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गांधी जी को दधीचि और चरखा को सुदर्शन चक्र की संज्ञा देने वाली स्वर्णलता देवी की मनायी गयी पुण्यतिथि

स्वर्णलता देवी का जन्म 20 जनवरी 1910 को पश्चिम बंगाल में हुआ था. बताया जाता है कि स्वर्णलता देवी ने ही गांधी जी को दधीचि की संज्ञा दी थी और चरखा को सुदर्शन चक्र कहा था. उनकी मृत्यु 27 अगस्त 1973 को सारण में हुई थी.

स्वर्णलता देवी
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Published : Aug 28, 2019, 2:39 PM IST

सारणः छपरा के मदर टेरेसा स्कूल में स्वतंत्रता सेनानी स्वर्णलता देवी की 46 वीं पुण्यतिथि मनाई गई. जिसमें स्थानीय लोगों ने उनकी तस्वीर पर फूल-माला अर्पण कर उन्हें श्रद्धांजली दी. बताया जाता है कि स्वर्णलता देवी ने ही गांधी जी को दधीचि की संज्ञा दी थी और चरखा को सुदर्शन चक्र कहा था.

सारण
स्वर्णलता देवी को श्रद्धांजलि देते लोग


घर के माहौल से हुई थी प्रेरित
स्वर्णलता देवी का जन्म 20 जनवरी 1910 को पश्चिम बंगाल में हुआ था. इनके पिता ललित मोहन घोषाल बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता थे. राष्ट्र गुरु श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के साथ उनकी खासी मित्रता थी. घर का माहौल और देश के उस समय के हालात ने स्वर्णलता देवी को आजादी की लड़ाई में कूदने के लिए प्रेरित किया था.

समाजसेवी कश्मीरा सिंह का बयान.


पिता के साथ की थी सत्याग्रह का प्रचार
समाजसेवी कश्मीरा सिंह ने बताया कि स्वर्णलता देवी अपने पिता के साथ घूम-घूमकर सत्याग्रह का प्रचार-प्रसार भी की थी. उनके क्रांतिकारी विचार से पंडित मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, दीनबंधु, सुभाषचन्द्र बोस और डॉ राजेन्द्र प्रसाद जैसे दिग्गज नेता भी प्रभावित थे. बता दें कि उनकी शादी बनारस के क्रांतिकारी नेता अमरनाथ चटर्जी के साथ हुई थी. उनकी मृत्यु 27 अगस्त 1973 को सारण में हुई थी.

सारणः छपरा के मदर टेरेसा स्कूल में स्वतंत्रता सेनानी स्वर्णलता देवी की 46 वीं पुण्यतिथि मनाई गई. जिसमें स्थानीय लोगों ने उनकी तस्वीर पर फूल-माला अर्पण कर उन्हें श्रद्धांजली दी. बताया जाता है कि स्वर्णलता देवी ने ही गांधी जी को दधीचि की संज्ञा दी थी और चरखा को सुदर्शन चक्र कहा था.

सारण
स्वर्णलता देवी को श्रद्धांजलि देते लोग


घर के माहौल से हुई थी प्रेरित
स्वर्णलता देवी का जन्म 20 जनवरी 1910 को पश्चिम बंगाल में हुआ था. इनके पिता ललित मोहन घोषाल बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता थे. राष्ट्र गुरु श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के साथ उनकी खासी मित्रता थी. घर का माहौल और देश के उस समय के हालात ने स्वर्णलता देवी को आजादी की लड़ाई में कूदने के लिए प्रेरित किया था.

समाजसेवी कश्मीरा सिंह का बयान.


पिता के साथ की थी सत्याग्रह का प्रचार
समाजसेवी कश्मीरा सिंह ने बताया कि स्वर्णलता देवी अपने पिता के साथ घूम-घूमकर सत्याग्रह का प्रचार-प्रसार भी की थी. उनके क्रांतिकारी विचार से पंडित मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, दीनबंधु, सुभाषचन्द्र बोस और डॉ राजेन्द्र प्रसाद जैसे दिग्गज नेता भी प्रभावित थे. बता दें कि उनकी शादी बनारस के क्रांतिकारी नेता अमरनाथ चटर्जी के साथ हुई थी. उनकी मृत्यु 27 अगस्त 1973 को सारण में हुई थी.

