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सीतामढ़ी: यहां आज भी कायम है बलि-प्रथा, दूर-दराज से आए भक्तों का भगत करते हैं इलाज

नवरात्रि के नौवें दिन सीतामढ़ी जिले के कई गांवों में आज भी बलि-प्रथा कायम है. जिले में बलि चढ़ाने दूसरे प्रदेशों समेत विदेशों से भी लोग यहां पहुंचते हैं.

भक्तों का भगत करते हैं इलाज
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Published : Oct 7, 2019, 7:52 PM IST

Updated : Oct 7, 2019, 8:43 PM IST

सीतामढ़ी: जिले में महानवमी के अवसर पर आज भी बलि देने की प्रथा कायम है. सोमवार भी जिले के कई गावों में सबसे अधिक सौली गांव में पशुओं की बलि दी गई. जिले के कई गांवों जैसे मधकौल, सिरसिया, माचि, भंडारी, रीगा, सोनबरसा सहित अन्य प्रखंडों में भी देवी-देवताओं के सामने पशुओं की बलि दी गई. सबसे ज्यादा जिले के सौली गांव में पशुओं की बलि चढ़ाई गई.

लंबे समय से चली आ रही परंपरा
स्थानीय लोगों का कहना है कि गांव में बांध किनारे एक लंबे वक्त से यह परंपरा चलती आ रही है. पहले साल करीब 35 पशुओं की बलि दी गई थी. दूसरे साल यह संख्या बढ़कर 45 हो गई. तीसरे और चौथे साल में लगभग 80 और 150 बकरों की बलि दी गई.

पेश है रिपोर्ट

'मां की कृपा से दूर हुई विघ्न-बाधा'
बलि चढ़ाने पहुंचे श्रद्धालु का कहना है कि कई तरह की विघ्न-बाधाओं से पीड़ित रहने के बाद जब यहां पहुंचे तो मां काली की कृपा से ठीक हो गए. उनके घर में खुशहाली और शांति लौट आई. इसके लिए उन्होंने मन्नत मांगी थी और अब जब सबकुछ ठीक हो गया है, तो मां को धन्यवाद देने आए हैं. जिले में महानवमी की तिथि पर बलि चढ़ाने नेपाल समेत देश के अन्य राज्यों और जिलों से हर साल भारी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं.

सीतामढ़ी: जिले में महानवमी के अवसर पर आज भी बलि देने की प्रथा कायम है. सोमवार भी जिले के कई गावों में सबसे अधिक सौली गांव में पशुओं की बलि दी गई. जिले के कई गांवों जैसे मधकौल, सिरसिया, माचि, भंडारी, रीगा, सोनबरसा सहित अन्य प्रखंडों में भी देवी-देवताओं के सामने पशुओं की बलि दी गई. सबसे ज्यादा जिले के सौली गांव में पशुओं की बलि चढ़ाई गई.

लंबे समय से चली आ रही परंपरा
स्थानीय लोगों का कहना है कि गांव में बांध किनारे एक लंबे वक्त से यह परंपरा चलती आ रही है. पहले साल करीब 35 पशुओं की बलि दी गई थी. दूसरे साल यह संख्या बढ़कर 45 हो गई. तीसरे और चौथे साल में लगभग 80 और 150 बकरों की बलि दी गई.

पेश है रिपोर्ट

'मां की कृपा से दूर हुई विघ्न-बाधा'
बलि चढ़ाने पहुंचे श्रद्धालु का कहना है कि कई तरह की विघ्न-बाधाओं से पीड़ित रहने के बाद जब यहां पहुंचे तो मां काली की कृपा से ठीक हो गए. उनके घर में खुशहाली और शांति लौट आई. इसके लिए उन्होंने मन्नत मांगी थी और अब जब सबकुछ ठीक हो गया है, तो मां को धन्यवाद देने आए हैं. जिले में महानवमी की तिथि पर बलि चढ़ाने नेपाल समेत देश के अन्य राज्यों और जिलों से हर साल भारी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं.

Intro:जिले में महा नवमी के अवसर पर जगह-जगह अभी जारी है बलि देने की प्रथा। सबसे अधिक सौली गांव में पशुओं की दी गई बलि। Body: जिले में नवरात्रि के महा नवमी के अवसर पर जगह-जगह देवी-देवताओं के स्थान पर बलि देने की प्रथा आज भी कायम है। जिले के कई गांव मधकौल, सिरसिया, माचि, भंडारी, रीगा, रुनीसैदपुर, सुरसंड, सोनबरसा सहित अन्य प्रखंडों में भी पशुओं की बलि देवी देवताओं के सामने दी गई। वहीं पूजन के दौरान भारी मात्रा में प्रसाद भी चढ़ाए गए। लेकिन सबसे अधिक संख्या में पशुओं की बलि बेलसंड अनुमंडल के सौली गांव में दी गई। जो एक रिकॉर्ड रहा। स्थानीय लोगों का बताना है कि गांव में बांध किनारे 4 वर्षों से यह परंपरा चलती आ रही है। प्रथम वर्ष करीब 35 पशुओं की बलि दी गई थी। दूसरे वर्ष यह संख्या बढ़कर 45 हो गई। और तृतीय वर्ष उसकी संख्या बढ़कर करीब 80 से अधिक हो गी थी। और इस बार यहां करीब डेढ़ सौ बकरों की बलि दी गई। यहां बलि दिलवाने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का बताना है कि कई प्रकार के विघ्न बाधाओं से पीड़ित रहने के बाद जब उदय पासवान युवा भगत के यहां पहुंचे तो काली और मीरा मां की कृपा से ठीक हो गए। और उनके घरों में खुशहाली और शांति बहाल हो गई। इसलिए उन्होंने मन्नत माना था। और इसी के लिए आय है। महा नवमी को बली दिलवाने के लिए नेपाल अन्य प्रदेशों और जिले से लोग भारी संख्या में यहां आज के दिन आते हैं। जिसमें महिलाओं की संख्या सबसे अधिक देखी गई।
बाइट 1. मोतिहारी जिले से बली दिलवाने के लिए श्रद्धालु।
बाइट 2. उदय पासवान। भगत खुला बदन।
बाइट 3. मुकिनदर पासवान बली चढ़ाने वाला युवक लाल गंजी में।
पी टू सी 4
विजुअल 5,6,7,8,9,10Conclusion:पी टू सी :__राहुल देव सोलंकी। सीतामढ़ी।
Last Updated : Oct 7, 2019, 8:43 PM IST
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