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बगहा: बांस से कप-प्लेट के साथ चारपाई और बिछावन का निर्माण, प्रदूषण पर लगेगा अंकुश

बेतिया के बगहा में एक शख्स की इन दिनों पूरे शहर में चर्चा हो रही है. अमृतांशु ने बियाडा में एक फैक्ट्री स्थापित की है जिसमें बांस से ना सिर्फ कप-प्लेट बलकि चारपाई तक बनाया जाता है.

बेतिया
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Published : Apr 9, 2021, 5:24 PM IST

Updated : Apr 9, 2021, 8:05 PM IST

बेतिया: बांस का उपयोग सिर्फ अब कच्चे मकान और चारदीवारी बनाने तक सीमित नहीं रहा है. अब नए तकनीकों ने इसे एक नए उद्योग के रूप में स्थापित किया जा रहा है. बांस के बने कप, प्लेट, बोतल एक तरफ लोगों को आकर्षित कर रहे हैं. तो दूसरी ओर बांस के उद्योग से जुड़े लोगों की आमदनी भी बढ़ रही है. बढ़ते प्रदूषण को रोकने, खासकर प्लास्टिक वेस्ट मटेरियल को रोकने में बांस के बने ये सामान आज कारगर सिद्ध हो रहे हैं.

बांस की बन रही चारदीवारी
बांस की बन रही चारदीवारी

यह भी पढ़ें: बिहार में इथेनॉल पॉलिसी तो हो गई लांच लेकिन नई इकाई शुरू होने में लगेंगे 1 साल से ज्यादा वक्त

बेतिया के रामनगर के रहने वाले अमृतांशु ने उद्योग-धंधों को नया आयाम देने और इको फ्रेंडली वस्तुओं का निर्माण कर प्रदूषण पर अंकुश लगाने की नीयत से बांस उद्योग को विकसित किया है. इस बाबत उनका कहना है कि जिले में बांस की पैदावार ज्यादा होती है. लिहाजा उनकी सोच है कि इसके उपयोग से ऐसी सामग्रियों के निर्माण को बढ़ावा दिया जाए जिससे प्रदूषण न हो और उसका वेस्टेज पर्यावरण को क्षति न पहुंचाए.

अमृतांशु, बांस उद्यमी
अमृतांशु, बांस उद्यमी

फैक्ट्री में बन रहे हैं, कप, ग्लास और झाड़ू
कारोबारी अमृतांशु ने अपनी फैक्ट्री रामनगर इंडस्ट्रियल एरिया में लगायी है. जिसमें बांस से ग्रामीण और शहरी इलाकों के घरों में उपयोग किए जाने वाले वस्तुओं का बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहा है. ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए झाड़ू, फोल्डिंग सीढ़ी व स्ट्रेट सीढ़ी बनाए जा रहे हैं. वहीं, शहरी क्षेत्र के लिए बांस का ग्लास, जग, वाटर बोटल, कप समेत पेड़-पौधों के संरक्षण के लिए गैबीयन का निर्माण किया जा रहा है.

देखें रिपोर्ट

'बांस उद्योग से जुड़े कारोबार हमेशा से आदिवासी और दलित समाज के लोग करते आ रहे हैं. इनके पास हुनर है लेकिन तकनीक की कमी के अभाव में ये वृहद स्तर पर बांस से बने सामानों का उत्पादन नहीं कर पाते हैं. इसलिए तकनीक और उनके हुनर को एक साथ लाते हुए ये उद्योग स्थापित किया है. ताकि इन्हें रोजगार मिले और इको फ्रेंडली सामानों का उपयोग बढ़े'.- अमृतांशु, उद्यमी

त्रिपुरा में लिया है प्रशिक्षण
त्रिपुरा के बांस उद्योग से प्रशिक्षण लेकर आए अमृतांशु ने जरूरत के मुताबिक स्थानीय लोगों को ट्रेनिंग दिया और तकरीबन 30 लाख का मशीन लगाया है. अब इस मशीन से उन्होंने उत्पादन भी शुरू कर दिया है. लिहाजा स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार बाजार से प्लास्टिक के प्रयोग पर पाबंदी लगा रही है, ऐसे में बांस से बने यह इको फ्रेंडली उत्पाद प्लास्टिक का बेहतर विकल्प हो सकता है. साथी ही रोजगार मिलने के साथ-साथ बांस उद्योग से पर्यावरण को क्षति पहुंचने से बचाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें: मुजफ्फरपुर में खुलेगा मेगा फूड पार्क, 5000 लोगों को मिलेगा रोजगार- शाहनवाज हुसैन

