सीतामढ़ी: आजादी के 72 साल बाद भी देश के हजारों घुमंतू और अर्ध घुमंतू जाति समुदाय के लोग अपमान भरा जीवन जीने को विवश है. आजाद भारत में इनके लिये ना तो पुनर्वास की व्यवस्था की गई, ना ही पहचान के लिये कोई आधार दिया गया है. इस समुदाय के हजारों परिवार के लोग देश के अलग-अलग प्रदेशों में अपने परिवार का भरण पोषण करने को मजबूर है. बता दें कि इस समुदाय के लड़के और लड़कियां आज भी निरक्षर है. इसके चलते वह अपना हक और अधिकार नहीं जानते. यह समुदाय अपने ही देश में सभी सरकारी योजनाओं से अनजान है.
सरकार ने की थी कई घोषणाएं
देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले इस समुदाय की मोगिया, नट, खानाबदोश, आदिवासी, बहेलिया सहित अन्य जाति शामिल है. लोकसभा चुनाव के पहले अंतरिम बजट के दौरान सरकार ने कई घोषणाएं की थी. जिसमें रेल मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में बजट पेश करने के दौरान उपेक्षित घुमंतू अर्ध घुमंतू जातियों/ जनजातियों के कल्याण और विकास के लिए भी की थी.
'घुमंतू समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा'
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर कल्याण विकास बोर्ड का गठन करेगी. जो देशभर के घुमंतू और अर्ध घुमंतू समुदाय के लिए काम करेगी. इस बोर्ड की मुख्य जिम्मेदारी कल्याण और विकास योजनाओं की अनुशंसा करना और क्रियान्वित करना होगा. उन्होंने कहा था कि सरकार सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत एक कल्याण विकास बोर्ड का गठन किया जायेगा. जिसका उद्देश्य गैर अधिसूचित घुमंतू अर्ध घुमंतू समुदाय के कल्याण और विकास कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना होगा. साथ ही उन्होंने कहा था कि सरकार देश के सबसे वंचित वर्ग तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है. इसमें गैर अधिसूचित घुमंतू और अर्ध घुमंतू समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.
घूम-घूम कर जीवन जीने को विवश
इन समुदाय के लोगों तक विकास और कल्याण कार्यक्रम नहीं पहुंच पा रहे हैं. यह निरंतर पीछे छूटते जा रहे हैं. वहीं, अंतरिम बजट की घोषणा इस समुदाय से कोसों दूर है. घुमंतू समुदाय के सदस्य ने बताया कि इनके पास किसी भी तरह की कोई सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं है. दो वक्त की रोटी के लिये भीख मागना पड़ता है. घुमंतू समुदाय के लोग राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र से छोड़कर बिहार में अपना जीवन जीने को विवश है. वहीं, इस समुदाय के लोगों के लिए ना ही रहने के लिये जगह है. ना ही पहनने के लिये कपड़े. इनके पास ना तो वोटर कार्ड है, ना आधार कार्ड और ना ही राशन कार्ड है. इसलिए यह समुदाय आज भी आजाद भारत में गुलाम बने हुए हैं.