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जम्मू कश्मीर में शांति की पहल के लिए भी याद किए जायेंगे डॉ. मनमोहन सिंह - FORMER PM MANMOHAN SINGH

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पद पर रहने के दौरान कश्मीर के राजनीतिक मामलों को भी कुशलता से संभाला. बता रहे हैं मीर फरहत...

FORMER PM MANMOHAN SINGH
डॉ. मनमोहन सिंह की फाइल फोटो. (PTI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 17 hours ago

श्रीनगर: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में नई दिल्ली के एम्स में निधन हो गया. भारत के प्रधानमंत्री के रूप में, कश्मीर से उनके जुड़ाव और कश्मीर संघर्ष के समाधान के लिए शांति और संवाद की पहल को कश्मीरी राजनेताओं के बीच याद किया जाएगा. उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी याद ताजा रहेगी. उनकी निधन पर शोक व्यक्त करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि दिवंगत प्रधानमंत्री ने शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और जम्मू-कश्मीर में विकास के एक नए युग की शुरुआत करने के लिए अथक प्रयास किया.

उन्होंने डॉ. सिंह से अपनी मुलाकात को याद करते हुए कहा कि मुझे डॉ. मनमोहन सिंह से मिलने का सौभाग्य मिला. मुझे यकीन है कि वे अबतक मैं जितने लोगों से मिली हुं उनमें सबसे विनम्र और सौम्य थे. यह आज के राजनेताओं में एक अत्यंत दुर्लभ गुण है. प्रधानमंत्री के रूप में अपने दोनों कार्यकाल के दौरान भी उनकी विनम्रता और दयालुता स्पष्ट थी. वे व्यक्तिगत रूप से कॉल का जवाब देते थे.

जम्मू और कश्मीर में शांति स्थापित करने के उनके प्रयासों को याद करते हुए पूर्व सीएम ने कहा कि चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, डॉ. सिंह ने शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और जम्मू-कश्मीर में विकास के एक नए युग की शुरुआत करने के लिए अथक प्रयास किया. उन्होंने कहा अपने दिवंगत पिता मुफ्ती सईद और मनमोहन सिंह की तस्वीर पोस्ट की. इस तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा कि वह कम बोलने वाले व्यक्ति थे, जिनकी कल्याणकारी योजनाओं ने जाति, पंथ और धर्म से ऊपर उठकर लाखों भारतीयों को राहत पहुंचाई. सईद 2002-2005 के बीच जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. उस समय राज्य में कांग्रेस और पीडीपी के गठबंधन की सरकार थी.

अपने पहले कार्यकाल के दौरान अक्टूबर 2008 में दिवंगत मनमोहन सिंह द्वारा उधमपुर-बारामुल्ला रेलवे का उद्घाटन किया गया था, जो अब पूरा हो रहा है और कश्मीर को नई दिल्ली से जोड़ेगा. डॉ. सिंह ने श्रीनगर के पास नौगाम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का उद्घाटन किया था. बाद में 2011 में पीएम के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ बनिहाल और श्रीनगर के बीच ट्रेन सेवा का उद्घाटन किया. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दिवंगत सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनसे बातचीत के दौरान बहुत कुछ सीखा है.

उमर ने एक्स पर लिखा कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ. मुझे उनसे बातचीत करने और उनसे सीखने के कई अवसर मिले. वह वास्तव में एक बौद्धिक दिग्गज और एक कुशल अर्थशास्त्री तो थे ही सबसे बढ़कर वह एक सज्जन व्यक्ति थे... उनके निधन से भारत ने एक महान सपूत खो दिया है. रेस्ट इन पीस सर... हर चीज के लिए धन्यवाद.

जम्मू-कश्मीर के लिए दिवंगत प्रधानमंत्री द्वारा किए गए विकास कार्यों के अलावा, डॉ. सिंह ने कश्मीर पर पाकिस्तान और घाटी के अलगाववादी नेताओं के साथ शांति और संवाद की पहल का इतिहास भी छोड़ा है. उन्हें कश्मीर पर मनमोहन-मुशर्रफ फॉर्मूले का निर्माता माना जाता है, जिसमें पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह दिवंगत परवेज मुशर्रफ के साथ चार सूत्रीय फॉर्मूला तैयार किया गया था.

भारत के दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में तैयार किए गए इस फॉर्मूले को 2004 में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद आगे बढ़ाया गया. इस फॉर्मूले में धीरे-धीरे सैन्यीकरण को खत्म करने, भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा को लोगों की आवाजाही और व्यापार के लिए आसान बनाने, नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को मजबूत बनाने, जम्मू और कश्मीर में भारत, पाकिस्तान और कश्मीर को शामिल करते हुए एक संयुक्त पर्यवेक्षण तंत्र बनाने की बात कही गई थी.

