सिवान: रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2022) भाई बहन के पवित्र रिश्ते के प्रेम का प्रतीक माना जाता है लेकिन सिवान में रक्षाबंधन प्रेम के साथ ही आस्था और भक्ति का भी प्रतीक बना हुआ है. दरअसल महाराजगंज अनुमडंल मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूरी पर भीखा बांध (Bhikha Bandh siwan) के भैया बहनी गांव (Bhaiya bahani Village) में भाई बहन के प्यार और समर्पण की कहानी आज भी लोगों के दिलों को छू लेती है. यहां पिछले 500 सालों से एक भाई और बहन की पूजा की जाती है.
पढ़ें- क्या आप जानते हैं बिहार के किस गांव में होती है चमगादड़ की पूजा? ग्रामीण करते हैं 'बादुर' की रक्षा
धरती की गोद में समा गए थे भाई बहन: भाई बहन की प्यार की यह कहानी सदियों पुरानी है. आज भी जब इस गांव के लोग इतिहास के पन्नों को पलटते हैं तो भाई बहन की दास्तां और उनका प्रेम आंखों के सामने आ जाता है. लोगों का कहना है कि जिस जगह पर भाई बहन ने धरती मईया की गोद में समाधि ली थी वहां दो वट (बरगद) वृक्ष निकल आए. उनकी जड़ें कहां है किसी को नहीं पता. 12 बीघा में फैले इस वट वृक्षों को देख ऐसा लगता है जैसे दोनों एक दूसरे की रक्षा करते हों. रक्षाबंधन के दिन यहां भाई- बहनों का जमावड़ा लगता है. सावन पूर्णिमा के एक दिन पहले इनकी पूजा अर्चना की जाती है. यहां भैया बहनी मंदिर (Bhaiya bahani tample in Bhikha Bandh) भी है जहां दूर दूर से राखी में लोग पूजा करने आते हैं.
यह है कहानी: भैया-बहनी गांव का नाम भी उन दो भाई बहनों पर ही रखा गया है जिनकी आज सभी पूजा करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि करीब 500 साल पहले देश में मुगल शासक हुआ करते थे. उस समय एक भाई अपनी बहन को साथ लेकर भभुआ (कैमूर) से उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था. तभी जब इस गांव के समीप बहन की डोली पहुंची तो मुगल शासकों के सिपाहियों ने देखा कि डोली में बहुत ही सुंदर औरत बैठी हुई है. महिला की सुंदरता देख उनकी नियत खराब होने लगी.
सिपाहियों ने डोली को रुकवा दिया और देखा कि उस सुंदर महिला के साथ उसका भाई भी है. भाई ने सिपाहियों को बताया कि वह अपनी बहन को लेकर उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा है लेकिन सिपाही बहन की डोली को रोककर रखे हुए थे और आगे जाने नहीं दे रहे थे. बताया जाता है कि उस समय दोनों भाई बहन काफी डर गए और भाई को लगा कि अब बहन की इज्जत नहीं बचेगी. ऐसे में दोनों ने भगवान से प्रार्थना की. तभी जमीन फटी और दोनों उसमे समा गए.
"बहुत पुरानी मान्यता है. 500 सालों से हम इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. मुगलकाल में सिपाहियों के डर से भाई बहन धरती में समा गए थे. उसके बाद यहां दो पेड़ निकल आए. उस समय से इन पेड़ों की पूजा की जाती है."- स्थानीय
बरगद के दो पेड़ों को माना जाता है भाई-बहन: भाई बहन के जमीन के अंदर समा जाने की बात पूरे गांव में फैल गई जिसके बाद हिंदुओं ने वहां मन्दिर की नींव रखी. कुछ दिन बाद वहां दो बरगद का पेड़ निकल आए. देखते ही देखते पेड़ ने विशाल रूप ले लिया. तभी से यहां भाई बहन की पूजा होती है. गांव का नाम भी उसी वक़्त भैया - बहनी गांव रखा गया जो आज भी मौजूद है.
"पलटन के भय से भाई बहन ने भगवान से प्रार्थना की. उसके बाद धरती फटी और भाई बहन उसमें समा गए. रक्षाबंधन में लोग यहां आकर बरगद के पेड़ में राखी बांधते हैं. मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है. यहां पूर्णिमा को एक मेला भी लगता है. भैया बहनी मंदिर में आज भी भाई-बहन की निशानी मौजूद है. लोग पूजा अर्चना करने दूर-दूर से आते हैं." - स्थानीय
रक्षाबंधन पर पेड़ को बांधी जाती है राखी: स्थानीय लोगों का कहना है कि जब दोनों भाई- बहन की प्रार्थना से धरती फटी और वह उसमें दोनों समा गए तो कुछ दिन बाद वहां बरगद का पेड़ फलने लगा. उसके बाद गांव वालों ने उसी जगह एक मन्दिर का निर्माण कराया और उसमें उन दोनों भाई - बहन की निशानी के तौर पर एक मिट्टी रख कर उसकी पूजा करने लगे. जिसके बाद उस मंदिर का नाम भैया- बहनी रखा गया. इस निशानी को देखने आज भी लोग हजारों लाखो की संख्या में दूर दूर से आते हैं. बताया जाता है कि सिवान के भाई बहन की इस अनूठी कहानी पर फिल्म भी बन रही है. रक्षा बंधन के दिन यहां पेड़ में भी राखी बांधी जाती है और भाई-बहन की बनी स्मृति पर राखी चढ़ाने के बाद भाइयों की कलाई में बहनें राखी बांधते हैं. ये परम्परा आज भी कायम है.