सारणः भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं. लेकिन उनकी गबर घिचोर और विदेशिया जैसी कई अमर रचनाएं आज भी लोगों की जबान पर है. इस आपाधापी और भागम-भाग के दौर में इन कृतियों को जानने वाले कम ही लोग बचे हैं. लेकिन छपरा के तुजारपुर गांव के रहने वाले 93 वर्षीय रामचंद्र मांझी उन्हें अपना गुरू और भोजपुरी का देवता मानते हैं. वो भिखारी ठाकुर की नाच मंडली में काम करने वालों में से एक हैं.
भिखारी ठाकुर के शिष्य हैं रामचंद्र मांझी
लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की अमर कृतियों के बखान करने वालों में चंद लोग ही आज जीवित बचे हुए हैं. इनमें से एक छपरा जिले के नगरा प्रखण्ड के बड़की तुजारपुर गांव के रहने वाले रामचंद्र मांझी भी हैं. जो भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ जानते हैं. 93 वर्षीय रामचंद्र मांझी भिखारी ठाकुर के साथ काम करने वालों में से एक हैं. जिन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2017 से सम्मानित भी किया है.
भिखारी ठाकुर की नाच मंडली में किया काम
रामचंद्र माझी ने बिहार के लोक नाटक के क्षेत्र में सालों से अहम योगदान दिया है. वो भिखारी ठाकुर की कला मंडली में काम करने वालों मे से एक हैं. रामचंद्र माझी सारण के युवा लोक कलाकारों के लिए प्रेरणा हैं. प्रसिद्ध नाटककार स्वर्गीय भिखारी ठाकुर की परंपरा को जीवित रखने वाले रामचंद्र मांझी उन कलाकारों के लिए प्रेरणा हैं, जो आधुनिकता के इस दौर में खो रही कला और संस्कृति को बचाने में दिन रात लगे हुए हैं.
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10 साल की उम्र से ही कला मंडली में हुए शामिल
ईटीवी भारत से अपने जीवन की बातों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि वे दस साल की कच्ची उम्र में ही भिखारी ठाकुर की कला मंडली में शामिल हो गये थे और उनके साथ-साथ गांव-गांव जाकर कार्यक्रम करते थे. उन्होंने बताया कि भिखारी ठाकुर बिल्कुल भी पढ़े लिखे नहीं थे. लेकिन भिखारी ठाकुर की कृतियों में इस बात का जरा भी संकेत नहीं मिलता है. भिखारी ठाकुर रामचंद्र मांझी के गुरु थे. उन्होंने बताया कि वो हमेशा इस बात को कहते थे कि, 'जब हम ना रहब त तू सब हमारा के खूब याद करब स.' उनको याद करते हुए वो काफी भावुक भी हो गये.
भिखारी ठाकुर ने सामाजिक बुराइयों का किया विरोध
वो कहते हैं भिखारी ठाकुर जैसे कला के धनी व्यक्ति ने निरक्षर रहते हुए भी बाल विवाह, सती प्रथा, शराब पीने के दुष्प्रभाव पर अपनी रचनाओं के माध्यम से जो कटाक्ष किया है, वो आज भी जीवित हैं. जिस सामाजिक बुराइयों पर आज की सरकारें अंकुश लगाने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं, उसका भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं में बहुत पहले ही विरोध किया और समाज को बदलने की कोशिश की.
गरीबी में ही बीता रामचंद्र मांझी का जीवन
छपरा के तुजारपुर गांव में जन्मे रामचंद्र मांझी एक गरीब परिवार से आते हैं. रहने के लिए कच्चा खपरैल का मकान है. पत्नी का निधन हो चुका है. चार बेटों के पिता रामचंद्र खेती और किसानी करते थे. आज उनके बेटे भी खेती और दुकानदारी करके अपना परिवार चला रहे हैं. अब उम्र के इस पड़ाव पर तुजारपुर गांव के दुर्गा चौक पर ही ज्यादा समय बीताते हैं.