समस्तीपुरः हाल ही में बिहार बोर्ड हाईस्कूल और इंटर का रिजल्ट घोषित हुआ. जिसमें 60 फीसदी से ज्यादा बच्चों ने टॉप किया. लेकिन राज्य समेत जिले की सरकारी विद्यालयों की स्थिति इस पर कई सवाल खड़े करती है. ज्यादातर स्कूलों में न शिक्षक है और न ही क्लास रूम.
समस्तीपुर में उच्च शिक्षा के हाल पर नजर डालें तो यहां लगभग 113 उत्क्रमित उच्च विद्यालयों से इस साल लगभग 60 फीसदी से ज्यादा बच्चे मैट्रिक की परीक्षा में सफल हुए. लेकिन अगर इन विद्यालयो के जमीनी हकीकत पर गौर करे तो, इसमें आधे से ज्यादा विद्यालयों में संसाधनों की भारी कमी है.
बिना शिक्षकों के उत्क्रमित होते गए विद्यालय
शिक्षा विभाग ने मानकों को दरकिनार कर तीन फेज में जिले के मध्य विद्यालयों को उत्क्रमित घोषित कर दिया. जबकि शिक्षकों के अभाव में क्लास चलती ही नहीं हैं. यानी उच्च विद्यालय सिर्फ नाम का रहा.
प्राइवेट कोचिंग का सहारा
बल्लीपुर गांव के दामोदर गांधी उत्क्रमित विद्यालय में प्रधानाध्यापक ये तो मान रहे हैं कि शिक्षकों की कमी है. लेकिन वे दावा करते हैं कि एक दो शिक्षक भी बच्चों पर खास ध्यान देते हैं जिनका नतीजा उनके स्कूल में टॉप करने वाले बच्चों का रिकॉर्ड है. इससे उलट असलियत में बच्चे पढ़ाई के लिए प्राइवेट कोचिंग का सहारा लेते हैं और सारी वाहवाही शिक्षा विभाग लूट रहा है.
बेहतर शिक्षा का अभाव
शिक्षा जानकारों का कहना है कि बिहार में सरकारी शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता का तो अभाव है ही साथ ही संसाधनों की भी खासा कमी हैं. बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट छात्रों की मेहनत और प्राइवेट ट्यूशन का नतीजा है. सिस्टम को सिर्फ आंकड़ो में उच्च विद्यालयों की संख्या न बढ़ाकर विद्यालयों में जरूरी सुविधा उपलब्ध कराना होगा. गौरतलब है की जिले में 113 उत्क्रमित उच्च विद्यालयों में 56 विद्यालय तो ऐसे हैं. जिसमे विषयवार शिक्षकों का नियोजन अभी तक नहीं हुआ है.