डॉ. सिंह ने अप्रैल 2005 में ऐतिहासिक श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा का भी उद्घाटन किया था. यह बस सेवा भारत और पाकिस्तान तथा कश्मीर के बीच विश्वास बहाली का उपाय थी. और यह सेवा लोगों की आवाजाही के लिए सीमाओं को आसान बनाने की पहल के अनुरूप थी. सिंह ने श्रीनगर में बस को हरी झंडी दिखाते हुए कहा था कि यह शांति की लंबी राह पर पहला कदम है.

चार सूत्री फॉर्मूले को मूर्त रूप देने के लिए डॉ. सिंह ने एक विशेष दूत सतिंदर लांबा को नियुक्त किया था, जिन्होंने अपने पाकिस्तानी समकक्ष तारिक अजीज के साथ गुप्त बैठकें की थीं. ये बैठकें एक रूपरेखा समझौते के लिए आधार तैयार करने के लिए आयोजित की गई थीं, जिस पर सिंह को तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ हस्ताक्षर करने की उम्मीद थी.

2006 में, डॉ. सिंह ने कश्मीर पर गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत की. सिंह ने अप्रैल 2006 में श्रीनगर में दूसरे गोलमेज सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा था कि जम्मू और कश्मीर के प्रत्येक निवासी को, चाहे वह किसी भी धर्म और क्षेत्र का हो, उत्पीड़न, गरीबी और भय से मुक्त सम्मान का जीवन जीना चाहिए. गोलमेज सम्मेलन का अलगाववादी समूहों ने बहिष्कार किया था, लेकिन मुख्यधारा के राजनीतिक नेताओं ने इसमें भाग लिया था.

सितंबर 2005 में, डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल गनी भट, मौलाना अब्बास अंसारी, फजल हक कुरैशी और बिलाल लोन सहित कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के साथ बातचीत की. स्वर्गीय सैयद अली गिलानी, जिन्हें कट्टरपंथी हुर्रियत नेता के रूप में जाना जाता था, ने इन बैठकों का बहिष्कार किया था. 2006 में जेल में बंद जेकेएलएफ अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने भी मनमोहन सिंह से बातचीत की थी.

पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज ने अपनी किताब कश्मीर-इतिहास की झलक और संघर्ष की कहानी में लिखा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं के बीच बैठक के लिए प्रयास किए थे. सोज लिखते हैं कि एजेंसियां हुर्रियत नेतृत्व के साथ इस तरह की बैठक के सख्त खिलाफ थीं. लेकिन प्रधानमंत्री ने अपना मन बना लिया था.

अंत में, तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन ने प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव कुट्टी नायर को दिन के समय साउथ ब्लॉक में बैठक तय करने के लिए राजी किया. लेकिन मैंने जोर दिया कि बैठक उनके आवास (7 रेसकोर्स रोड) पर होनी चाहिए. प्रधानमंत्री सहमत हो गए और आखिरकार 5 सितंबर 2005 को ढाई घंटे की बैठक हुई. उन्होंने आगे लिखा कि दुर्भाग्य से, प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी, मुख्य रूप से इसलिए क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों का रवैया इसको लेकर सकारात्मक नहीं था.

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उन्होंने डॉ. सिंह से अपनी मुलाकात को याद करते हुए कहा कि मुझे डॉ. मनमोहन सिंह से मिलने का सौभाग्य मिला. मुझे यकीन है कि वे अबतक मैं जितने लोगों से मिली हुं उनमें सबसे विनम्र और सौम्य थे. यह आज के राजनेताओं में एक अत्यंत दुर्लभ गुण है. प्रधानमंत्री के रूप में अपने दोनों कार्यकाल के दौरान भी उनकी विनम्रता और दयालुता स्पष्ट थी. वे व्यक्तिगत रूप से कॉल का जवाब देते थे.

जम्मू और कश्मीर में शांति स्थापित करने के उनके प्रयासों को याद करते हुए पूर्व सीएम ने कहा कि चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, डॉ. सिंह ने शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और जम्मू-कश्मीर में विकास के एक नए युग की शुरुआत करने के लिए अथक प्रयास किया. उन्होंने कहा अपने दिवंगत पिता मुफ्ती सईद और मनमोहन सिंह की तस्वीर पोस्ट की. इस तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा कि वह कम बोलने वाले व्यक्ति थे, जिनकी कल्याणकारी योजनाओं ने जाति, पंथ और धर्म से ऊपर उठकर लाखों भारतीयों को राहत पहुंचाई. सईद 2002-2005 के बीच जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. उस समय राज्य में कांग्रेस और पीडीपी के गठबंधन की सरकार थी.

अपने पहले कार्यकाल के दौरान अक्टूबर 2008 में दिवंगत मनमोहन सिंह द्वारा उधमपुर-बारामुल्ला रेलवे का उद्घाटन किया गया था, जो अब पूरा हो रहा है और कश्मीर को नई दिल्ली से जोड़ेगा. डॉ. सिंह ने श्रीनगर के पास नौगाम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का उद्घाटन किया था. बाद में 2011 में पीएम के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ बनिहाल और श्रीनगर के बीच ट्रेन सेवा का उद्घाटन किया. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दिवंगत सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनसे बातचीत के दौरान बहुत कुछ सीखा है.

