बालोद : पूरा सावन गुजर गया है और जिले में किसान मायूस निगाहों से बादलों को झांक रहे हैं. फसलें पीली पड़ने लगी हैं. खेतों में दरारें पड़ने लगी हैं. ऐसे में यहां के किसान जलाशयों से सिंचाई के लिए पानी की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि दशकों बाद यहां के जलाशय सूखने लगे हैं. तेजी से जलाशयों का जलस्तर घट चुका है. उनमें सिंचाई के लिए भी पानी भी नहीं बचा है. केवल पेयजल के लिए जितनी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, उतना ही पानी यहां बचा हुआ है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इस वर्ष 100 सालों के बाद तांदुला जलाशय के गेट की मरम्मत की गई. दरअसल, गेट के खराब होने के कारण भारी मात्रा में पानी का रिसाव हो जाता था. गेट की मरम्मत जरूरी थी. अब क्योंकि गेट की मरम्मत की गई है तो मरम्मत करने के लिए जलाशय को खाली किया गया था. इसे खाली करने के बाद पानी निकाला गया, अब यहां केवल 19.9% पानी शेष है. जबकि पेयजल के लिए कम से कम 30 प्रतिशत पानी आरक्षित रखना पड़ता है. यह कह सकते हैं कि पेयजल के लिए भी यहां पानी कम है.
आइये आंकड़ों से समझें पानी की स्थिति
बालोद जिले को जल संसाधन के दृष्टिकोण से समृद्ध जिला माना जाता है. बालोद जिले में कुल 4 बड़े जलाशय हैं. इनमें तांदुला जलाशय जोकि महानदी बेसिन का एक हिस्सा है, यहां 19.9% पानी ही शेष है. यहां का दूसरा बड़ा जलाशय है करकरा. इस जलाशय में 29.20 प्रतिशत पानी शेष है. इस जलाशय में पानी की अधिकता होने के चलते यहां से कृषि के लिए पानी दिया गया है. लेकिन 30 प्रतिशत क्योंकि पानी पेयजल के लिए रखना पड़ता है तो इसे भी अब सुरक्षित रखा जा रहा है. तीसरा जलाशय है मटिया मोती. इस जलाशय में 15.29 प्रतिशत पानी बचा हुआ है. चौथा और बड़ा जलाशय है गोंदली जलाशय. इस जलाशय में 39.79 प्रतिशत पानी बचा है.
सूखे हैं जिले के जलाशय
अगर जलाशयों में पानी भरा रहे और किसान सरकार से पानी की मांग करें तो जायज है, लेकिन खुद जलाशय सूखे पड़े हैं. पेयजल के लिए पानी का संरक्षण बेहद जरूरी है. पहले यहां का प्रशासन पेयजल के लिए पानी आरक्षित करने में लगा है. और तो और आने वाले दिनों में यदि बारिश नहीं होती है तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है. इस वर्ष जलाशय की मरम्मत का भी एक बड़ा असर देखने को मिला है.