बेतिया: बिहार के बेतिया (Bettiah) जिले में लगातार हो रही बारिश के कारण बाढ़ का पानी कई गांव में घुस चुका है. गांव में बाढ़ का पानी घुसने से आवागमन ठप हो चुका है. ऐसा ही मामला चनपटिया प्रखंड के जैतिया पंचायत के पिपरा गांव (Pipra Village In Bettiah) वार्ड नंबर- 5 में देखने को मिली है. जहां पिपरा गांव से तुलाराम घाट, सिसवनिया, चिकपट्टी, नोनिया टोला जाने वाली मुख्य सड़क के बीचों-बीच पुल टूट चुका है. जिस कारण बाढ़ आ जाने से आवागमन पूरी तरह से बाधित हो चुका है.
बता दें कि इस टोला के लोगों को रस्सी के सहारे इस पार से उस पार जाना पड़ रहा है. जो लोग रस्सी के सहारे नहीं जा रहे हैं उन्हें कमर भर पानी से होकर गुजरना पड़ रहा है. ऐसे में जान जोखिम में डालकर रस्सी का सहारा लेकर इस पार से उस पार कर रहे लोगों के साथ कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है.
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गांव में आवागमन बाधित
स्थानीय लोगों का कहना है कि बाढ़ आने से 3 दिन पहले ठेकेदार के माध्यम से पुल को तोड़ दिया गया. जिससे दूसरे पुल का निर्माण हो सके. लेकिन अचानक तेज बारिश के कारण जिले में बाढ़ आ गई. बाढ़ के कारण गांव का आवागमन पूरी तरह से बाधित हो गया. अब रस्सी ही एकमात्र सहारा है. रस्सी के सहारा लेकर जान जोखिम में डालकर लोग आने-जाने को मजबूर हैं. बता दें कि गांव में अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए तो उन्हें गांव से बाहर निकलने के लिए कोई रास्ता नहीं है.
'मेरे बच्चे की तबीयत खराब है, वह दवा लेने जा रहे हैं. रस्सी एकमात्र सहारा है. आने-जाने का कोई रास्ता नहीं है. यदि जल्द से जल्द पुल का निर्माण हो जाता तो आवागमन सुचारू रूप से चलता. जिससे हमलोगों को परेशानियों का सामना भी नहीं करना पड़ता.' -लक्ष्मण राम, स्थानीय
पुल टूटने के बाद उठे कई सवाल
ऐसे में सवाल उठता है कि जब मौसम विभाग के माध्यम से 15 जून को ही मानसून (Monsoon In Bihar) आने की सूचना मिल गई थी, तो मानसून के समय ही पुल को क्यों तोड़ा गया? अगर पुल की मरम्मती ही करनी थी तो मानसून आने से कुछ महीने पहले यह काम शुरू क्यों नहीं किया गया? यह जिला प्रशासन की लापरवाही कहें या ठेकेदार की. जब मानसून दस्तक देने वाला था उसी समय यह पुल को तोड़ा गया है.
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गांव बना टापू
जैतिया पंचायत के कई गांव टापू में तब्दील हो गए हैं. गांव में आवागमन पूरी तरह से ठप है. गांव के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बता दें कि यह मानसून की पहली बारिश है. पहली बारिश ने ही जिले में तबाही मचा दी है. ऐसे में अभी पूरा मानसून बाकी है. तस्वीरें देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जैतिया पंचायत के लोगों का क्या हाल होगा.
बाढ़ की समस्या अब तक बरकरार
बताते चलें कि बिहार में एक समस्या अब तक बरकरार है और वह है बाढ़ की समस्या. नदियों के मामले में सबसे धनी बिहार को मानसून (Monsoon in Bihar) के वक्त कोसी, गंगा, गंडक और बागमती समेत कई छोटी नदियों का भी रौद्र रूप झेलना पड़ता है. नदियों के इस रौद्र रूप का खामियाजा भुगतती है बिहार की लाखों की आबादी.
हर साल 16 जिले होती हैं प्रभावित
बता दें कि हर साल बिहार में कम से कम 16 जिले बाढ़ से प्रभावित होते हैं. जिसमें कम से कम 60 से 70 लाख की आबादी बाढ़ का कहर झेलती है. उत्तर बिहार का करीब 76% इलाका हर साल बाढ़ की त्रासदी झेलता है. मुख्यमंत्री ने इस बार बाढ़ की तैयारियों को लेकर मई महीने में अलग-अलग बैठकें की थी. जल संसाधन विभाग, लघु जल संसाधन विभाग, पथ निर्माण विभाग और ग्रामीण कार्य विभाग के साथ प्रमंडलवार बैठक की गई. साथ ही अधिकारियों के जरिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों से सुझाव भी लिए गए थे.
सीएम ने दिया था निर्देश
मुख्यमंत्री ने बाढ़ प्रभावित इलाकों में 15 जून तक पुरानी सड़कों और पुल पुलियों को दुरुस्त करने का निर्देश दिया था. लेकिन इसके बावजूद भी बिहार के बेतिया जिले का यह हाल है. सीएम ने सभी काम गुणवत्तापूर्ण हो इसके भी निर्देश दिए थे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) ने बांधों को ऊंचा, पक्का और सुदृढ़ करने का काम तेजी से पूरा करने का निर्देश दिया था.
ये जिले हर साल झेलते हैं बाढ़ की त्रासदी
सुपौल, सीतामढ़ी, सहरसा,दरभंगा, मुजफ्फरपुर, शिवहर, समस्तीपुर, गोपालगंज,मोतिहारी, बेतिया, खगड़िया, मधुबनी, सिवान, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, कटिहार.
बाढ़ की प्रमुख वजहें
- फरक्का बराज और गंगा में जमा सिल्ट
- नेपाल से छोड़ा जाने वाला पानी
- तटबंधों की मरम्मत में लापरवाही
क्या कहते हैं जानकार
बिहार की बाढ़ के बारे में विस्तृत जानकारी रखने वाले शिक्षाविद डॉ संजय कुमार कहते हैं कि नई तकनीक के जरिए नेपाल से आने वाले पानी और बारिश की वजह से बढ़ने वाले पानी का मैनेजमेंट करना होगा. तभी बिहार को बाढ़ जैसी बड़ी आपदा से बचाया जा सकता है और हर साल खर्च होने वाली अरबों रुपये की राशि बचा सकते हैं.