बिलासपुर: आरक्षण के मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट के साथ ही राज्य सरकार ने भी बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. जिस पर सोमवार को शासन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने पैरवी की. सुनवाई के दौरान शासन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल को सीधे तौर पर विधेयक को रोकने का कोई अधिकार नहीं है. इस मामले में जवाब के लिए हाई कोर्ट ने एक सप्ताह का समय दिया है.
कपिल सिब्बल ने क्या कहा? : कपिल सिब्बल ने कहा कि "छत्तीसगढ़ विधानसभा से आरक्षण संशोधन विधेयक पास हुआ है. लेकिन राज्यपाल ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है. यह अंवैधानिक है या नहीं यह कोर्ट तय करेगी. हमारे हिसाब से राज्यपाल को देर नहीं करना चाहिए. यह छत्तीसगढ़ की जनता के लिए है, खास तौर पर ट्राइबल कम्यूनिटीज के लिए. यह बहुत महत्वपूर्ण कदम है. कोर्ट ने तो केवल नोटिस इश्यू किया है."
कपिल सिब्बल ने यह भी कहा कि '' राज्यपाल को या तो अनुमति देना चाहिए या इनकार करना चाहिए या राष्ट्रपति को रिफर करना चाहिए. इसके अंतर्गत कोर्ट ने नोटिस दिया है.''
हाईकोर्ट ने पुराने आरक्षण बिल को किया था रद्द: एडवोकेट हिमांक सलूजा ने खुद पिटिशनर इन पर्सन हाईकोर्ट में याचिक दायर कर कहा है कि "राज्य सरकार ने 18 जनवरी 2012 को प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत एससी वर्ग के लिए 12 परसेंट, एसटी वर्ग के लिए 32, ओबीसी वर्ग के लिए 14 परसेंट किया था. इसके खिलाफ दायर अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आरक्षण को असंवैधानिक बताया, साथ ही आरक्षण को रद्द कर दिया. इसके बाद से आरक्षण को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है.
प्रदेश में हजारों पदों पर भर्ती रुकी: आरक्षण को लेकर असमंजस की स्थिति के चलते अभी तक आरक्षण रोस्टर तय नहीं किया जा सका है. जिसके कारण प्रदेश के हजारों पदों पर भर्ती रुक गई है. इसका खामियाजा बेरोजगारों को भुगतना पड़ रहा है. राज्य शासन ने भी आरक्षण विधेयक बिल को राज्यपाल की ओर से रोकने को हाईकोर्ट में चुनौती दी है. इसमें कहा गया है कि राज्यपाल को विधानसभा में पारित किसी भी बिल को रोकने का अधिकार नहीं है.
विधानसभा से पारित हो गया है आरक्षण बिल 2023: आरक्षण याचिका में बताया गया है कि "राज्य सरकार ने आरक्षण के मुद्दे पर राज्यपाल से सहमति लेकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया. जिसमें जनसंख्या के आधार पर प्रदेश में 76% आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित किया है. इसमें आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को भी 4% आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. नियमानुसार विधानसभा से आरक्षण बिल पास होने के बाद इस पर राज्यपाल का हस्ताक्षर होना था. राज्य शासन ने बिल पर हस्ताक्षर करने के लिए राज्यपाल के पास भेजा, लेकिन राज्यपाल बिल पर लंबे समय से हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं."