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हाई स्कूलों में ना शिक्षक ना ही क्लासरूम, फिर भी रिजल्ट के बाद सरकारी स्कूल लूट रहे वाहवाही - sarkari school

समस्तीपुर में 60 फिसदी से ज्यादा बच्चों ने टॉप किया. लेकिन राज्य समेत जिले की सरकारी विद्यालयों की स्थिति इस पर कई सवाल खड़े करती है.

विषयवार शिक्षकों का अभाव
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Published : Apr 14, 2019, 12:40 PM IST

समस्तीपुरः हाल ही में बिहार बोर्ड हाईस्कूल और इंटर का रिजल्ट घोषित हुआ. जिसमें 60 फीसदी से ज्यादा बच्चों ने टॉप किया. लेकिन राज्य समेत जिले की सरकारी विद्यालयों की स्थिति इस पर कई सवाल खड़े करती है. ज्यादातर स्कूलों में न शिक्षक है और न ही क्लास रूम.

समस्तीपुर में उच्च शिक्षा के हाल पर नजर डालें तो यहां लगभग 113 उत्क्रमित उच्च विद्यालयों से इस साल लगभग 60 फीसदी से ज्यादा बच्चे मैट्रिक की परीक्षा में सफल हुए. लेकिन अगर इन विद्यालयो के जमीनी हकीकत पर गौर करे तो, इसमें आधे से ज्यादा विद्यालयों में संसाधनों की भारी कमी है.

education
कोचिंग का सहारा लेता हैं छात्र

बिना शिक्षकों के उत्क्रमित होते गए विद्यालय
शिक्षा विभाग ने मानकों को दरकिनार कर तीन फेज में जिले के मध्य विद्यालयों को उत्क्रमित घोषित कर दिया. जबकि शिक्षकों के अभाव में क्लास चलती ही नहीं हैं. यानी उच्च विद्यालय सिर्फ नाम का रहा.

प्राइवेट कोचिंग का सहारा
बल्लीपुर गांव के दामोदर गांधी उत्क्रमित विद्यालय में प्रधानाध्यापक ये तो मान रहे हैं कि शिक्षकों की कमी है. लेकिन वे दावा करते हैं कि एक दो शिक्षक भी बच्चों पर खास ध्यान देते हैं जिनका नतीजा उनके स्कूल में टॉप करने वाले बच्चों का रिकॉर्ड है. इससे उलट असलियत में बच्चे पढ़ाई के लिए प्राइवेट कोचिंग का सहारा लेते हैं और सारी वाहवाही शिक्षा विभाग लूट रहा है.

उत्क्रमित होते गए विद्यालय

बेहतर शिक्षा का अभाव
शिक्षा जानकारों का कहना है कि बिहार में सरकारी शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता का तो अभाव है ही साथ ही संसाधनों की भी खासा कमी हैं. बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट छात्रों की मेहनत और प्राइवेट ट्यूशन का नतीजा है. सिस्टम को सिर्फ आंकड़ो में उच्च विद्यालयों की संख्या न बढ़ाकर विद्यालयों में जरूरी सुविधा उपलब्ध कराना होगा. गौरतलब है की जिले में 113 उत्क्रमित उच्च विद्यालयों में 56 विद्यालय तो ऐसे हैं. जिसमे विषयवार शिक्षकों का नियोजन अभी तक नहीं हुआ है.

समस्तीपुरः हाल ही में बिहार बोर्ड हाईस्कूल और इंटर का रिजल्ट घोषित हुआ. जिसमें 60 फीसदी से ज्यादा बच्चों ने टॉप किया. लेकिन राज्य समेत जिले की सरकारी विद्यालयों की स्थिति इस पर कई सवाल खड़े करती है. ज्यादातर स्कूलों में न शिक्षक है और न ही क्लास रूम.

समस्तीपुर में उच्च शिक्षा के हाल पर नजर डालें तो यहां लगभग 113 उत्क्रमित उच्च विद्यालयों से इस साल लगभग 60 फीसदी से ज्यादा बच्चे मैट्रिक की परीक्षा में सफल हुए. लेकिन अगर इन विद्यालयो के जमीनी हकीकत पर गौर करे तो, इसमें आधे से ज्यादा विद्यालयों में संसाधनों की भारी कमी है.

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कोचिंग का सहारा लेता हैं छात्र

बिना शिक्षकों के उत्क्रमित होते गए विद्यालय
शिक्षा विभाग ने मानकों को दरकिनार कर तीन फेज में जिले के मध्य विद्यालयों को उत्क्रमित घोषित कर दिया. जबकि शिक्षकों के अभाव में क्लास चलती ही नहीं हैं. यानी उच्च विद्यालय सिर्फ नाम का रहा.

