पश्चिम चंपारण: बगहा को उत्तरप्रदेश से जोड़ने वाला एकमात्र राष्ट्रीय राजमार्ग अपने बदहाली पर आज भी आंसू बहा रहा है. हालत यह है कि यदि बारिश की हल्की फुहार भी पड़ जाए तो पूरे चंपारण का सम्पर्क उत्तरप्रदेश से टूट जाता है. ऐसे में लोगों को आने जाने में काफी परेशानी होती है.
एनएच 727 स्थिति जर्जर
पश्चिम चंपारण को उत्तरप्रदेश से जोड़ने वाले एकमात्र एनएच 727 पर जलजमाव के कारण वाहनों का आवागमन ठप हो गया है. दो दिनों से रुक-रुक कर हो रही बारिश ने दशकों से जर्जर हो चुके इस सड़क की स्थिति और नारकीय बना दी है. हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि इस सड़क मार्ग से कोई भी यात्री अपना निजी वाहन लेकर जाना नहीं चाहता. सबसे अहम बात यह है कि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व को उत्तरप्रदेश के कुशीनगर पर्यटक स्थल से जोड़ने वाला यह एक मात्र नेशनल हाइवे है. ऐसे में पर्यटकों के संख्या में भारी गिरावट आ सकती है.
लोगों को हो रही परेशानी
स्थानीय लोगों का कहना है कि ज्यादा बरसात हो जाने पर यह मार्ग पूरी तरह ठप पड़ जाता है. कम बारिश में सिर्फ ट्रैक्टर और ट्रक की ही आवाजाही हो पाती है. यदि गलती से भी कोई इस सड़क में कोई निजी वाहन लेकर घुस जाये तो फंस जाता है. जेसीबी की सहायता से उसे निकलना पड़ता है. स्थिति यह है कि यदि कोई बीमार पड़ जाए तो चारपाई पर लादकर मुख्य मार्ग पर लाया जाता और वहां से गाड़ी से अस्पताल भेजा जाता है.
सरकार की उदासीनता
1990 के पहले से ही इस सड़क को सरकारी उदासीनता का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. डॉ. जगनाथ मिश्र, लालू यादव, नीतीश कुमार, राबड़ी देवी और जीतनराम मांझी जैसे मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल के बावजूद इस सड़क का कायाकल्प नहीं हो पाया है. पूर्व में जब तक इस सड़क की मरम्मती व देखरेख का जिम्मा रेल विभाग के पास था तब तक सड़क की स्थिति वर्तमान समय से बेहतर थी. 1990 में जैसे ही इसे पथ निर्माण विभाग को हस्तांतरित किया गया तब से इसकी हालत बदतर हो गई है.
कई दशकों से ठप पड़ा है निर्माण कार्य
गौरतलब हो कि 1990 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जग्गनाथ मिश्र और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के बीच एक समझौता हुआ था. इस दौरान ये तय हुआ था कि बिहार के हिस्से की सड़कें बिहार सरकार निर्मित कराएगी और उत्तरप्रदेश की सड़कें उत्तरप्रदेश की सरकार बनवाएगी. उत्तरप्रदेश की सरकार ने अपने हिस्से का सड़क निर्माण तो करा लिया लेकिन बिहार सरकार के वन विभाग ने इस एनएच पर पेंच फंसा दिया. जबकि 1990 में ही इस एनएच को बनाने के एवज में 61 एकड़ भूमि वन विभाग को अधिगृहित कर दी गई थी. लेकिन विभागीय अधिकारियों की मनमानी से इस सड़क का निर्माण कार्य कई दशकों से ठप पड़ा है.
पर्यटकों की संख्या में आ सकती है गिरावट
बहरहाल एक तरफ सरकार वाल्मीकि टाइगर रिजर्व को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. वहीं दूसरी तरफ इस जर्जर सड़क के प्रति उदासीन बनी हुई है. बदहाल सड़क से आम लोगों को परेशानी तो हो ही रही है. ऐसे में पर्यटकों की संख्या में भी गिरावट आ सकती है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि सरकार की नजरें इस तरफ कब पड़ती है.