदिवासी ग्रामीणो की अर्थव्यवस्था में और ज्यादा मजबूती भी आएगी. फिलहाल जिले में सालाना 2 लाख क्विंटल इमली का उत्पाद होता है, जिसका व्यापार 1 हजार करोड़ के लगभग का होता है. अब इसे और बढ़ाने की तैयारी जिला प्रशासन और राज्य शासन कर रही है.
बस्तर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल ने कहा कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राज्य शासन बस्तर के वनोपज में विशेष ध्यान दे रही है. राज्य शासन की ओर से वनोपज के समर्थन मूल्य में वृद्धि करने के साथ ही ग्रामीणों को इसके ज्यादा से ज्यादा संग्रहण के लिए सुविधाएं भी दी जा रही हैं.
लखेश्वर बघेल ने कहा कि बस्तर में इमली बहुत मात्रा में होती है. ग्रामीणों के आजीविका का यह मुख्य स्त्रोत है, ऐसे में राज्य शासन की एक जिला एक उत्पाद योजना में बस्तर की इमली को चिह्नाकित किया गया है. अब बस्तर में ज्यादा से ज्यादा इमली का उत्पादन करने के साथ ही प्रसंस्करण केंद्र भी खोले जाएंगे, ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को रोजगार मिल सके.