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चिलचिलाती धूप और बारिश के बीच संवर रहे हैं भारत के भविष्य - पश्चिम चंपारण

बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं. उन बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए उत्कृष्ट शिक्षा सबसे जरूरी है. सरकार अब समय के साथ ताल मिलाते हुए सरकारी विद्यालयों को हाईटेक बनाने के दावे करती है. कुछ काम भी हुआ है लेकिन अभी भी कई ऐसे विद्यालय हैं जिसे देखकर सरकारी दावा बेमानी लगता है. हम आपको दिखाते हैं एक ऐसे विद्यालय की तस्वीर. पढ़ें यह रिपोर्ट.

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Published : Sep 7, 2021, 8:28 AM IST

बगहा: बिहार सरकार (Bihar Government) शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति (Revolution in Education) लाने की बात करती है. इसको लेकर सरकारी विद्यालयों को हाईटेक (Hi-tech School) बनाने की कवायद भी शुरू की गई है. इसके तहत अधिकांश विद्यालयों में स्मार्ट क्लास (Smart Class) भी शुरू हो चुका है लेकिन आदिवासी बहुल इलाके में एक ऐसा भी विद्यालय है जो खुले पेड़ों के नीचे पीसीसी सड़क पर संचालित होता है. यहां चिलचिलाती धूप और बरसात में देश का भविष्य संवारा जा रहा है.

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पश्चिम चंपारण (West Champaran) बगहा प्रखण्ड दो अंतर्गत आदिवासी बहुल क्षेत्र गौरी बेलवा टोला में बच्चे इस डिजिटल युग में भी खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं. दरअसल, इस गांव के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए लम्बा सफर तय करना पड़ता था. नतीजन जंगली इलाका होने के कारण बच्चों के अभिभावक जंगली जानवरों के भय से बच्चों को दूर नहीं भेजना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने चंदा इकट्ठा कर जमीन खरीदी और राज्यपाल के नाम डोनेट कर दिया ताकि गांव में ही विद्यालय बन जाए और बच्चे दूर दराज जाने की बजाय गांव में ही शिक्षा ग्रहण करें.

देखें रिपोर्ट

दशकों बीत जाने के बावजूद अब तक उस जमीन पर भवन नहीं बन पाया है. बच्चे आज भी खुले आसमान के नीचे सड़क पर पढ़ने को मजबूर हैं. बता दें कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय गौरी बेलवा को 2007 में सरकारी दस्तावेज में मान्यता मिली थी. यहां दो शिक्षिकाओं को पदस्थापित किया गया है लेकिन विद्यालय भवन के नाम पर एक छोटी सी झोपड़ी है. वह भी बिल्कुल जर्जर हो चुकी है. इसके चलते बारिश में भींगने के डर से अटेंडेंस रजिस्टर या तो किसी अभिभावक के घर पर रखा जाता है अथवा प्रधान शिक्षिका उसे अपने घर ले जाती हैं.

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प्रधान शिक्षिका का कहना है कि विद्यालय में कोविड काल के बाद 80 बच्चे हैं. इसके बावजूद भवन नहीं होने के कारण बच्चों को धूप हो या बरसात में पेड़ के नीचे ही सड़क पर पढ़ाना पड़ता है. वहीं यहां पढ़ रहे बच्चों का कहना है कि जैसे ही बारिश होती है, उनका बस्ता भींग जाता है और क्लास बंद हो जाता है. यदि बारिश न हो तो चिलचिलाती धूप में ही पाठशाला चलती है. सरकार शिक्षा को लेकर भले बड़े-बड़े दावे करे, डिजिटल स्कूल, डिजिटल बिहार, डिजिटल इंडिया का नारा दे लेकिन सड़क पर खड़ा यह विद्यालय सरकार को मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है.

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बगहा: बिहार सरकार (Bihar Government) शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति (Revolution in Education) लाने की बात करती है. इसको लेकर सरकारी विद्यालयों को हाईटेक (Hi-tech School) बनाने की कवायद भी शुरू की गई है. इसके तहत अधिकांश विद्यालयों में स्मार्ट क्लास (Smart Class) भी शुरू हो चुका है लेकिन आदिवासी बहुल इलाके में एक ऐसा भी विद्यालय है जो खुले पेड़ों के नीचे पीसीसी सड़क पर संचालित होता है. यहां चिलचिलाती धूप और बरसात में देश का भविष्य संवारा जा रहा है.

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पश्चिम चंपारण (West Champaran) बगहा प्रखण्ड दो अंतर्गत आदिवासी बहुल क्षेत्र गौरी बेलवा टोला में बच्चे इस डिजिटल युग में भी खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं. दरअसल, इस गांव के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए लम्बा सफर तय करना पड़ता था. नतीजन जंगली इलाका होने के कारण बच्चों के अभिभावक जंगली जानवरों के भय से बच्चों को दूर नहीं भेजना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने चंदा इकट्ठा कर जमीन खरीदी और राज्यपाल के नाम डोनेट कर दिया ताकि गांव में ही विद्यालय बन जाए और बच्चे दूर दराज जाने की बजाय गांव में ही शिक्षा ग्रहण करें.

देखें रिपोर्ट

दशकों बीत जाने के बावजूद अब तक उस जमीन पर भवन नहीं बन पाया है. बच्चे आज भी खुले आसमान के नीचे सड़क पर पढ़ने को मजबूर हैं. बता दें कि राजकीय प्राथमिक विद्यालय गौरी बेलवा को 2007 में सरकारी दस्तावेज में मान्यता मिली थी. यहां दो शिक्षिकाओं को पदस्थापित किया गया है लेकिन विद्यालय भवन के नाम पर एक छोटी सी झोपड़ी है. वह भी बिल्कुल जर्जर हो चुकी है. इसके चलते बारिश में भींगने के डर से अटेंडेंस रजिस्टर या तो किसी अभिभावक के घर पर रखा जाता है अथवा प्रधान शिक्षिका उसे अपने घर ले जाती हैं.

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प्रधान शिक्षिका का कहना है कि विद्यालय में कोविड काल के बाद 80 बच्चे हैं. इसके बावजूद भवन नहीं होने के कारण बच्चों को धूप हो या बरसात में पेड़ के नीचे ही सड़क पर पढ़ाना पड़ता है. वहीं यहां पढ़ रहे बच्चों का कहना है कि जैसे ही बारिश होती है, उनका बस्ता भींग जाता है और क्लास बंद हो जाता है. यदि बारिश न हो तो चिलचिलाती धूप में ही पाठशाला चलती है. सरकार शिक्षा को लेकर भले बड़े-बड़े दावे करे, डिजिटल स्कूल, डिजिटल बिहार, डिजिटल इंडिया का नारा दे लेकिन सड़क पर खड़ा यह विद्यालय सरकार को मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है.

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