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ग्राउंड रिपोर्ट: हर साल बरसात में आईलैंड बन जाता है ये गांव, लोग पूछ रहे- इस मुसीबत से कब मिलेगी मुक्ति? - ईटीवी भारत

ग्रामीणों का कहना है कि पुल निर्माण होने से सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है. लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के कारण बरसात के समय यहां समस्याओं का अंबार रहता है. खेती करना भी खतरे से खाली नहीं है.

नदी में पानी
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Published : Jul 12, 2019, 11:43 AM IST

Updated : Jul 13, 2019, 5:50 PM IST

बेतिया: बरसात का मौसम आते ही जिले के लोग संकटों से जूझने लगते हैं. सरकार पुल-पुलिया निर्माण की बात खूब करती है. लेकिन मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवलपुर का पिपरिया और खलवा टोला है. जहां के लोग एक पुल के लिए तरस रहे हैं.

जान जोखिम में डालकर लोग करते हैं नदी पार

जान पर खेल कर खेती कर रहे किसान
यहां नदी पार करने के लिए लोगों के पास एक मात्र साधन नाव है. एक तरफ खलवा टोला तो दूसरी तरफ पिपरिया गांव है. यहां के किसान जान जोखिम में डालकर नदी पार कर खेती करने जाते हैं. लेकिन बाढ़ में सब बर्बाद हो जाता है. आलम यह है कि बरसात के दिनों में दोनों गांव के लोग एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं. बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है. जबकि सबसे ज्यादा परेशानी मरीजों को उठानी पड़ती है.

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नदी पार कर खेती करने जा रहा किसान

जमीन बेच कर नाव बनाई
लोगों को नदी पार करा रहे नाविक ने बताया कि 'पिछले 30 सालों से नाव चला रहे हैं.' आगे बताते हैं, 'जमीन बेच कर नाव बनाई थी.' दिन भर लोगों की सहायता करते हैं. लेकिन सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिलती है.

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स्थानीय नाविक

अधूरा पड़ा है पुल का निर्माण
दोनों गांव, सरकार और जिला प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर हैं. पुल आज भी अधूरा पड़ा है. यह पुल दो प्रखंड और 20 गांव को जोड़ती है. नदी पर पुल का एप्रोच पथ आज तक नहीं बन पाया है. ग्रामीणों ने बताया कि पुल बनने के साथ एप्रोच पथ से जुड़ने पर परेशानी दूर हो सकती है. नदी में कई लोग डूबने से बाल-बाल बचे हैं. भारी बरसात में गांव टापू बन जाता है. गांव में कोई रास्ता भी नहीं है. आज भी मरीज को खाट पर लेकर अस्पताल जाना पड़ता है.

बेतिया: बरसात का मौसम आते ही जिले के लोग संकटों से जूझने लगते हैं. सरकार पुल-पुलिया निर्माण की बात खूब करती है. लेकिन मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवलपुर का पिपरिया और खलवा टोला है. जहां के लोग एक पुल के लिए तरस रहे हैं.

जान जोखिम में डालकर लोग करते हैं नदी पार

जान पर खेल कर खेती कर रहे किसान
यहां नदी पार करने के लिए लोगों के पास एक मात्र साधन नाव है. एक तरफ खलवा टोला तो दूसरी तरफ पिपरिया गांव है. यहां के किसान जान जोखिम में डालकर नदी पार कर खेती करने जाते हैं. लेकिन बाढ़ में सब बर्बाद हो जाता है. आलम यह है कि बरसात के दिनों में दोनों गांव के लोग एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं. बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है. जबकि सबसे ज्यादा परेशानी मरीजों को उठानी पड़ती है.

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नदी पार कर खेती करने जा रहा किसान

जमीन बेच कर नाव बनाई
लोगों को नदी पार करा रहे नाविक ने बताया कि 'पिछले 30 सालों से नाव चला रहे हैं.' आगे बताते हैं, 'जमीन बेच कर नाव बनाई थी.' दिन भर लोगों की सहायता करते हैं. लेकिन सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिलती है.

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स्थानीय नाविक

अधूरा पड़ा है पुल का निर्माण
दोनों गांव, सरकार और जिला प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर हैं. पुल आज भी अधूरा पड़ा है. यह पुल दो प्रखंड और 20 गांव को जोड़ती है. नदी पर पुल का एप्रोच पथ आज तक नहीं बन पाया है. ग्रामीणों ने बताया कि पुल बनने के साथ एप्रोच पथ से जुड़ने पर परेशानी दूर हो सकती है. नदी में कई लोग डूबने से बाल-बाल बचे हैं. भारी बरसात में गांव टापू बन जाता है. गांव में कोई रास्ता भी नहीं है. आज भी मरीज को खाट पर लेकर अस्पताल जाना पड़ता है.

Intro:पश्चिमी चंपारण: ईटीवी भारत की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट। जिला मुख्यालय से मात्र 35 किलोमीटर दूरी पर नवलपुर का पिपरिया और खलवा टोला सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। दो प्रखंड और 20 गांव को जोड़ती है ये पुल फिर भी सरकार की इस पर नजर नहीं है । नदी के इस पार खलवा टोला और उस पार पिपरिया बरसात के दिनों में एक दूसरे से दूर हो जाता है। बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है, तो मरीज का हाल बेहाल हो जाता है।


Body:30 सालों से एक माझी दोनों गांवों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए जमीन बेचकर नाव बनाया और उसी नाव से गांव के लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का सफल प्रयास किया है। माझी दिनभर इस पार से उस पार गांव के लोगों को सैकड़ों बार ले जाता है और ले आता है। किसान की मजबूरी है की वह नदी पार कर खेती करने जाता है। लेकिन खेती नहीं कर पाते हैं।

सरकार और जिला प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहा ये दो गांव, पुल बन गया है लेकिन इस नदी पर पुल का आज तक एप्रोच पथ नहीं बना है। इस नदी में कई लोग डूबने से बचे हैं। भारी बरसात में गांव टापू बन जाता है। मरीज खाट पर लाए जाते हैं। गांव में जाने के लिए रास्ते नहीं है। माझी का कहना है कि लगातार 30 सालों से दोनों गांव की सेवा कर रहा हूं। मुझे मजदूरी भी नहीं मिलती है और सरकार के तरफ से कोई सहायता भी नहीं मिलती है। ग्रामीणों का कहना है कि पुल बन जाता और एप्रोच पथ पर से जुड़ जाता तो यह परेशानी दूर हो जाती।

बाइट- ग्रामीण और माझी





Conclusion:विकास के दावे करने वाली सरकार यह देख ले। ईटीवी भारत की ये ग्राउंड जीरो रिपोर्ट है। एक माझी के सहारे 2 गांव जुड़े रहते हैं दो प्रखंड 20 गांव इसी के सहारे हैं , लेकिन सरकार अभी तक इस पुल को नहीं देख पाई है। भले ही विकास के दावे होते रहे लेकिन ईटीवी भारत की इस ग्राउंड जीरो रिपोर्ट पर विकास के दावे खोखले साबित हो रहे हैं।

जितेंद्र कुमार गुप्ता
ईटीवी भारत, बेतिया
पीटीसी
Last Updated : Jul 13, 2019, 5:50 PM IST
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