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ग्राउंड रिपोर्ट: तमिलनाडु में 'फेंगल' की तबाही, पानी में डूब गया था पूरा गांव, 100 से अधिक घर नष्ट

तमिलनाडु के विलुप्पुरम में चक्रवात 'फेंगल' के कारण एक गांव तबाह हो गया. भारी बारिश और बाढ़ से 100 से अधिक घर नष्ट हो गए.

Cyclone Fengal aftermath Tragic Tale of Arakandanallur Village of Villupuram district in Tamil nadu
तमिलनाडु के विलुप्पुरम में चक्रवात 'फेंगल' के कारण एक गांव तबाह (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 8 hours ago

विलुप्पुरम: तमिलनाडु का विलुप्पुरम जिला चक्रवात फेंगल से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. चक्रवाती तूफान और उसके कारण हुई भारी बारिश से अरकंदनल्लूर के निवासियों का सबकुछ बर्बाद हो गया. नदी में बाढ़ के बाद रिहायशी इलाकों में पानी भर गया, जिससे क्षेत्र के 100 से अधिक घर डूब गए. बाढ़ से प्रभावित लोगों को अब तक शासन-प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है.

प्रशासन की उपेक्षा से नाराज स्थानीय लोगों ने बुधवार को सड़क जाम कर प्रदर्शन किया. उन्होंने आरोप लगाया कि 5 दिन बीत जाने के बाद भी कोई अधिकारी स्थिति का निरीक्षण करने नहीं आया. बाद में विलुप्पुरम राजस्व मंडल अधिकारी मौके पर पहुंचकर ग्रामीणों से मुलाकात की और उन्हें नुकसान का आकलन करने का आश्वासन दिया.

ग्राउंड पर स्थिति देखने के लिए ईटीवी भारत की टीम भी बुरी तरह प्रभावित गांव पहुंची और देखा कि पानी के बहाव के कारण इमारतें नष्ट हो गईं. घरों में कपड़े, फर्नीचर और खाना पकाने के बर्तन सब पानी में डूबे थे. यहां तक कि बाढ़ में बह गए मवेशियों के शव भी बरामद नहीं हो सके.

अरकंदनल्लूर की रहने वाली गोविंदम्मा की चार गाय बाढ़ में बह गईं. गोविंदम्मा ने कहा, "हमारी आजीविका इन मवेशियों पर निर्भर थी. हमें उम्मीद नहीं थी कि बाढ़ इतनी भयानक बाढ़ आएगी. हमने शेड में बंधी गाय को छुड़ाने की कोशिश की. लेकिन पानी का बहाव बहुत तेज था. हम गायों को नहीं बचा पाए. हम मृत गायों के शव भी नहीं निकाल पाए."

पूरे गांव के लोगों में पीड़ा और डर व्याप्त है. गांव की एक बच्ची तनुश्री ने 1 दिसंबर को आई बाढ़ के बारे में बात करते हुए कहा कि वह सरकारी स्कूल में चौथी क्लास में पढ़ती है. बाढ़ में उसकी सारी किताबें बह गईं. तनुश्री ने कहा कि वे दो दिन तक बिना भोजन और पानी के रहे.

इसी इलाके में रहने वाली राजम्मा कहती हैं, "हमने तीन महीने पहले ही नया घर बनाया और उसमें रहने लगे. घर का सारा सामान बाढ़ में बह गया." उन्होंने कहा कि 1 दिसंबर को, जिस दिन बाढ़ आई, रात करीब 12 बजे हमारे घर में पानी घुसने लगा. हम घर की छत पर चढ़ गए और मदद के लिए चिल्लाने लगे. हमारी तरह आस-पड़ोस के लोग भी बारिश में भीगते हुए अपने घरों की छतों पर खड़े होकर जान बचा रहे थे."

राजम्मा अभी भी उस सदमे से उबर नहीं पाई हैं. उन्होंने दुख जताया कि सरकार अवैध शराब से मरने वालों को 10 लाख रुपये देने को तैयार है, लेकिन बाढ़ प्रभावित परिवारों को सिर्फ 2,000 रुपये देने की घोषणा की है.