यह भी पढ़ें: उद्योग के नाम पर जमीन लेकर दूसरे काम करने वालों पर होगी कड़ी कार्रवाई- गन्ना उद्योग मंत्री

बेतिया: बांस का उपयोग सिर्फ अब कच्चे मकान और चारदीवारी बनाने तक सीमित नहीं रहा है. अब नए तकनीकों ने इसे एक नए उद्योग के रूप में स्थापित किया जा रहा है. बांस के बने कप, प्लेट, बोतल एक तरफ लोगों को आकर्षित कर रहे हैं. तो दूसरी ओर बांस के उद्योग से जुड़े लोगों की आमदनी भी बढ़ रही है. बढ़ते प्रदूषण को रोकने, खासकर प्लास्टिक वेस्ट मटेरियल को रोकने में बांस के बने ये सामान आज कारगर सिद्ध हो रहे हैं.

बांस की बन रही चारदीवारी
बांस की बन रही चारदीवारी

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बेतिया के रामनगर के रहने वाले अमृतांशु ने उद्योग-धंधों को नया आयाम देने और इको फ्रेंडली वस्तुओं का निर्माण कर प्रदूषण पर अंकुश लगाने की नीयत से बांस उद्योग को विकसित किया है. इस बाबत उनका कहना है कि जिले में बांस की पैदावार ज्यादा होती है. लिहाजा उनकी सोच है कि इसके उपयोग से ऐसी सामग्रियों के निर्माण को बढ़ावा दिया जाए जिससे प्रदूषण न हो और उसका वेस्टेज पर्यावरण को क्षति न पहुंचाए.

अमृतांशु, बांस उद्यमी
अमृतांशु, बांस उद्यमी

फैक्ट्री में बन रहे हैं, कप, ग्लास और झाड़ू
कारोबारी अमृतांशु ने अपनी फैक्ट्री रामनगर इंडस्ट्रियल एरिया में लगायी है. जिसमें बांस से ग्रामीण और शहरी इलाकों के घरों में उपयोग किए जाने वाले वस्तुओं का बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहा है. ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए झाड़ू, फोल्डिंग सीढ़ी व स्ट्रेट सीढ़ी बनाए जा रहे हैं. वहीं, शहरी क्षेत्र के लिए बांस का ग्लास, जग, वाटर बोटल, कप समेत पेड़-पौधों के संरक्षण के लिए गैबीयन का निर्माण किया जा रहा है.

देखें रिपोर्ट

'बांस उद्योग से जुड़े कारोबार हमेशा से आदिवासी और दलित समाज के लोग करते आ रहे हैं. इनके पास हुनर है लेकिन तकनीक की कमी के अभाव में ये वृहद स्तर पर बांस से बने सामानों का उत्पादन नहीं कर पाते हैं. इसलिए तकनीक और उनके हुनर को एक साथ लाते हुए ये उद्योग स्थापित किया है. ताकि इन्हें रोजगार मिले और इको फ्रेंडली सामानों का उपयोग बढ़े'.- अमृतांशु, उद्यमी

त्रिपुरा में लिया है प्रशिक्षण
त्रिपुरा के बांस उद्योग से प्रशिक्षण लेकर आए अमृतांशु ने जरूरत के मुताबिक स्थानीय लोगों को ट्रेनिंग दिया और तकरीबन 30 लाख का मशीन लगाया है. अब इस मशीन से उन्होंने उत्पादन भी शुरू कर दिया है. लिहाजा स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार बाजार से प्लास्टिक के प्रयोग पर पाबंदी लगा रही है, ऐसे में बांस से बने यह इको फ्रेंडली उत्पाद प्लास्टिक का बेहतर विकल्प हो सकता है. साथी ही रोजगार मिलने के साथ-साथ बांस उद्योग से पर्यावरण को क्षति पहुंचने से बचाया जा सकता है.

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Last Updated : Apr 9, 2021, 8:05 PM IST
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