वैशाली: कहते हैं जल ही जीवन है लेकिन जब जल ही जहर बन जाए तो सोचिए क्या होगा. लेकिन अब शायद सोचने का समय भी निकलता जा रहा है. क्योंकि वैशाली जिले के गंडक और गंगा किनारे बसे गांव के लोग पानी के नाम पर स्वीट प्वाइजन पीने को मजबूर हैं. ऐसा हम नहीं बल्कि एक्सपर्ट व डॉक्टर हरिप्रसाद बतला रहे हैं. उनका कहना है कि जिले के कई इलाकों के पानी में ज्यादा मात्रा में आर्सेनिक पाया गया है. जिसके कारण लोग कई बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. हाल ही में महावीर कैंसर रिसर्च संस्थान (Mahavir Hospital Research Centre) ने एक शोध किया था जिसमें कुछ जिलों में पानी में आर्सेनिक की मात्रा अधिक बतायी गयी थी. इन जिलों में वैशाली का भी नाम था.
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पानी नहीं जहर पी रहे लोग: आर्सेनिक युक्त पानी (Arsenic content in water) के सेवन से चर्म रोग, चर्म कैंसर, फेफड़े, गुर्दे, रक्त विकार संबंधी रोगों होते हैं. इसके साथ ही हाइपोथेसिस के अलावा सीधे हार्ट अटैक को भी आमंत्रित करता है, जिससे इंसान की मौत हो सकती है. एक सर्वे के अनुसार बताया गया कि बिहार के 18 जिलों के जल में आर्सेनिक का ज़हर फैला हुआ है. एक अनुमान के मुताबिक बिहार के करीब एक करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी पी रहे हैं. कई इलाकों में तो आर्सेनिक की मात्रा 1000 पीपीबी से ज्यादा है. जो सामान्य से 20 गुना अधिक है. जबकि कई क्षेत्रों में अब तक आर्सेनिक युक्त पानी की जांच भी नहीं हुई है.
आर्सेनिक युक्त पानी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक: डॉक्टर बताते हैं कि जब पानी में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ती है तो मानव शरीर के लिए यह जहरीला हो जाता है. इसको चिकित्सकीय भाषा में आर्सेनिकोसिस कहते हैं. यह शरीर में उपलब्ध आवश्यक एंजाइम पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ता है. जिसकी वजह से शरीर के बहुत से अंग काम करना बंद कर देते हैं. अंत में इसकी वजह से रोगी की मौत हो जाती है. इस विषय में डॉक्टर हरिप्रसाद ने बताया कि इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन, एग्रीकल्चर में प्रयोग होने वाले जहर युक्त खाद्य, खेतों में जल्द से जल्द फसल तैयार किए जाने में प्रयोग होने वाले रसायन और नदियों के किनारे की गंदगी मुख्य रूप से इसके लिए जिम्मेदार है.
"आर्सेनिक युक्त पानी के दुष्प्रभावों से पूरे बॉडी में स्वेलिंग, त्वचा का लाल हो जाना, डायरिया और यहां तक कि हार्ट फेल्योर सहित कई बीमारियां हो सकती हैं. आर्सेनिक के कुप्रभाव का पता चलते ही तत्काल ही अस्पताल में जाकर इसका इलाज करवाएं और इसकी जांच भी करवाएं. जहां भी पानी का स्त्रोत है वहां आर्सेनिक की मात्रा की जांच होनी चाहिए. खासकर सरकार द्वारा चलाए जा रहे नल जल योजना में पानी को आर्सेनिक मुक्त बनाकर लोगों को सप्लाई करना चाहिए."- डॉ. हरिप्रसाद, चिकित्सक
बिहार में प्रचंड की गर्मी: गर्मी में इंसान को जब भी तेज प्यास लगती है वह जहां रहता है वहीं पानी पीकर तृप्त हो जाता है. लेकिन अगर यह तृप्त करने वाला पानी शरीर को बीमार बना रहा है तो यह चिंताजनक बात है. गर्मी में जलस्तर नीचे जाने लगता है,इसके कारण भी लोगों की परेशानी बढ़ जाती है. ऐसे में सरकार को निश्चित रूप से इस पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है. बता दें कि गंगा के किनारे बसे कई गांव ऐसे हैं जो आर्सेनिक के प्रभाव में हैं और गांव के लोग आज भी आर्सेनिक युक्त पानी पीने को मजबूर हैं. भले ही उनके घर नल का जल (Har Ghar Nal Ka Jal Yojana) पहुंच गया हो. सरकार ने कुछ जगहों पर प्लांट लगाने का निर्णय लिया था, लेकिन वह अब तक चालू नहीं हो सके हैं. कई जगहों पर तो आर्सेनिक के अलावा पानी में फ्लोराइड की मात्रा भी ज्यादा है. पानी के शुद्धिकरण के लिए प्लांट भी चालू नहीं हुए हैं.
मां का दूध बना जहर: नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत माना जाता है लेकिन प्रदेश के कई जिलों में अब मां का दूध पीने योग्य नहीं रह गया है. महावीर कैंसर रिसर्च संस्थान (Research of Mahavir Cancer Institute on mother milk) ने हाल ही में एक शोध किया है जिसमें गंगा के तटीय इलाकों वाले प्रदेश के 6 जिलों में मां के दूध में भारी मात्रा में आर्सेनिक (Arsenic found in mother milk in many districts of Bihar) पाए गए हैं. महावीर कैंसर संस्थान के शोध विभाग के प्रभारी प्रोफेसर अशोक कुमार घोष ने जानकारी दी कि प्रदेश के 6 जिलों बक्सर, भोजपुर, सारण, वैशाली, पटना और भागलपुर में ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं के दूध में भारी मात्रा में आर्सेनिक पाई गई है.
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