Intro:SLUG:-SWATANTRATA SENANI SWARNLATA
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:-सत्याग्रह के खिलाफ कलकत्ता के कुमारतुली में धरना पर बैठने वाली व गांधी जी को दधीचि की संज्ञा व चरखा को सुदर्शन चक्र कहने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी, सारण की वीरांगना, कवयित्री व समाज सुधारक के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली स्वर्णलता देवी की 46 वीं पुण्यतिथि शहर के एक स्कूल में मनाई गई. जिनका जन्म (बांग्लादेश के खुलना) पश्चिम बंगाल में 20 जनवरी 1910 को हुआ था और उनकी मृत्यु 27 अगस्त 1973 को सारण की ऐतिहासिक धरती पर हुआ था. इनके पिता श्री ललित मोहन घोषाल बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता थे और राष्ट्र गुरू श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के परम मित्र भी थे.

विरांगना स्वर्णलता पर देश की परतंत्रता और परिवार के क्रांतिकारी विचारों का उनके कोमल मन पर अमिट प्रभाव पड़ा था जिस कारण वे अपने पिता के मार्गदर्शन में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह कर बैठी थी और वर्ष 1920 में जब महात्मा गाँधी, कस्तूरबा गांधी व अली बंधु बंगाल आए थे तो उनके स्वागत के लिए वे कुमारतुली पार्क में एक विशाल जनसभा में उनका स्वागत करते हुए उन्हें गांधी जी को दधीचि की संज्ञा देते हुए उनके चरखा को सुदर्शन चक्र कहा था.

Body:अपने राजनीतिक दौरे में वे उस समय के दिग्गज नेताओं पंडित मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, दीनबंधु, क्रांतिकारी नेता सुभाषचन्द्र बोस, डॉ भगवान दास, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ सम्पूर्णानन्द, श्री शिवप्रसाद गुप्त, श्री वी वी गिरी, श्रीपाद अमृत डांगे आदि से भी मिल चुकी थी. इतना ही नहीं बल्कि वे अपने क्रांतिकारी पिता के साथ मिदनापुर सहित पश्चिम बंगाल के कई ज़िलों का दौरा कर सत्याग्रह का प्रचार-प्रसार भी किया करती थीं.



स्वर्णलता के वाणी में इतना ओज थी कि तिलक फंड के लिए चंदा इकठ्ठा करने में महिलाओं ने अपने आभूषण उतार कर दें दी थी शायद यही कारण था कि वे महिलाओं की शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं और पर्दा प्रथा की घोर विरोधी भी थी, विधवाओं की समस्याएं उन्हें बहुत मर्माहत करती थीं और 1926 में उन्होंने आसाम के कामाख्या में बालिका विद्यापीठ की स्थापना की थीं.


Byte:-कश्मीरा सिंह, समाजसेवी

Conclusion:वर्ष 1930 में उनकी शादी बनारस के उग्र क्रांतिकारी नेता अमरनाथ चटर्जी के साथ हुई थी और उसी समय असहयोग आंदोलन के दौरान सम्पूर्णानन्द जी की गिरफ्तारी के बाद स्वर्णलता को बनारस का अधिनायक मनोनीत करने के बाद अंग्रेजों द्वारा दर्जनों नेताओं के साथ उन पर भी मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा गया था जिसमें तीन माह की जेल और सौ रूपया जुर्माना किया गया था.


1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय गिरफ्तारी से बचने के लिए छपरा में आकर छुप गईं और उस समय से मृत्यु तक यही उनका कर्म क्षेत्र बन गया और उनको दो पुत्र और एक पुत्री भी हो चुकी थी, 1944 में छपरा के नगर पालिका परिसर में सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के अवसर पर आजाद हिंद फौज के कैप्टन सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज के सामने क्रांतिकारी नेता के रूप में उभरी स्वर्णलता ने सभी का स्वागत किया था. अत्यंत गरीबी में जीवन यापन करने के बाद भी इन्होंने अपनी अंतरात्मा से कोई समझौता नहीं किया.
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