प्राइवेट कोचिंग का सहारा
बल्लीपुर गांव के दामोदर गांधी उत्क्रमित विद्यालय में प्रधानाध्यापक ये तो मान रहे हैं कि शिक्षकों की कमी है. लेकिन वे दावा करते हैं कि एक दो शिक्षक भी बच्चों पर खास ध्यान देते हैं जिनका नतीजा उनके स्कूल में टॉप करने वाले बच्चों का रिकॉर्ड है. इससे उलट असलियत में बच्चे पढ़ाई के लिए प्राइवेट कोचिंग का सहारा लेते हैं और सारी वाहवाही शिक्षा विभाग लूट रहा है.

उत्क्रमित होते गए विद्यालय

बेहतर शिक्षा का अभाव
शिक्षा जानकारों का कहना है कि बिहार में सरकारी शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता का तो अभाव है ही साथ ही संसाधनों की भी खासा कमी हैं. बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट छात्रों की मेहनत और प्राइवेट ट्यूशन का नतीजा है. सिस्टम को सिर्फ आंकड़ो में उच्च विद्यालयों की संख्या न बढ़ाकर विद्यालयों में जरूरी सुविधा उपलब्ध कराना होगा. गौरतलब है की जिले में 113 उत्क्रमित उच्च विद्यालयों में 56 विद्यालय तो ऐसे हैं. जिसमे विषयवार शिक्षकों का नियोजन अभी तक नहीं हुआ है.

Intro:जिले के शिक्षा व्यवस्था पर सवाल नही लेकिन आखिर क्या है राज । मैट्रिक परीक्षा में जिले के लगभग सभी उत्क्रमित उच्च विद्यालय में 60 फीसदी से ज्यादा बच्चें सफल हुए । लेकिन बड़ा सवाल ज्यादातर यैसे विद्यालय में न शिक्षक है और न ही क्लास रूम। जाहिर तौर पर ट्यूशन व छात्रों की मेहनत का नतीजा है यह रिजल्ट , लेकिन बाहबाही सिस्टम को ।


Body:जिले में उच्च शिक्षा का हाल पर अगर नजर डाले तो, जिले में लगभग 113 उत्क्रमित उच्च विद्यालय से इस साल लगभग 60 फीसदी से ज्यादा बच्चे मैट्रिक की परीक्षा में सफल हुए । लेकिन अगर इन विद्यालयो के जमीनी हकीकत पर गौर करे तो , इसमें आधे से ज्यादा विद्यालयों में न तो क्लास रूम है और न ही शिक्षक । शिक्षा विभाग ने मानक को दरकिनार कर तीन फेज में जिले के मध्य विद्यालयों को उत्क्रमित तो जरूर करते चले गए । लेकिन न क्लास रूम बढ़े और न ही शिक्षक की बहाली हुई । यानी उच्च विद्यालय सिर्फ नाम का रहा , लेकिन यंहा नामांकन लेकर छात्र व छात्रायें बिन शिक्षकों के परीक्षा में पास हो गए । वैसे जिले के कुछ उत्क्रमित विद्यालयों में इसका जायजा लिया गया तो , प्रधानाध्यापक ने इस समस्या को तो कबूल किया । लेकिन यह जरूर दावे किए की , एक दो शिक्षक ने ही लगातार क्लास लेकर हरसंभव बच्चों को पढ़ाया ।

बाईट -

वीओ - वैसे इन शिक्षकों के दावे इस रिजल्ट के बाद और पुख्ता हो जाते है । क्योंकि सिस्टम जरूर इन बच्चों के बलबूते पास हो गया । वैसे इन उत्क्रमित विद्यालयों में सिर्फ नामांकन करा कर सफल 60 फीसदी से ज्यादा बच्चों के पीछे दो मुख्य वजह है । एक तो छात्रों की मेहनत व दूसरी सिर्फ प्राइवेट ट्यूशन । शिक्षा के जानकारों का भी तर्क है की , यंहा के बच्चे मेहनती है और यह इन्होंने कई प्रतियोगी परीक्षा में साबित भी किया है । लेकिन इस 60 फीसदी रिजल्ट के पीछे इन सरकारी स्कूलों का कोई योगदान नही । बच्चों ने अपने बलबूते सफलता पाया है । सिस्टम को सिर्फ आंकड़ो में उच्च विद्यालयों की संख्या बढ़ाने से नही होगा । उन विद्यालयों में जरूरी सुविधा भी उपलब्ध कराना होगा ।

बाईट -


Conclusion:गौरतलब है की जिले में 113 उत्क्रमित उच्च विद्यालयों में 56 विद्यालय तो यैसे है जिसमे अब तक विषयवार शिक्षकों का नियोजन अभी तक नही हुआ है । वंही कई दर्जन यैसे विद्यालय है जिनका भवन तक नही बना है । यानी आठवीं के क्लास में ही नौबी व दसमी का क्लास चल रहा । बहरहाल बाह रे सिस्टम , न शिक्षक और न क्लास , लेकिन जिले में रिजल्ट पूरी तरह अव्वल ।

अमित कुमार की रिपोर्ट ।
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