इस क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले ज्यादातर लोगों के पास गैस सिलेंडर, खाना पकाने के बर्तन और कपड़े समेत कुछ भी नहीं बचा है. उनका कहना है कि बाढ़ में सब कुछ बह गया है और अगर सरकार कोई उन्हें चावल और किराने का सामान दे भी दे तो वे खाना नहीं बना पा रहे हैं और न ही खा पा रहे हैं.

गांव निवासी रामचंद्रन और गुरुराजन ने कहा, "1972 में यहां आई बाढ़ मौजूदा बाढ़ से भी ज्यादा भयानक थी. लेकिन इस बार पानी बहुत ज्यादा छोड़ा गया, इसलिए पानी घरों में घुस गया. 1972 में इस इलाके में ज्यादा घर नहीं थे, इसलिए पानी जल्दी निकल गया."

अरकंडनल्लूर से 40 किलोमीटर दूर उसी नदी के किनारे बसे इरुवेलपट्टू गांव का दौरा करने गए वन मंत्री पोनमुडी और जिला कलेक्टर पलानी पर कुछ लोगों द्वारा कीचड़ फेंके जाने का वीडियो फुटेज भी सामने आया है. हालांकि, सत्ताधारी डीएमके ने आरोप लगाया है कि विपक्षी दलों के उकसावे पर लोगों ने ऐसा किया.

तमिलनाडु सरकार के आधिकारिक बयान के अनुसार, अकेले विलुप्पुरम जिले में, जिसमें अरकंदनल्लूर भी शामिल है, 67 राहत शिविरों में 4,906 लोगों को रखा गया है और राहत शिविरों में रहने वालों को भोजन और दूध सहित बुनियादी जरूरतें मुहैया कराई गई हैं. 3 दिसंबर तक 132 घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं और 728 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं. तमिलनाडु सरकार ने बताया है कि विलुप्पुरम, कुड्डालोर और कल्लाकुरिची जिलों के बारिश प्रभावित इलाकों में राहत सहायता और पुनर्निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर चलाए जा रहे हैं.

यह भी पढ़ें- तमिलनाडु में बाढ़ में फंस गया था बच्चा, शख्स ने ऐसे बचाई मासूम की जान

विलुप्पुरम: तमिलनाडु का विलुप्पुरम जिला चक्रवात फेंगल से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. चक्रवाती तूफान और उसके कारण हुई भारी बारिश से अरकंदनल्लूर के निवासियों का सबकुछ बर्बाद हो गया. नदी में बाढ़ के बाद रिहायशी इलाकों में पानी भर गया, जिससे क्षेत्र के 100 से अधिक घर डूब गए. बाढ़ से प्रभावित लोगों को अब तक शासन-प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है.

प्रशासन की उपेक्षा से नाराज स्थानीय लोगों ने बुधवार को सड़क जाम कर प्रदर्शन किया. उन्होंने आरोप लगाया कि 5 दिन बीत जाने के बाद भी कोई अधिकारी स्थिति का निरीक्षण करने नहीं आया. बाद में विलुप्पुरम राजस्व मंडल अधिकारी मौके पर पहुंचकर ग्रामीणों से मुलाकात की और उन्हें नुकसान का आकलन करने का आश्वासन दिया.

ग्राउंड पर स्थिति देखने के लिए ईटीवी भारत की टीम भी बुरी तरह प्रभावित गांव पहुंची और देखा कि पानी के बहाव के कारण इमारतें नष्ट हो गईं. घरों में कपड़े, फर्नीचर और खाना पकाने के बर्तन सब पानी में डूबे थे. यहां तक कि बाढ़ में बह गए मवेशियों के शव भी बरामद नहीं हो सके.

