बेतिया: नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर जहां दिल्ली में किसानों का आंदोलन जारी है, वहीं, जिले में भी किसान काफी दुखी और गुस्से में हैं. यहां के किसानों का कहना है कि सरकार की नीतियों के कारण उनके लिए लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो रहा है. कोई भी हमारी समस्याओं को सुनने को तैयार नहीं है. जबकि चंपारण वह धरती है, जिसने किसान आंदोलन से ही अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थी. किसानों के उपजाए प्याज की बढ़ी कीमतों के कारण कई सरकारों का तख्तापलट हो गया.
चंपारण, किसान आंदोलन के लिए प्रसिद्ध
किसानों का कहना है कि चंपारण की धरती किसान आंदोलन के लिए जाना जाता है. अंग्रेजों की गलत नीतियों के खिलाफ महात्मा गांधी ने इसी चंपारण की धरती से सत्याग्रह की शुरुआत की थी. आज की मौजूदा सरकार की नीतियों के खिलाफ भी किसानों में नाराजगी है और वह सड़क पर हैं.
लागत मूल्य भी नहीं निकलती
चेतावनी भरे लहजे में किसान कहते हैं कि सरकार की गलत नीतियों के कारण किसानों पर जो बोझ पड़ रहा है, उसका समाधान निकाला जाए. क्योंकि किसानों की लागत मूल्य भी नहीं निकल पा रही है. यूरिया से लेकर बीज तक की महंगाई हो चुकी है. नहरों में सिंचाई के लिए पानी नहीं है. ऐसे में सिंचाई के लिए भी किसानों को घंटों के हिसाब से पैसा देना पड़ता है ताकि बोरवेल से खेतों में पानी पहुंच सके.
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दें लिखित
किसानों की मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य से जुड़ी है. उनका कहना है बिल के तौर पर एक लिखित आश्वासन मिलना चाहिए कि भविष्य में सेंट्रल पूल के लिए एमएसपी और पारंपरिक खाद्य अनाज खरीद प्रणाली जारी रहेगी.
बिजली बिल संशोधन रद्द किया जाए
किसानों की मांग बिजली बिल संशोधन को समाप्त करना है. किसान यूनियनों का कहना है कि अगर यह बिल कानून बन जाता है तो वे मुफ्त बिजली की सुविधा खो देंगे. उनके मुताबिक ये संशोधन बिजली के निजीकरण को बढ़ावा देगा.