पटना : राजनीति में एक जुमला बार-बार सुना जाता है कि 'ऊंट किस करवट बैठेगा?' लेकिन कोई नहीं जानता कि आगे क्या होगा. बिहार की सियासत में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. यहां की एनडीए सरकार सुचारू रूप से चल रही है, लेकिन अचानक लालू यादव ने ऐसा बयान दिया है कि बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है. जब लालू यादव ने कहा कि 'नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाजे खुले हैं', तो इसने राजनीतिक गलियारों में तहलका मचा दिया. उनके इस बयान को कोई हल्के में नहीं ले सकता, क्योंकि बिहार की राजनीति में उनका एक अहम स्थान है.
बिहार में खेला होगा? : भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह के बयान के बाद बिहार की राजनीति में कानाफूसी शुरू हो गई. चर्चा होने लगी कि बीजेपी को नीतीश कुमार के नेतृत्व पर ऐतबार नहीं है. आने वाले चुनाव में नीतीश कुमार का नेतृत्व रहेगा कि नहीं? हालत कहीं महाराष्ट्र वाली न हो, ऐसे में नीतीश कुमार का दिल्ली जाना और दिल्ली में पहले से तय भाजपा नेताओं से मुलाकात को कैंसिल करके एक दिन पहले पटना लौटना, कई सवालों को पैदा करता है.
लालू का बयान और उसके मायने : अब ऐसे मौके पर लालू यादव का यह बयान कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाजे खुले हैं. इससे ठीक दो दिन पहले नीतीश कुमार के खासमखास मंत्री महेश्वर हजारी ने कहा था कि राजनीति में कोई स्थाई दुश्मन या दोस्त नहीं होता है और उस बयान से ठीक एक हफ्ते पहले लालू यादव की पार्टी के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने नीतीश कुमार को ऑफर देते हुए कहा था कि उन्हें एनडीए में घुटन हो रही है.
लालू यादव की रणनीति : लालू यादव जानते हैं कि बिना नीतीश कुमार के तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री बनना मुश्किल होगा. इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार के लिए दरवाजे खोलने की बात कही है. वहीं, तेजस्वी यादव की 'नो एंट्री' की बातें और राजद के निर्देशों ने इस सियासी खेल को और उलझा दिया है. इस समय नीतीश कुमार का राजनीतिक कद और उनके फैसले बिहार की राजनीति को प्रभावित करेंगे.
अंतरात्मा की आवाज सुनते हैं नीतीश : कौशलेंद्र प्रियदर्शी के अनुसार, नीतीश कुमार के राजनीतिक फैसले अक्सर अप्रत्याशित होते हैं. उनके लिए राजनीतिक गठबंधन अक्सर मजबूरी में होते हैं, और उन्होंने कई बार अपनी पार्टी और गठबंधन बदले हैं. लालू यादव ने यह समझते हुए चुपके से अपने पत्ते चलने शुरू कर दिए हैं. नीतीश कुमार की राजनीति में यह समय भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी अंतरात्मा की आवाज उन्हें आगे की दिशा तय करने में मदद कर सकती है.
''मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पाला बदलने में माहिर है. आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि उन्होंने अपने 20 साल के मुख्यमंत्री काल में नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किस तरह के व्यक्ति हैं. लेकिन, सबसे बड़ी बात यह है कि लालू यादव ने आखिर नीतीश कुमार को लेकर यह बातें क्यों कहीं? तो लालू यादव भी बिहार के राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. उन्होंने नीतीश कुमार के सामने गूगली फेंका है. नीतीश कुमार उस गूगली पर छक्का मारते हैं या नहीं, यह समय तय करेगा.''- कौशलेन्द्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार
नीतीश कुमार की 'पलटीमार' राजनीति: नीतीश कुमार की राजनीति संघर्ष और बदलावों से भरी है. उन्होंने अपनी राजनीतिक शुरुआत 1985 में की थी और 1989 में सांसद बन गए थे. नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच गहरी दोस्ती थी, लेकिन 1994 में नीतीश ने समता दल की स्थापना की और एनडीए से जुड़ गए. इसके बाद उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर 2005 में बिहार में सत्ता वापसी की.
बार-बार पलटे नीतीश! : हालांकि, 2014 में मोदी विरोध के कारण उन्होंने इस्तीफा दिया और महागठबंधन में शामिल हो गए. फिर 2017 में उन्होंने तेजस्वी यादव के साथ गठबंधन तोड़ा और बीजेपी के साथ बिहार में सरकार बनाई. 2022 में महागठबंधन में वापसी की, लेकिन 2024 में फिर से बीजेपी से मिलकर सरकार बनाई.
पलटी मारने का दौर कब-कब?
- लालू यादव 1990 में मुख्यमंत्री बने, नीतीश ने छोड़ा, समता दल का गठन.
- साल 1995 में कम्यूनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, सफलता नहीं मिली, नीतीश ने पलटी मारी, NDA के साथ चले गए.
- साल 2003 में JDU का गठन.
- साल 2005 में BJP के साथ सत्ता में वापसी की. JDU को 88 सीटें आई थीं.
- साल 2010, BJP के साथ मिलकर 115 सीटें आई, लेकिन बीजेपी को छोड़ दिया.
- 2014, नीतीश लोकसभा चुनाव अकेले लड़े, दो सीटों पर जीते.
- 2015 विधानसभा चुनाव, 71 सीट पर जीत मिली, महागठबंधन में लौटे.
- 2020 में NDA में लौटे, विधानसभा चुनाव में सिर्फ 43 सीटों पर जीत मिली.
- 2022 में BJP को छोड़ा, इंडिया गठबंधन में शामिल हुए, फिर सीएम बने.
- 2024, लालू से नाता तोड़ा, बीजेपी से मिल गए और मुख्यमंत्री बन गए.
बिहार की राजनीति में बदलाव का संकेत : बिहार की राजनीति में कई बदलाव आ सकते हैं, और यह स्थिति उस ऊंट के समान है, जो किस करवट बैठेगा, यह कोई नहीं जानता. नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ही राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. इस समय सबसे बड़ा सवाल यह है कि नीतीश कुमार किस दिशा में जाएंगे और उनका अगला कदम क्या होगा? 2025 के विधानसभा चुनाव में यह निर्णय बिहार की राजनीति को एक नया मोड़ दे सकता है.
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