अरकंदनल्लूर की रहने वाली गोविंदम्मा की चार गाय बाढ़ में बह गईं. गोविंदम्मा ने कहा, "हमारी आजीविका इन मवेशियों पर निर्भर थी. हमें उम्मीद नहीं थी कि बाढ़ इतनी भयानक बाढ़ आएगी. हमने शेड में बंधी गाय को छुड़ाने की कोशिश की. लेकिन पानी का बहाव बहुत तेज था. हम गायों को नहीं बचा पाए. हम मृत गायों के शव भी नहीं निकाल पाए."

पूरे गांव के लोगों में पीड़ा और डर व्याप्त है. गांव की एक बच्ची तनुश्री ने 1 दिसंबर को आई बाढ़ के बारे में बात करते हुए कहा कि वह सरकारी स्कूल में चौथी क्लास में पढ़ती है. बाढ़ में उसकी सारी किताबें बह गईं. तनुश्री ने कहा कि वे दो दिन तक बिना भोजन और पानी के रहे.

इसी इलाके में रहने वाली राजम्मा कहती हैं, "हमने तीन महीने पहले ही नया घर बनाया और उसमें रहने लगे. घर का सारा सामान बाढ़ में बह गया." उन्होंने कहा कि 1 दिसंबर को, जिस दिन बाढ़ आई, रात करीब 12 बजे हमारे घर में पानी घुसने लगा. हम घर की छत पर चढ़ गए और मदद के लिए चिल्लाने लगे. हमारी तरह आस-पड़ोस के लोग भी बारिश में भीगते हुए अपने घरों की छतों पर खड़े होकर जान बचा रहे थे."

राजम्मा अभी भी उस सदमे से उबर नहीं पाई हैं. उन्होंने दुख जताया कि सरकार अवैध शराब से मरने वालों को 10 लाख रुपये देने को तैयार है, लेकिन बाढ़ प्रभावित परिवारों को सिर्फ 2,000 रुपये देने की घोषणा की है.

इस क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले ज्यादातर लोगों के पास गैस सिलेंडर, खाना पकाने के बर्तन और कपड़े समेत कुछ भी नहीं बचा है. उनका कहना है कि बाढ़ में सब कुछ बह गया है और अगर सरकार कोई उन्हें चावल और किराने का सामान दे भी दे तो वे खाना नहीं बना पा रहे हैं और न ही खा पा रहे हैं.

गांव निवासी रामचंद्रन और गुरुराजन ने कहा, "1972 में यहां आई बाढ़ मौजूदा बाढ़ से भी ज्यादा भयानक थी. लेकिन इस बार पानी बहुत ज्यादा छोड़ा गया, इसलिए पानी घरों में घुस गया. 1972 में इस इलाके में ज्यादा घर नहीं थे, इसलिए पानी जल्दी निकल गया."

अरकंडनल्लूर से 40 किलोमीटर दूर उसी नदी के किनारे बसे इरुवेलपट्टू गांव का दौरा करने गए वन मंत्री पोनमुडी और जिला कलेक्टर पलानी पर कुछ लोगों द्वारा कीचड़ फेंके जाने का वीडियो फुटेज भी सामने आया है. हालांकि, सत्ताधारी डीएमके ने आरोप लगाया है कि विपक्षी दलों के उकसावे पर लोगों ने ऐसा किया.

तमिलनाडु सरकार के आधिकारिक बयान के अनुसार, अकेले विलुप्पुरम जिले में, जिसमें अरकंदनल्लूर भी शामिल है, 67 राहत शिविरों में 4,906 लोगों को रखा गया है और राहत शिविरों में रहने वालों को भोजन और दूध सहित बुनियादी जरूरतें मुहैया कराई गई हैं. 3 दिसंबर तक 132 घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं और 728 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं. तमिलनाडु सरकार ने बताया है कि विलुप्पुरम, कुड्डालोर और कल्लाकुरिची जिलों के बारिश प्रभावित इलाकों में राहत सहायता और पुनर्निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर चलाए जा रहे हैं.

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