उमर ने एक्स पर लिखा कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ. मुझे उनसे बातचीत करने और उनसे सीखने के कई अवसर मिले. वह वास्तव में एक बौद्धिक दिग्गज और एक कुशल अर्थशास्त्री तो थे ही सबसे बढ़कर वह एक सज्जन व्यक्ति थे... उनके निधन से भारत ने एक महान सपूत खो दिया है. रेस्ट इन पीस सर... हर चीज के लिए धन्यवाद.

जम्मू-कश्मीर के लिए दिवंगत प्रधानमंत्री द्वारा किए गए विकास कार्यों के अलावा, डॉ. सिंह ने कश्मीर पर पाकिस्तान और घाटी के अलगाववादी नेताओं के साथ शांति और संवाद की पहल का इतिहास भी छोड़ा है. उन्हें कश्मीर पर मनमोहन-मुशर्रफ फॉर्मूले का निर्माता माना जाता है, जिसमें पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह दिवंगत परवेज मुशर्रफ के साथ चार सूत्रीय फॉर्मूला तैयार किया गया था.

भारत के दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में तैयार किए गए इस फॉर्मूले को 2004 में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद आगे बढ़ाया गया. इस फॉर्मूले में धीरे-धीरे सैन्यीकरण को खत्म करने, भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा को लोगों की आवाजाही और व्यापार के लिए आसान बनाने, नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को मजबूत बनाने, जम्मू और कश्मीर में भारत, पाकिस्तान और कश्मीर को शामिल करते हुए एक संयुक्त पर्यवेक्षण तंत्र बनाने की बात कही गई थी.

डॉ. सिंह ने अप्रैल 2005 में ऐतिहासिक श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा का भी उद्घाटन किया था. यह बस सेवा भारत और पाकिस्तान तथा कश्मीर के बीच विश्वास बहाली का उपाय थी. और यह सेवा लोगों की आवाजाही के लिए सीमाओं को आसान बनाने की पहल के अनुरूप थी. सिंह ने श्रीनगर में बस को हरी झंडी दिखाते हुए कहा था कि यह शांति की लंबी राह पर पहला कदम है.

चार सूत्री फॉर्मूले को मूर्त रूप देने के लिए डॉ. सिंह ने एक विशेष दूत सतिंदर लांबा को नियुक्त किया था, जिन्होंने अपने पाकिस्तानी समकक्ष तारिक अजीज के साथ गुप्त बैठकें की थीं. ये बैठकें एक रूपरेखा समझौते के लिए आधार तैयार करने के लिए आयोजित की गई थीं, जिस पर सिंह को तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ हस्ताक्षर करने की उम्मीद थी.

2006 में, डॉ. सिंह ने कश्मीर पर गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत की. सिंह ने अप्रैल 2006 में श्रीनगर में दूसरे गोलमेज सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा था कि जम्मू और कश्मीर के प्रत्येक निवासी को, चाहे वह किसी भी धर्म और क्षेत्र का हो, उत्पीड़न, गरीबी और भय से मुक्त सम्मान का जीवन जीना चाहिए. गोलमेज सम्मेलन का अलगाववादी समूहों ने बहिष्कार किया था, लेकिन मुख्यधारा के राजनीतिक नेताओं ने इसमें भाग लिया था.

सितंबर 2005 में, डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल गनी भट, मौलाना अब्बास अंसारी, फजल हक कुरैशी और बिलाल लोन सहित कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के साथ बातचीत की. स्वर्गीय सैयद अली गिलानी, जिन्हें कट्टरपंथी हुर्रियत नेता के रूप में जाना जाता था, ने इन बैठकों का बहिष्कार किया था. 2006 में जेल में बंद जेकेएलएफ अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने भी मनमोहन सिंह से बातचीत की थी.

पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज ने अपनी किताब कश्मीर-इतिहास की झलक और संघर्ष की कहानी में लिखा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं के बीच बैठक के लिए प्रयास किए थे. सोज लिखते हैं कि एजेंसियां हुर्रियत नेतृत्व के साथ इस तरह की बैठक के सख्त खिलाफ थीं. लेकिन प्रधानमंत्री ने अपना मन बना लिया था.

अंत में, तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन ने प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव कुट्टी नायर को दिन के समय साउथ ब्लॉक में बैठक तय करने के लिए राजी किया. लेकिन मैंने जोर दिया कि बैठक उनके आवास (7 रेसकोर्स रोड) पर होनी चाहिए. प्रधानमंत्री सहमत हो गए और आखिरकार 5 सितंबर 2005 को ढाई घंटे की बैठक हुई. उन्होंने आगे लिखा कि दुर्भाग्य से, प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी, मुख्य रूप से इसलिए क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों का रवैया इसको लेकर सकारात्मक नहीं था.

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