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शेखपुरा: मतदाता जागरुकता अभियान बेअसर, रोजगार की तलाश में हजारों कर रहे पलायन - शेखपुरा

जिले में चुनाव को लेकर प्रशासनिक स्तर पर चलाए जा रहे जागरूकता अभियान बेअसर दिख रहा है. रोटी-रोजगार के चक्कर में इन दिनों जिले के विभिन्न इलाकों से हर सप्ताह 5 से 10 हजार मजदूर पलायन कर रहे हैं.

Sheikhpura
शेखपुरा
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Published : Oct 15, 2020, 10:44 PM IST

शेखपुरा: जिले में चुनाव को लेकर प्रशासनिक स्तर पर चलाए जा रहे जागरूकता अभियान का कोई असर नहीं पड़ रहा है. रोटी-रोजगार के चक्कर में इन दिनों जिले के विभिन्न इलाकों से हर सप्ताह 5 से 10 हजार मजदूर पलायन कर रहे हैं. लॉकडाउन में बेरोजगार हुए लोगों को प्रशासन द्वारा गांव में कोई रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया. जिसके कारण महज एक माह में ही जिले के विभिन्न प्रखंडों के लगभग 50 हज़ार से अधिक मजदूर वोट डालने से इंकार करते हुए वापस दूसरे प्रदेश चले गए हैं.

पलायन रोकने के लिए न तो जिला प्रशासन स्तर से कोई ठोस कदम उठाया जा रहा है और न ही मतदाता इसको समझने के लिए तैयार हो रहे हैं. प्रशासन के सामने से ही दूसरे प्रदेशों की बसें रोज गुजरती है. हर दिन दूसरे प्रदेश जाने वाली बसों में काफी भीड़ देखी जा रही है. मजदूरों का कहना है कि वोट देकर क्या करेंगे, पहले रोटी का जुगाड़ जरूरी है. भेड़-बकरियों की तरह बसों में ठूंस-ठूंसकर भेजने से कोरोना संक्रमण बढ़ने का खतरा भी बना रहता है. लेकिन इससे न तो मजदूर, एजेंट, चालक को और न ही पुलिस प्रशासन को कोई मतलब है. यही कारण है कि प्रतिदिन बसों में सीट से डेढ़ गुणा ज्यादा मजदूर किसी तरह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, केरल आदि राज्यों की तरफ पलायन कर रहे हैं.

कागज और दीवारों तक सिमटा स्लोगन
वोटरों को जागरूक करने के लिए व्यापक पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन इसका असर कागजों और दीवारों पर लिखे नारे तक ही सीमित है. सूखी रोटी खाएंगे, मतदान को जाएंगे. पहले मतदान फिर जलपान जैसे कई प्रकार के स्लोगन, रंगोली प्रतियोगिता, चित्रकारी, मेहंदी सहित विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है. जिले में मतदाता जागरूकता के लिए कई तरह के रचनात्मक कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं. लेकिन इन कार्यक्रमों का गरीब मजदूरों पर कोई असर नहीं पड़ता दिख रहा है.

भूख की सताती है चिंता
बस पर बैठे मुकेश मांझी ने बताया कि बहन की शादी के लिए उसने 10 प्रतिशत ब्याज पर महाजन से पैसा लिया है. महाजन का कर्ज काफी बढ़ गया है. यहां पर रोजगार नहीं मिल रहा है. बाहर जाकर कुछ पैसा कमाएंगे तब महाजन का कर्ज खत्म होगा. उनका कहना है कि वोट डालने से क्या होगा. शत्रुघ्न मांझी ने बताया कि गांव में कोई काम नहीं मिलता है. पिछली बार वोट दिया था. लेकिन कुछ नहीं मिला. लोग झूठ बोलते हैं, इसीलिए अब वे कभी वोट नहीं डालेंगे. मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार को पालेंगे.

शेखपुरा: जिले में चुनाव को लेकर प्रशासनिक स्तर पर चलाए जा रहे जागरूकता अभियान का कोई असर नहीं पड़ रहा है. रोटी-रोजगार के चक्कर में इन दिनों जिले के विभिन्न इलाकों से हर सप्ताह 5 से 10 हजार मजदूर पलायन कर रहे हैं. लॉकडाउन में बेरोजगार हुए लोगों को प्रशासन द्वारा गांव में कोई रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया. जिसके कारण महज एक माह में ही जिले के विभिन्न प्रखंडों के लगभग 50 हज़ार से अधिक मजदूर वोट डालने से इंकार करते हुए वापस दूसरे प्रदेश चले गए हैं.

पलायन रोकने के लिए न तो जिला प्रशासन स्तर से कोई ठोस कदम उठाया जा रहा है और न ही मतदाता इसको समझने के लिए तैयार हो रहे हैं. प्रशासन के सामने से ही दूसरे प्रदेशों की बसें रोज गुजरती है. हर दिन दूसरे प्रदेश जाने वाली बसों में काफी भीड़ देखी जा रही है. मजदूरों का कहना है कि वोट देकर क्या करेंगे, पहले रोटी का जुगाड़ जरूरी है. भेड़-बकरियों की तरह बसों में ठूंस-ठूंसकर भेजने से कोरोना संक्रमण बढ़ने का खतरा भी बना रहता है. लेकिन इससे न तो मजदूर, एजेंट, चालक को और न ही पुलिस प्रशासन को कोई मतलब है. यही कारण है कि प्रतिदिन बसों में सीट से डेढ़ गुणा ज्यादा मजदूर किसी तरह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, केरल आदि राज्यों की तरफ पलायन कर रहे हैं.

कागज और दीवारों तक सिमटा स्लोगन
वोटरों को जागरूक करने के लिए व्यापक पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन इसका असर कागजों और दीवारों पर लिखे नारे तक ही सीमित है. सूखी रोटी खाएंगे, मतदान को जाएंगे. पहले मतदान फिर जलपान जैसे कई प्रकार के स्लोगन, रंगोली प्रतियोगिता, चित्रकारी, मेहंदी सहित विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है. जिले में मतदाता जागरूकता के लिए कई तरह के रचनात्मक कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं. लेकिन इन कार्यक्रमों का गरीब मजदूरों पर कोई असर नहीं पड़ता दिख रहा है.

भूख की सताती है चिंता
बस पर बैठे मुकेश मांझी ने बताया कि बहन की शादी के लिए उसने 10 प्रतिशत ब्याज पर महाजन से पैसा लिया है. महाजन का कर्ज काफी बढ़ गया है. यहां पर रोजगार नहीं मिल रहा है. बाहर जाकर कुछ पैसा कमाएंगे तब महाजन का कर्ज खत्म होगा. उनका कहना है कि वोट डालने से क्या होगा. शत्रुघ्न मांझी ने बताया कि गांव में कोई काम नहीं मिलता है. पिछली बार वोट दिया था. लेकिन कुछ नहीं मिला. लोग झूठ बोलते हैं, इसीलिए अब वे कभी वोट नहीं डालेंगे. मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार को पालेंगे.

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