सीतामढ़ीः जिले के किसानों को कृषि विभाग ने अनुदानित दर पर गेहूं का बीज उपलब्ध कराया था. लेकिन वह बीज किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. जिन किसानों ने बिहार राज्य बीज निगम द्वारा मुहैया कराये गये गेहूं के बीज को अपने खेतों में लगाया वह बीज अंकुरित नहीं हुआ. जिसके कारण किसान अब फिर से खेतों की जुताई कराकर गेहूं की फसल बोने को मजबूर हैं.
दोबारा बुवाई करने को किसान मजबूर
किसानों का आरोप है कि कृषि विभाग की पहल पर अनुदानित बीज के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था. जिसके बाद 730 रुपये में 40 किलो गेहूं का बीज मिला था. बिहार राज्य बीज निगम से मिले बीज को बोया गया लेकिन वह अंकुरित नहीं हुआ. अब दोबारा खर्च कर फिर से गेहूं की बुवाई करनी पड़ रही है.
प्राकृतिक आपदा के कारण विगत अप्रैल माह में गेहूं की फसल बर्बाद हो गई. उसके बाद भीषण बाढ़ और कीट के प्रकोप के कारण धान की फसल नष्ट हो गयी. कर्ज लेकर हमने गेहूं कि बुवाई की लेकिन अनुदानित बीज ने सभी मेहनत और अरमानों पर पानी फेर दिया. अब हमारे सामने भूखे मरने और आत्महत्या करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है.
पिछले वर्ष भी खराब थी गुणवत्ता
इतना ही नहीं कृषि विभाग से जुड़े सूत्रों का बताना है कि अनुदानित बीज के अलावा मुख्यमंत्री तीव्र बीज योजना के तहत दिया जाने वाले बीज की गुणवत्ता भी बेहद खराब थी. जिस कारण उस बीज के वितरण पर रोक लगा दी गई. इसके अलावा बिहार राज्य बीज निगम द्वारा विगत वर्षों में जो बीज मुहैया कराई गई थी उसमें भी अंकुरण नहीं होने की शिकायत प्राप्त हुई थी. इसके बावजूद इस समस्या का समाधान नहीं किया गया. जिसका नतीजा है कि इस बार भी किसानों को भारी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है.
किसानों की शिकायत है जायज
जिले के किसानों को बिहार राज्य बीज निगम द्वारा अनुदानित गेहूं बीज की आपूर्ति की गई थी. जिसमें 3086 और 2967 प्रभेद शामिल था. बीज वितरण करने वाले डीलर का आरोप है कि प्रथम फेज में 3086 बीज भेजी गई थी, उसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं थी. उस बीज को जिन किसानों ने अपनी खेतों में डाला जिसमें अंकुरण नहीं होने की शिकायत प्राप्त हुई है.
किसानों की शिकायत के बाद कृषि विभाग के कृषि सलाहकार किसानों के खेतों तक पहुंचकर इस शिकायत की जांच करने में जुटे हुए हैं. कृषि सलाहकार और प्रखंड कृषि पदाधिकारी का बताना है कि किसानों की शिकायत जायज है. किसानों की शिकायत पर जांच कराई जा रही है. जिसकी रिपोर्ट तैयार कर कृषि पदाधिकारी को भेजी जाएगी. उसके बाद किसानों को हुए नुकसान की भरपाई की दिशा में पहल की जाएगी.